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शिखा श्रेया/रांची: झारखंड की राजधानी रांची और आसपास के आदिवासी इलाकों में आज भी कई ऐसी अनोखी परंपराएं जीवित हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. इन्हीं परंपराओं में से एक है नमकीन जलेबी जो खासतौर पर तब बनाई जाती है जब शादी के बाद बेटी पहली बार मायके लौटती है.

स्वाद में बिल्कुल अलग है ये नमकीन जलेबी
आमतौर पर जलेबी का नाम सुनते ही मीठे रस में डूबी मिठाई की छवि सामने आती है, लेकिन आदिवासी समाज की यह नमकीन जलेबी मीठी नहीं, बल्कि नमकीन स्वाद में होती है. खास बात यह है कि इसे रागी (मडुआ) के आटे से बनाया जाता है, जो सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद माना जाता है.

कैसे बनती है नमकीन जलेबी?
रांची निवासी सुषमा बताती हैं कि नमकीन जलेबी बनाना बेहद आसान है.

सबसे पहले रागी के आटे में थोड़ा बेसन मिलाया जाता है.

इसमें जीरा पाउडर, काला नमक, हल्दी, काली मिर्च, और लाल मिर्च पाउडर डालकर अच्छी तरह गाढ़ा घोल तैयार किया जाता है.

इस घोल को 10-15 मिनट के लिए फूलने दिया जाता है.

फिर सेव बनाने वाली मशीन में भरकर घोल को जलेबी के आकार में तले जाते हैं.

खास बात यह है कि इसमें न चीनी का सिरप होता है और न ही मैदा का इस्तेमाल.

इसलिए, शुगर के मरीज भी इस नमकीन जलेबी का स्वाद ले सकते हैं, और तेल भी बेहद कम मात्रा में लगता है.

खास मौकों पर बनती है नमकीन जलेबी
सुषमा बताती हैं कि जब भी परिवार में कोई विशेष अवसर होता है, जैसे बेटी का मायके आना या कोई खास मेहमान का आगमन, तो यह नमकीन जलेबी जरूर बनाई जाती है. यहां तक कि कभी-कभी बिना किसी अवसर के भी, अगर मन हो जाए तो परिवार के सदस्य कहते हैं, “चलो नमकीन जलेबी बना दो.”

स्वाद और परंपरा का अनोखा संगम
आदिवासी समाज की यह खासियत है कि उनके व्यंजन न सिर्फ स्वादिष्ट होते हैं, बल्कि सेहत के लिहाज से भी बेहतरीन होते हैं. नमकीन जलेबी इसी परंपरा का एक अनूठा उदाहरण है, जो आज भी आदिवासी समाज की सांस्कृतिक धरोहर को जिंदा रखे हुए है.

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