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जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में छपी इस सर्वे कम रिसर्च में बताया गया है कि मोबाइल फोन की लत के चलते बच्चों और युवाओं की मेंटल हेल्थ पर न केवल बुरा असर पड़ रहा है बल्कि उनमें सुसाइड करने की प्रवृत्ति भी पैदा हो रही है. इतना ही नहीं स्मार्टफोन, सोशल मीडिया और वीडियो गेम्स के एडिक्शन के चलते इनमें कई तरह के मेंटल हेल्थ इश्यूज उभरकर आ रहे हैं.
इतना ही नहीं सोशल मीडिया व फोन की लत इस समय मनोवैज्ञानिक रोग बन चुकी है क्योंकि ये लोग स्क्रीन यूज का टाइम कम करने में खुद को अक्षम पा रहे हैं. ज्यादा स्क्रीन टाइम से बच्चों और युवाओं की फिजिकल एक्टिविटी, नींद, एकाग्रता और यहां तक कि दिमाग की शांति भी भंग हो रही है.सामाजिक और स्कूल या कॉलेजों में परफॉर्मेंस पर भी खराब असर पड़ रहा है.युवाओं और बच्चों में फोन को लेकर एक चलन देखा जा रहा है कि वे फोन का पैसिव यूज करते हैं, यानि सोशल मीडिया पर बिना इंटरेक्शन के स्क्रॉल करते रहते हैं और ऐसा घंटों तक करते हैं. मोबाइल के पैसिव यूज से अकेलापन, अवसाद और एंग्जाइटी बढ़ रही है. वहीं सोने जाने से पहले बेड पर फोन देखने से नींद न आना या अच्छी नींद न आना, डिप्रेशन और शारीरिक बीमारियां भी बढ़ रही हैं.
डॉ. खिलनानी कहते हैं कि भारतीय घरों में देखा जा रहा है कि छोटे बच्चों को बहलाने या व्यस्त रखने के लिए व्यस्क लोग 1 से 3 साल के बच्चों को फोन दिखाते हैं, ऐसा करके वे इन छोटे बच्चों को फोन की आदत और एडिक्शन की शुरुआत कर रहे हैं जो आगे चलकर काफी खतरनाक होने वाला है. बच्चों को फोन दिखाकर खाना खिलाना आज का सबसे खराब चलन है.
पागल होने से बचें
डॉ. कहते हैं कि अगर खुद को मेंटली बीमार नहीं करता है, पागल नहीं होना है तो सबसे जरूरी है कि स्क्रीन टाइम पर रोक लगा दें. न केवल बच्चों के लिए बल्कि अपने लिए और सभी के लिए ऐसा करें. बेड पर जाने से एक घंटे पहले फोन को एक तरफ रख दें और हाथ न लगाएं. बेडरूम में टीवी न लगाएं और न ही फोन देखें, उसे स्क्रीन फ्री रखें. नींद के घंटों को नियमित करें और आउटडोर एक्टिवटी करें.
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