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Want to Smarter: क्या आप दूसरों से ज्यादा आगे रहना चाहते हैं. दूसरों से ज्यादा स्मार्ट बनना चाहते हैं. यदि हां, तो इसके लिए दिन में 10 मिनट के लिए एक काम करें. यह बहुत आसान है.

स्मार्ट बनने का तरीका.
हाइलाइट्स
- प्रतिदिन 10 मिनट मौन रहने से मस्तिष्क कोशिकाओं का विकास होता है.
- मौन रहने से हिप्पोकैम्पस में नए न्यूरॉनों का निर्माण बढ़ता है.
- मौन मानसिक ताजगी और भावनात्मक स्वास्थ्य में सुधार करता है.
Want to Smarter: आज का जीवन हलचलों से भरा है. हर पल दिमाग किसी न किसी चीज में उलझा रहता है. किसी भी समय चैन नहीं है. दिन भर फोन की घंटियां, मैसेज के नोटिफिकेशन, बाहर जाओ तो ट्रैफिक का शोर, ऑफिस जाओ तो हर चीज का एक साथ शोर, घर आओ तो फोन, टीवी, गैजेट्स का शोर. ऐसी स्थिति में शायद ही कोई पल होगा जब लोगों का दिमाग किसी चीज में उलझा नहीं होगा. लोग अकेले भी रहते हैं तो खुद में बात करते हैं. फोन के साथ उनका वार्तालाप तब तक चलता रहता है जब तक कि उसे नींद न आ जाए. ऐसे में मौन एक विलुप्त होती अनुभूति बन गया है. लेकिन नए शोध से पता चलता है कि मौन में एक ऐसा रहस्य छिपा हो सकता है, जिसे आधुनिक चिकित्सा और माइंडफुलनेस के समर्थक अब जाकर जान रहे हैं. यह आपके मस्तिष्क की कोशिकाओं को बढ़ा सकता है.
मौन रहने के फायदे
2013 में ड्यूक यूनिवर्सिटी की न्यूरोसाइंटिस्ट इम्के कर्स्टे और उनके सहयोगियों द्वारा ब्रेन स्ट्रक्चर एंड फंक्शन में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि यदि व्यक्ति प्रतिदिन दो घंटे मौन में बैठता है तो मस्तिष्क के हिप्पोकैम्पस भाग में नए न्यूरॉनों (मस्तिष्क कोशिकाओं) का विकास काफी बढ़ जाता है. यह भाग सीखने, स्मृति और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होता है. यह खोज क्रांतिकारी होने के साथ-साथ सरल भी है. मौन सोने जैसा नहीं बल्कि पुनर्जीवन देने वाला है. चूहों पर किए गए अध्ययन में मौन के फायदे जाने गए. इसमें कुछ हद तक मस्तिष्क कोशिकाओं में वृद्धि देखी गई. इससे मस्तिष्क में न्यूरॉनों की संख्या में स्थायी वृद्धि हुई. मौन के दौरान मस्तिष्क उस स्थिति में चला जाता है जिसे न्यूरोसाइंटिस्ट डिफॉल्ट मोड नेटवर्क कहते हैं. यह एक न्यूरल अवस्था है जो आत्म-चिंतन, काल्पनिक आनंद और स्मृति के समेकन से जुड़ी होती है. जब हमारे दिमाग में बाहरी ध्वनियों नहीं आती तब मस्तिष्क अंदर से स्वयं को पुनर्गठित करता है. यह भीतरी प्रक्रिया विशेष रूप से हिप्पोकैम्पस के लिए उपयोगी है जो मस्तिष्क का सीखने वाला केंद्र है. जब ध्यान भटकाने वाले तत्व कम होते हैं तब न्यूरोजेनेसिस (नई कोशिकाओं का निर्माण) अधिक आसानी से हो सकता है. इसके अलावा शांत वातावरण कोर्टिसोल (तनाव हार्मोन) के स्तर को कम करने में मदद करता है जिससे मस्तिष्क कोशिकाओं की जीवन प्रत्याशा और भावनात्मक स्वास्थ्य में सुधार होता है.
यह क्यों महत्वपूर्ण है
कई वर्षों तक वैज्ञानिकों का मानना था कि वयस्कों के मस्तिष्क में नए न्यूरॉन्स नहीं बनते. लेकिन आज हम जानते हैं कि न्यूरोजेनेसिस जीवनभर चलने वाली प्रक्रिया है. यह शोध उल्लेखनीय इसलिए है क्योंकि यह मौन को इस गतिविधि का प्रेरक तत्व बताता है. सूचना के बोझ और मानसिक थकावट के इस युग में यह अध्ययन हमें पर्यावरणीय स्थितियों, विशेष रूप से शोर के मानसिक स्वास्थ्य और संज्ञानात्मक क्षमताओं पर प्रभाव की याद दिलाता है. मौन मानसिक ताजगी के लिए सबसे आसानी से उपलब्ध और सबसे शक्तिशाली साधनों में से एक है.प्रतिदिन कुछ मिनटों का मौन मस्तिष्क की संरचना और कार्य को बेहतर बना सकता है. इससे समझा जा सकता है कि याददाश्त और भावनात्मक स्थिरता पर कितना असर डाल सकता है. मौन केवल शांति नहीं लाता. यह मानसिक विकास के लिए न्यूरोलॉजिकल जगह बनाता है.
मौन कैसे रहा जाए
इसके लिए सबसे पहले एक शांत जगह चुनें. यह आपका शयनकक्ष, पार्क की बेंच या आपकी कार भी हो सकती है. इसके लिए सभी डिवाइस को पूरी तरह बंद कर दें.फिर बस मौन में बैठें. इसमें सिर्फ यही नहीं करना है कि बाहर की शोर को नहीं सुनना बल्कि आपको अपने दिमाग में चल रही सभी बातों को बंद करनी है. अगर कुछ चीजें दिमाग में आ रही है तो पहले उसे हटा दें. दिमाग या चित को पूरी तरह खाली कर लें, कुछ भी न सोचें और 10 मिनट तक शून्यता की स्थिति में रहें. यह एक दिन में नहीं होगा. इसके लिए आपको अभ्यास करना होगा. कई दिनों के बाद आप अपने चित को शून्यता की स्थिति में ला सकते हैं. 10 मिनट के रोजाना के पूर्ण मौन के अलावा कभी-कभी आप खुद आंशिक रूप से भी मौन रहे. जैसे कभी-कभी घर में सभी गैजेट्स को बंद कर दें और अपने मन को स्वयं शांत होने दें. समय-समय पर बिना हेडफोन यात्रा करें. अपने मन को निर्बाध चलने दें. दिन में एक या दो घंटे डिजिटल डिटॉक्स रहें. यानी इस अवधि के दौरान फोन या किसी भी तरह के इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का इस्तेमाल न करें.
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