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जौनपुर का इत्र अपनी ऐतिहासिक धरोहर और प्राकृतिकता के लिए प्रसिद्ध है. सल्तनत काल से चली आ रही परंपरा से बने इस इत्र की मांग खाड़ी देशों, यूरोप और अमेरिका में भी है.

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जौनपुर का इत्र! 14वीं सदी से लेकर अब तक एक खुशबू जो समेटे है इतिहास, कला और…

जौनपुर का इत्र

हाइलाइट्स

  • जौनपुर का इत्र अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है.
  • इत्र निर्माण की परंपरा सल्तनत काल से चली आ रही है.
  • खाड़ी देशों, यूरोप और अमेरिका में इत्र की मांग है.

जौनपुर: उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में स्थित जौनपुर न केवल अपनी ऐतिहासिक धरोहरों के लिए जाना जाता है, बल्कि यहाँ का इत्र भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी खास पहचान बना चुका है. जौनपुर की मिट्टी में बसी खुशबू सदियों से लोगों को आकर्षित करती रही है. यह इत्र गुलाब, चमेली, केवड़ा, खस, मोगरा और अन्य प्राकृतिक फूलों से तैयार किया जाता है, जो इसकी प्राकृतिकता और स्थायित्व को विशेष बनाता है.
जौनपुर में इत्र निर्माण की परंपरा सैकड़ों वर्ष पुरानी है. इसकी शुरुआत सल्तनत काल से जुड़ा माना जाता है, खासकर जब शार्की वंश ने जौनपुर को अपनी राजधानी बनाया था (14वीं-15वीं सदी). उस समय कला, संस्कृति, संगीत और शिल्प के साथ-साथ इत्र का व्यापार भी बहुत बढ़ा. शाही परिवारों के दरबारों में इत्र का उपयोग विशेष सम्मान का प्रतीक था. गुलाब जल और इत्र की मांग इतनी अधिक थी कि यहां कारीगरों का एक अलग वर्ग विकसित हुआ, जो पीढ़ी दर पीढ़ी इस हुनर को आगे बढ़ाता गया.

पारंपरिक विधि से निर्माण
जौनपुर में इत्र निर्माण आज भी पारंपरिक ‘डिग और भाप आसवन’ तकनीक से किया जाता है. इस प्रक्रिया में फूलों को तांबे के पात्रों में उबालकर उनकी खुशबू को एक विशेष प्रक्रिया से संग्रहित किया जाता है. यह विधि बिना किसी रसायन के इत्र निर्माण की पारंपरिक तकनीक है, जो इसे पूरी तरह से प्राकृतिक बनाती है. यही कारण है कि यहाँ का इत्र लंबे समय तक अपनी खुशबू बनाए रखता है.

अंतर्राष्ट्रीय पहचान
जौनपुर का इत्र न केवल भारत के बाजारों में, बल्कि खाड़ी देशों, यूरोप और अमेरिका में भी निर्यात किया जाता है. खासतौर पर खाड़ी देशों में गुलाब और केवड़े के इत्र की अत्यधिक मांग है. यहाँ के स्थानीय निर्माता समय के साथ नई खुशबुओं और फ्यूजन इत्रों का निर्माण भी कर रहे हैं, जिससे इसकी बाजार में पकड़ और मजबूत हो रही है.
इत्र उद्योग ने जौनपुर में हजारों लोगों को रोजगार दिया है. यहाँ के कई छोटे-बड़े इत्र निर्माता परिवार अपने परंपरागत व्यवसाय को आधुनिकता के साथ जोड़कर आगे बढ़ा रहे हैं. महिलाएं भी इस क्षेत्र में जुड़कर आत्मनिर्भर बन रही हैं.

संरक्षण की जरूरत
हालांकि, इस उद्योग को आज भी व्यापक स्तर पर पहचान और समर्थन की जरूरत है. यदि सरकार की ओर से GI टैग, वित्तीय सहायता और मार्केटिंग सपोर्ट मिले, तो जौनपुर का इत्र वैश्विक ब्रांड बन सकता है.
जौनपुर का इत्र सिर्फ एक सुगंध नहीं, बल्कि यह परंपरा, संस्कृति और इतिहास का प्रतीक है. इसकी खुशबू में न केवल फूलों की ताजगी है, बल्कि सदियों पुरानी विरासत की महक भी समाई हुई है. यदि इसे सही दिशा और पहचान मिले, तो यह जौनपुर को विश्व के मानचित्र पर एक सुगंधित नाम के रूप में स्थापित कर सकता है.

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जौनपुर का इत्र! 14वीं सदी से लेकर अब तक एक खुशबू जो समेटे है इतिहास, कला और…

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