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वर्तमान में जापान के अलावा अमेरिका के सिलिकन वैली की एक स्टार्टअप ‘कन्सेप्शन बायोसाइंसेज’ भी इसी प्रक्रिया पर काम कर रही है. कंपनी के CEO मैट क्रिसिलोफ का दावा है कि अगर सबकुछ ठीक रहा, तो ये तकनीक 5 साल के भीतर क्लिनिक में इस्तेमाल की जा सकेगी. इन कंपनियों के पास अरबों का फंड है, और इसका मकसद सिर्फ बांझपन का इलाज नहीं, बल्कि इंसानी जीवन की री-कंस्ट्रक्शन है.
साइंटिस्ट ने स्टेम सेल के जरिए लैब में ये स्पर्म्स तैयार किए हैं. हालांकि, माउस पर ये प्रयोग सफल हो चुका है. ये ऐसे खास सेल्स होते हैं जो बॉडी किसी भी तरह की कोशिका या सेल्स का रूप ले सकते हैं. वैज्ञानिकों ने इन स्टेम सेल्स को लैब में स्पर्म्स जैसे सेल्स में बदला और फिर इन सेल्स से बने स्पर्म्स से चूहे के अंडे को फर्टिलाइज किया. इसका नतीजा यह हुआ कि दो मर्दों के शुक्राणुओं से लैब में मादा चूहा तैयार किया गया है.
हायाशी की लैब में 1 मिमी की आकार के टेस्टिकल ऑर्गनॉइड तैयार किए जा चुके हैं, जिनमें शुक्राणु के प्रीकरसर सेल्स बनाए गए. अभी ये सेल्स मर जाते हैं. लेकिन ऑक्सीजन सप्लाई बेहतर की जा रही है, जिससे इन्हें जीवित रखा जा सके. उसी तरह, इंसानी ओवरी ऑर्गनॉइड भी बन चुका है, जहां एक दिन इंसानी अंडे पूरी तरह विकसित किए जा सकेंगे. ये वही स्टेम सेल्स से बने अंग हैं, जिनमें भ्रूण बनने की पूरी प्रक्रिया को दोहराया जा रहा है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि, 10 साल से पहले लैब-बेस्ड अंडे या शुक्राणु के जरिए पैदा हुआ पहला इंसान धरती पर आ सकता है. एक तरफ ये बांझपन से जूझ रहे लोगों के लिए वरदान होगा. दूसरी तरफ समाज के लिए ये एक झटका होगा, जो न सिर्फ बायोलॉजिकल पैरेंटहुड की परिभाषा बदल देगा, बल्कि पूरी पारिवारिक संरचना को हिला देगा.
आप सोचिए, जब कोई महिला 60 की उम्र में बच्चा पैदा कर सकेगी. या कोई पुरुष अपनी स्किन सेल से अंडा तैयार करवा सकेगा, और फिर स्पर्म से फर्टिलाइज करवा सकेगा. एक इंसान के DNA से बच्चा तैयार करने की तकनीक भी आ सकती है. यानी ‘यूनिबेबी’, एक ही इंसान के जीन से जन्मा बच्चा. या फिर ‘मल्टीप्लेक्स बेबी’, जिसमें दो नहीं, तीन या चार लोगों के जीन शामिल होंगे.
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