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Agency:News18 Madhya Pradesh

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Babai ka Paudha: बबई पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है, जिसे छतरपुर में खासतौर पर उगाया जाता है. इस पौधे का बीज रात में ही निकलता है, और जानवर इसे नहीं खाते.

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आंखों से घुटनों के दर्द तक…! औषधीय गुणों से भरपूर है यह देसी पौधा, जानवर भी भागते हैं दूर

बबई पौधे की जानकारी देते किसान प्रेमचंद्र गिरी

हाइलाइट्स

  • बबई पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है.
  • इसका उपयोग आंखों और दर्द के इलाज में होता है.
  • जानवर इस पौधे को नहीं खाते हैं.

बबई पौधा. छतरपुर जिले में एक ऐसी औषधि भी पाई जाती है जिसके गुण और उपयोग के बारे में ज्यादातर लोगों को पता नहीं होता है. लेकिन जिले के किसान इस पौधे के उपयोगिता को जानते हैं . उनका कहना हैं कि यहां इस औषधि को बबई नाम से जाना जाता है. जिसका उपयोग औषधीय तेल बनाने के साथ ही आंखों के इलाज़ में होता है.

किसान प्रेमचंद गिरि लोकल 18 से बातचीत में बताते हैं कि हमारे क्षेत्र में इसे बबई नाम से जाना जाता है. क्षेत्र में जगह-जगह देखने को मिल जाता है. भले ही यहां के किसान भाई इसकी खेती न करते हों लेकिन यह बरसात के मौसम जगह-जगह पैदा हो जाता है. इसमें पाए जाने वाले औषधीय गुणों के कारण यह महंगा भी बिकता है.

किसान प्रेमचंद बताते हैं कि बबई पौधे के बीज का औषधीय महत्व है. इसके बीजों से तेल निकाला जाता है. इसके बीज का उपयोग हर तरह के औषधीय तेल बनाने में होता है. चाहे दर्द का तेल हो, घुटनों के दर्द का तेल हो, वात तेल में, हड्डी दर्द तेल बनाने में इसका उपयोग होता है. साथ ही आंखों के इलाज़ में भी उपयोग होता है.

आंखों के इलाज़ में भी काम आती हैं पौधे की पत्तियां 
किसान बताते हैं कि जब किसी की आंखें आ जाती हैं तो इस पौधे की पत्तियों का रस डालने से तुरंत आंख सही हो जाती है. हमारे यहां जब भी किसी की आंखें आती हैं तो पत्ती रस ही डालकर ठीक करते हैं, सालों से यही उपचार करते आए हैं.

सूर्योदय के पहले ही निकलता है बीज 
किसान बताते हैं कि इस पौधे की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसका बीज अपने आप नहीं निकलता है. बीज निकालने के लिए सबसे पहले इस पौधे को काटा जाता है, फिर इसे छतों या खलिहानों में रखकर सुखाया जाता है. सूखने के बाद इसे कूटा जाता है. कूटने के बाद इसके बीज को रात में ही निकाल सकते हैं. सूर्योदय के बाद इसका बीज नहीं निकलता है, आप कितना भी प्रयास करें.

बाजार में बिकता है इतना महंगा 
किसान प्रेमचंद बताते हैं कि पहले इस पौधे को काटा जाता है, फिर इसे छतों या खलिहानों में रखकर सुखाया जाता है. सूखने के बाद इसे कूटा जाता है. कूटने के बाद बीज निकलता है, जिसे बाजार में बेचने जाते हैं. मार्केट में 150 से 200 रुपए किलो का भाव बिकती है.

पौधे को जानवर नहीं खाते हैं 
किसान प्रेमचंद बताते हैं कि इस पौधे की खासियत यह है कि इसे जानवर भी नहीं खाते हैं. इसलिए खेतों के किनारे लगा रहता है. हर साल बरसात में अपने आप उगती है. इसका बीज अपने आप नहीं निकलता है. कहने का मतलब है कि अपने आप नहीं झड़ता है.

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आंखों से घुटनों के दर्द तक…! औषधीय गुणों से भरपूर है यह देसी पौधा

Disclaimer: इस खबर में दी गई दवा/औषधि और स्वास्थ्य से जुड़ी सलाह, एक्सपर्ट्स से की गई बातचीत के आधार पर है. यह सामान्य जानकारी है, व्यक्तिगत सलाह नहीं. इसलिए डॉक्टर्स से परामर्श के बाद ही कोई चीज उपयोग करें. Local-18 किसी भी उपयोग से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगा.

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