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सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने आजम खान से रामपुर में मुलाकात के बाद पीडीए (दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक) पर अत्याचार का जिक्र किया. ये वही फॉर्मूला है जिसके जरिये सपा ने 2024 लोकसभा चुनावों में बीजेपी को यूपी में करारा झटका दिया था.

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आजम खान संग मुलाकात के बाद अखिलेश ने क्यों की PDA की बात, क्या है ये फॉर्मूलासपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और आजम खान के बीच बुधवार को रामपुर में मुलाकात हुई.

समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आज (बुधवार, 8 अक्टूबर) पार्टी के वरिष्ठ नेता आजम खान से रामपुर में उनके घर पर मुलाकात की. 23 महीने की कैद के बाद आजम खान की रिहाई के बाद यह दोनों नेताओं की पहली मुलाकात थी. यह मुलाकात मुख्य रूप से आजम खान की नाराजगी दूर करने और पार्टी के भीतर संतुलन स्थापित करने के उद्देश्य से की गई थी. सपा प्रमुख ने अपने दिग्गज नेता आजम खान के घर पर करीब दो घंटे से अधिक समय बिताया और उनके साथ दोपहर का भोजन (लंच) भी किया.

मुलाकात के बाद, अखिलेश यादव ने मीडिया से बात करते हुए अपनी पार्टी के नए नारे पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) का उल्लेख किया. अखिलेश यादव ने कहा कि पीडीए पर अत्याचार हो रहा है. इस बात पर जोर देने के लिए उन्होंने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में हुई घटना का हवाला दिया, जब एक वकील ने भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई पर कथित तौर पर जूता फेंकने की कोशिश की थी. दरअसल, पिछले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने ‘पीडीए’ का नया नारा दिया था. सपा प्रमुख अखिलेश यादव जानते थे कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का मुकाबला करने के लिए उन्हें कुछ नया करना होगा और अपना वोट आधार बढ़ाना होगा. इसी कारण, उन्होंने अपनी पुरानी रणनीति ‘एमवाई’ (मुस्लिम और यादव) के विस्तार के रूप में ‘पीडीए’ (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) का सहारा लिया. इस नए फॉर्मूले को 2027 के विधानसभा चुनावों के लिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. 

पीडीए यानी नई ‘सोशल इंजीनियरिंग’
2025 लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में 62 सीटों पर चुनाव लड़कर 37 सीटें जीतकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ प्रभावशाली प्रदर्शन किया था. यह उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनावों में सपा का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है. सपा का इससे पहले का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2004 के मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में 35 सीटें थीं. अखिलेश यादव का पीडीए पिछड़े, दलितों और अल्पसंख्यक मतदाताओं को एकजुट करने वाली ताकत के रूप में उभरा. अधिकांश सीटों पर उम्मीदवारों के चयन ने भी कमाल कर दिया. इस नई ‘सोशल इंजीनियरिंग’ की खासियत यह थी कि पार्टी आम तौर पर दलितों और खास तौर पर जाटवों का दिल जीतने में कामयाब रही, जिन्हें अब तक बसपा के पारंपरिक मतदाता माना जाता था. उसने केवल पांच यादव उम्मीदवार उतारे. ये सभी उम्मीदवार समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के परिवार के सदस्य थे. 

कैसे बढ़ गया सपा का वोट शेयर
पार्टी के वोट शेयर में भारी बढ़ोतरी के अलावा इस चुनाव ने सबसे बड़ी राजनीतिक परिकल्पनाओं में से एक को तोड़ दिया है कि दलित और यादव यूपी में कभी एकजुट नहीं हो सकते. इतना ही नहीं अखिलेश का पीडीए सभी जातियों और समुदायों में गूंज उठा. आश्चर्य नहीं कि 2019 के चुनावों की तुलना में पार्टी के वोट शेयर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई. एग्जिट पोल पर आधारित जातिगत आकलन के अनुसार अनुसूचित जाति के 65% वोट सपा को गए. यानी 2019 के चुनावों की तुलना में 21% की वृद्धि. इनमें से 32% जाटव वोट सपा को गए, हालांकि वे पारंपरिक रूप से बसपा के प्रतिबद्ध मतदाता रहे हैं. यह बदलाव केवल बसपा से सपा में नहीं हुआ, गैर-जाटव एससी मतदाताओं के आंकड़े बताते हैं कि उनमें से 9% ने 2019 के चुनावों में भाजपा को वोट दिया था.

सपा ने दिया सकारात्मक संदेश
2019 में सपा ने बसपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था. इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं थी कि दलितों ने सपा को वोट दिया. लेकिन 2024 में सपा ने बसपा के खिलाफ चुनाव लड़ा और उसे दलित समुदाय से जबरदस्त समर्थन मिला. पीडीए के प्रचार के अलावा पार्टी के रणनीतिकारों का कहना है कि संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने के लिए 400 सीटें मांगने वाली भाजपा दलित वोटों के झुकाव का एक बड़ा कारण रही. सपा ने अनारक्षित सीटों पर दो दलितों – फैजाबाद से अवधेश प्रसाद और मेरठ से सुनीता वर्मा – को मैदान में उतारा, जिससे भी दलित समुदाय में एक सकारात्मक संदेश गया. सपा को दो और महत्वपूर्ण जीतें रामपुर और मुरादाबाद से मिलीं. ये वो सीटें हैं जहां राज्य में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी है. 

हालांकि, यह सर्वविदित है कि अखिलेश यादव अपनी 2027 के यूपी चुनाव की तैयारियों को पीडीए फॉर्मूले के भरोसे आगे बढ़ा रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आजम खान से मुलाकात भी इसी पीडीए रणनीति को मजबूत करने का एक हिस्सा थी, खासकर अल्पसंख्यकों के बीच पार्टी की पकड़ बनाए रखने के लिए.

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आजम खान संग मुलाकात के बाद अखिलेश ने क्यों की PDA की बात, क्या है ये फॉर्मूला

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