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Early Detection of Gall Bladder Cancer: शरीर में कई ऐसी बीमारियां हैं जिनका पता आखिरी स्टेज तक नहीं चलता. जब तक पता चलती तब तक मौत नजदीक आ जाती है. गॉल ब्लैडर में कैंसर ऐसा ही है. तो क्या इसका कोई दूसरा उपाय नह…और पढ़ें

इस बीमारी की पहले पहचान कैसे करें.
हाइलाइट्स
- शरीर में कई बीमारियों का पता लास्ट स्टेज में चलता.
- कैंसर जैसी बीमारियों को पनपने में बहुत समय लगता है.
- यह हमेशा शरीर को चकमा देने के फिराक में रहता है.
No Symptoms in Gall Bladder Cancer: हमारे शरीर के अंदर लिवर के पीछे एक छोटी सी थैली होती है जिसे गॉल ब्लैडर कहते हैं. इसका काम है लिवर द्वारा बनाए गए बाइल या पित्त को अपनी थैली में जमा कर रखना है और जब भोजन को पचाने की आवश्यकता हो तब इसे आंत में छोड़ देना. गॉल ब्लैडर से जब पित्त आंत में जाता है तभी भोजन के कण टूटते हैं और और उससे एनर्जी बनती है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जब गॉल ब्लैडर में कैंसर होता है तो इसका पता फोर्थ या आखिरी स्टेज तक नहीं चलता. जब पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और मरीज मौत के करीब पहुंच जाता है. जो लोग किस्मत वाले होते हैं उनमें से कुछ को इसका कुछ संकेत पहले दिख जाता है. इसमें अचानक कभी कैंसर वाला ट्यूमर फट जाता है जिससे उल्टी और दर्द होता है. इस स्थिति में जब डॉक्टर के पास जाया जाए तो इसका पता चल जाता है. तो क्या इसका इलाज एकदम नामुमकिन है. क्या इसके बाद मौत तय है. इन्हीं सवालों का जवाब जानने के लिए हमने सर गंगाराम अस्पताल में कैंसर डिपार्टमेंट के प्रमुख चेयरमैन डॉ. श्याम अग्रवाल से बात की.
क्यों नहीं चलता पता
डॉ. श्याम अग्रवाल ने बताया कि कैंसर बेहद धोखेबाज बीमारी है. खासकर अगर यह पेट के अंदर है तो इसमें अधिकांश मामलों में एकदम लास्ट स्टेज में इसका पता चलता है. इसलिए मेडिकल भाषा में पेट को ब्लैक बॉक्स कहा जाता है. क्योंकि कैंसर हमेशा शरीर को चकमा देते रहती है. चूंकि इसे ग्रो करने में सालों लग जाता है. इसलिए इसका पता कभी-कभी आखिरी चरण तक नहीं चलता. जब तक पता चलती है तब तक इसका इलाज करना मुश्किल हो जाता है. डॉ. अग्रवाल ने बताया कि इसका पता इसलिए नहीं चलता क्योंकि कैंसर कोशिकाओं को एक सेंटीमीटर या दो सेंटीमीटर तक पहुंचने में चार से पांच साल तक का समय लग जाता है. जब तक यह बड़ा ट्यूमर नहीं बन जाता है तब तक इसका पता लगाना बहुत मुश्किल है. यही कारण है कि यह पेट के अंदर छुपा रहता है. जो लोग किस्मत वाले होते हैं, उनमें कभी-कभी इन्हीं स्टेज में यह ट्यूमर फट जाता है और इस स्थिति में दर्द होने पर जब वह डॉक्टर से दिखाने जाता है तो अचानक अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन में इसका पता चल जाता है. इसलिए पेट में होने वाले लिवर कैंसर, गॉल ब्लैडर कैंसर, पैंक्रियाज कैंसर, स्टोमेक कैंसर, कोलोन कैंसर आदि में एडवांस स्टेज में पता चलता है.
तो क्या इसका इलाज नहीं
डॉ. श्याम अग्रवाल कहते हैं कि कुछ साल पहले तक इसका इलाज नहीं था लेकिन अब कई तरह के इलाज हैं. अगर अर्ली स्टेज में किसी न किसी तरह पता चल गया तो इसका ऑपरेशन द्वारा पूरी तरह से इलाज संभव है लेकिन अगर एडवांस स्टेज में पता चला तो भी जीवन को आगे बढ़ाया जा सकता है. इसमें पहले सिर्फ कीमोथेरेपी दी जाती थी जिसमें कुछ ही मरीजों की जान बचती थी लेकिन अब कीमोथेरेपी के साथ-साथ इम्यूनोथेरेपी भी दी जाती है जिससे 50 से 60 प्रतिशत मरीज को ठीक किया जा सकता है. कुछ को यह ठीक भी हो जाता है. बाकी की लाइफ को पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है. 100 में से करीब 25 प्रतिशत मरीजों की आयु 5 साल तक बढ़ जाती है. अगर इम्यूनोथेरेपी भी काम नहीं करती है तो इसके बाद टारगेटेड जीन थेरेपी दी जाती है. इसमें खर्चा ज्यादा जरूर है लेकिन इस थेरेपी से ज्यादा मरीजों की जान बचाई जा सकती है या उसकी आयु को बढ़ाई जा सकती है. जीन थेरेपी में दरअसल पहले हमें यह देखना होता है कि कौन सी जीन खराब है. करीब 10-15 जीन के खराब होने से यह कैंसर होता है. इसके लिए HER2 जीन, fgfr2 जीन, braf जीन, idh1 जीन में खराबी को जिम्मेदार माना जाता है. इसका जब पता चल जाता है तो इसी जीन को सही करने के लिए टारगेटेड जीन थेरेपी दी जाती है. इस थेरेपी से बहुत से मरीजों की जान बचाई जा सकती है.
इस थेरेपी का खर्चा कितना आता है
डॉ. श्याम अग्रवाल कहते हैं कि वर्तमान में इम्यूनोथेरेपी और जीन थेरेपी का खर्चा अधिक है. अगर सिर्फ कीमोथेरेपी और इम्यूनोथेरेपी से काम चल जाता है तो इसमें महीने में एक से डेढ़ लाख तक का खर्च आता है. अगर जीन थेरेपी दी जाती है तो इसमें थोड़ा ज्यादा खर्च है. इन दोनों थेरेपी में 21-21 दिन पर थेरेपी दी जाती है जिसमें एक लाख सा चार-पांच लाख तक का खर्चा आता है.
पहले पता लगाने का क्या तरीका है
डॉ. श्याम अग्रवाल कहते हैं कि गॉल ब्लैडर में कैंसर का पहले से पता लगाने का फिलहाल कोई टेस्ट नहीं है. अगर आप अल्ट्रासाउंड कराएं तो इसमें थोड़ा-बहुत संकेत दिखता है. अगर इस संकेत में डॉक्टर को कुछ अनहोनी नजर आती है तो वे सीटी स्कैन या पैट स्कैन टेस्ट की सलाह देते हैं. यह डॉक्टर तय करेंगे कि इसके बाद कौन सी जांच करानी है. इसलिए गॉल ब्लैडर में कैंसर या पेट में किसी तरह के कैंसर का पता लगाने का सबसे पहला हथियार अल्ट्रासाउंड ही है. ऐसे में 30-35 साल के बाद हर व्यक्ति को साल में एक बार अल्ट्रासाउंड जांच जरूर करानी चाहिए.
Excelled with colors in media industry, enriched more than 16 years of professional experience. Lakshmi Narayan contributed to all genres viz print, television and digital media. he professed his contribution i…और पढ़ें
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