[ad_1]
Last Updated:
Lab-Grown Eggs & Sperm: ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि वे जल्द ही लैब में स्पर्म और एग्स बनाने की टेक्नोलॉजी को डेवलप कर लेंगे. इससे कोई भी शख्स बिना एग्स और स्पर्म के बच्चे पैदा कर सकेगा. इससे उम्र …और पढ़ें
हाइलाइट्स
- वैज्ञानिक लैब में एग्स और स्पर्म बनाने के करीब हैं.
- अगले 10 सालों में IVGs से बच्चे पैदा किए जा सकेंगे.
- इस तकनीक से कई तरह के खतरे भी बढ़ सकते हैं.
UK Lab-Grown Eggs Sperm News: बच्चा पैदा करने के लिए महिला और पुरुषों के रिप्रोडक्टिव सिस्टम की जरूरत होती है. जब पुरुषों का स्पर्म महिलाओं के एग्स के साथ मिलता है, तब भ्रूण बनने की प्रक्रिया शुरू होती है. प्राचीन काल से ही इसी तरह बच्चे पैदा होते रहे हैं, लेकिन अगले कुछ सालों में नजारा पूरी तरह बदल सकता है. ब्रिटेन की ह्यूमन फर्टिलाइजेशन एंड एम्ब्रायोलॉजी अथॉरिटी (HFEA) ने एक रिपोर्ट जारी कर बताया है कि वैज्ञानिक लैब में एग्स और स्पर्म बनाने की टेक्नोलॉजी डेलवप करने के करीब पहुंच गए हैं. अगले 10 सालों में लैब में स्पर्म और एग्स बनाकर बच्चे पैदा किए जा सकेंगे.
ब्रिटिश वेबसाइट द गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक वैज्ञानिक लैब में अंडे और शुक्राणु बनाने की तकनीक डेवलप करने की कगार पर हैं. इसे “इन-विट्रो गेमेट्स” (IVGs) कहा जा रहा है. इसमें स्किन या स्टेम सेल्स से अंडे और शुक्राणु बनाए जा सकेंगे. वैज्ञानिकों का मानना है कि अगले 10 सालों में यह तकनीक पूरी तरह से विकसित हो सकती है. इसमें लोग किसी भी उम्र में बिना नेचुरल स्पर्म और एग्स के बच्चे पैदा कर सकेंगे. खास बात यह है कि इस टेक्नोलॉजी के जरिए सिंगल लोग और समलैंगिक कपल्स को भी बायोलॉजिकल बच्चे पैदा करने का मौका मिल सकेगा. इससे दुनिया बदल सकती है.
एक्सपर्ट्स की मानें तो इस टेक्नोलॉजी से बहुत फायदा हो सकता है, लेकिन इससे तकनीक को कई नैतिक और मेडिकल रिस्क का सामना भी करना पड़ सकता है. IVGs का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे महिलाओं को उम्र के बढ़ने के साथ होने वाली एग्स की कमी और पुरुषों को स्पर्म की कमी जैसी समस्याओं से निजात मिल सकती है. इससे न केवल अधिक लोगों को फर्टिलिटी ट्रीटमेंट मिल सकेगा, बल्कि यह सोलो पेरेंटिंग और मल्टीप्लेक्स पेरेंटिंग जैसी नई संभावनाओं का रास्ता भी खोल सकता है. सोलो पेरेंटिंग का मतलब है कि एक व्यक्ति अपने ही एग्स और स्पर्म से बच्चा पैदा कर सकेगा.
मल्टीप्लेक्स पेरेंटिंग में दो कपल्स मिलकर दो भ्रूण बनाएंगे और इन भ्रूणों से अंडे और शुक्राणु लैब में तैयार किए जाएंगे, ताकि एक नया भ्रूण बनाया जा सके. इसमें चार लोग बच्चे के जैविक दादा-दादी होंगे और इस प्रक्रिया में आनुवंशिक खतरे कम होते हैं. हालांकि इस तकनीक से लैब में बड़ी संख्या में भ्रूण बनने की संभावना है, जिससे स्क्रीनिंग की प्रक्रिया ज्यादा व्यापक हो सकती है. इससे यह खतरा भी पैदा हो सकता है कि लोग सिर्फ शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ क्रोमोसोम का चयन करने लगेंगे, जिसे जीनोटाइपिंग या यूजेनिक्स कहा जा सकता है.
हालांकि इस टेक्नोलॉजी से पैदा हुए बच्चों में जेनेटिक डिसऑर्डर का खतरा भी ज्यादा हो सकता है. इसके अलावा भ्रूण के स्वास्थ्य के लिए भी कई खतरे पैदा हो सकते हैं. इसी को देखते हुए HFEA ने इसे बैन करने का सुझाव दिया है. IVGs से उम्र संबंधी परेशानियां समाप्त हो सकती हैं, लेकिन इसके साथ कुछ नई समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं, जैसे- ज्यादा उम्र में प्रेग्नेंसी में ज्यादा जोखिम होगा और बुढ़ापे में लोग बच्चों को जन्म देंगे. यह तकनीक जीवन के अन्य पहलुओं को भी प्रभावित कर सकती है. इससे बच्चे का जन्म ऐसे माता-पिता से हो सकता है, जिनकी उम्र ज्यादा हो. इससे हेल्थ पर बुरा असर पड़ सकता है.
HFEA का मानना है कि इस तकनीक का प्रयोग करने से पहले इसे कानूनी और नैतिक रूप से नियंत्रित किया जाना चाहिए, ताकि इसके खतरनाक उपयोग से बचा जा सके. HFEA ने इस तकनीक पर ज्यादा रिसर्च करने की सिफारिश की है और यह स्पष्ट किया कि IVGs का प्रयोग अभी तक चिकित्सा उपचार के रूप में लागू नहीं किया जा सका है. हालांकि यह माना जा रहा है कि भविष्य में यह तकनीक एक सामान्य फर्टिलिटी ट्रीटमेंट का हिस्सा बन सकती है. हालांकि इसके लिए कानूनों में बदलाव की जरूरत होगी और इस बदलाव का फैसला ब्रिटिश संसद को लेना होगा.
January 30, 2025, 08:20 IST
[ad_2]
Source link