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नोएडा: स्कूल की छुट्टियां अक्सर बच्चों के लिए आराम, खेलकूद और घूमने- फिरने का समय होती है. लेकिन सभी बच्चों की छुट्टियां एक जैसी नहीं होतीं. नोएडा स्टेडियम के गेट नंबर 04 के बाहर जब आप दोपहर में गुजरेंगे, तो एक अलग ही दृश्य दिखेगा. तपती धूप, जलती आग और पसीने के बीच दो मासूम चेहरे मक्के के भुट्टे भूनते नज़र आते हैं. इन दोनों बच्चों का नाम भावना और उसका छोटा भाई भारत है, जिनकी उम्र भले ही छोटी है, लेकिन जिम्मेदारियों ने उन्हें वक्त से पहले बड़ा कर दिया है.

भावना मूल रूप से बुलंदशहर की रहने वाली है, लेकिन अब अपने परिवार के साथ नोएडा में रहती है. वह नौवीं कक्षा की छात्रा है, जबकि भारत उससे छोटा है और वो भी स्कूल जाता है. इन दिनों स्कूल की छुट्टियां चल रही हैं, लेकिन उनके लिए ये छुट्टियां आराम नहीं बल्कि मेहनत और संघर्ष का समय हैं.

दोनों बहन- भाई बेचते हैं भुट्टे
दोपहर करीब 12 बजे से शाम तक दोनों भाई-बहन नोएडा स्टेडियम गेट नंबर 4 के बाहर तसले में जलती लकड़ियों पर मक्के के भुट्टे भूनते हैं. गर्मी के तापमान का असर इनके चेहरे से साफ झलकता है, लेकिन उनके हौसले में कोई कमी नहीं.

मां भुट्टे बेचती हैं, पिता हैं हेल्पर
भावना बताती है कि वो चार भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर है. उनकी मां दिनभर दूसरी जगह जाकर मक्के के भुट्टे बेचती हैं, जबकि पिता एक ऑफिस में हेल्पर की नौकरी करते हैं. बड़ी बहन ग्रेजुएशन कर रही है. ऐसे में भावना और भारत ने खुद ज़िम्मेदारी उठा ली है.

भारत आग को जलाए रखने के लिए फट्टा झलता है और भावना ग्राहकों से मुस्कुरा कर बात करती है. ये दोनों मिलकर दिन में करीब एक कट्टा मक्के के भुट्टे बेच देते हैं, जिससे थोड़ी आमदनी हो जाती है.

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गर्मी और आग के बीच हौसला कायम
जब नोएडा का तापमान 45 डिग्री तक पहुंच जाता है, तब सड़कों पर निकलना भी मुश्किल हो जाता है. लेकिन भावना और भारत तपती आग के सामने घंटों बैठे रहते हैं. उन्हें पता है कि ये मेहनत ही उनकी पढ़ाई और घर की ज़रूरतों का सहारा है. भावना का चेहरा थका हुआ ज़रूर होता है, लेकिन जब कोई ग्राहक आता है, तो वो पूरी विनम्रता और मुस्कान के साथ भुट्टा थमाती है. भारत की आंखें धुएं से लाल हो जाती हैं, लेकिन वो बिना रुके झलने का काम करता है.

भावना और भारत की कहानी उन हजारों बच्चों की कहानी है जो कम उम्र में ही जिम्मेदारियों का बोझ उठा लेते हैं. ये सिर्फ मजदूरी नहीं कर रहे, ये अपने सपनों की बुनियाद भी रख रहे हैं. इनका संघर्ष देखकर शायद कुछ लोगों को अहसास हो कि मेहनत की कोई उम्र नहीं होती, और सपने देखने के लिए हालात नहीं, हौसला ज़रूरी होता है.

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