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Agency:News18 Bihar

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Carrot Grass Control Tips: गाजर घास का नियंत्रण उनके प्राकृतिक शत्रुओं के ज़रिए भी किया जा सकता है. दरअसल, मेक्सिकन बीटल नामक एक कीट गाजर घास को खाने वाला कीट है, जिसे गाजर घास से ग्रसित स्थानों पर ही देखा जाता…और पढ़ें

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इस घास को छूने से हो सकता है कोढ़, मवेशियों ने खा लिया तो जहरीली हो जाती है दूध, ऐसे कर सकते हैं नष्ट

कांग्रेस ग्रास की तस्वीर 

पश्चिम चम्पारण. क्या आपको पता है कि हमारे खेतों में एक ऐसी घास भी उगती है, जो फसलों के लिए ही नहीं, बल्कि इंसान तथा पशुओं के लिए भी बेहद हानिकारक है. जानकार बताते हैं कि इस घास के संपर्क मात्र में आने से मनुष्यों में एलर्जी, बुखार, अस्थमा, चर्म रोग तथा कैंसर जैसी भयंकर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. सफेद फूल से हर वक्त लदे रहने के कारण इसे सफेद टोपी तथा चटक चांदनी के नाम से भी संबोधित किया जाता है. हालांकि मुख्य रूप से इसे गाजर घास तथा कांग्रेस ग्रास के नाम से जाना जाता है.

कृषि वैज्ञानिकों की माने तो ये घास सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि अमेरिका, मैक्सिको, वेस्टइंडीज, नेपाल, चीन, वियतनाम तथा आस्ट्रेलिया सहित दुनिया के 38 देशों में भी पाया जाता है. आश्चर्य की बात यह है कि ये घास जितनी आसानी से उग आते हैं, उतनी आसानी से सूखते नहीं हैं. इनका नाश करना मुश्किल है, लेकिन कुछ उपायों से इनका प्रबंधन किया जा सकता है.

गेहूं के साथ भारत में हुआ प्रवेश

माधोपुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र में कार्यरत कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि भारत में इस कांग्रेस ग्रास का प्रवेश सन 1955 में अमेरिका से आयात किए गए गेहूं के साथ हुआ था. बहुत कम समय में ही यह घास पूरे देश में एक भीषण प्रकोप की तरह बड़े भू-भाग पर फैल गया. इस घास की सबसे डरावनी बात यह है कि इसमें हर वातावरण में उगने की अभूतपूर्व क्षमता होती है. दिन हो या रात, यह हर स्थिति में लगातार अंकुरित होते रहता है.

खेत तथा बंजर ज़मीन सहित हर स्थान पर उगने में सक्षम

केवीके में कार्यरत यंग प्रोफेशनल श्रीराम ने लाेकल 18 को बताया कि कांग्रेस घास में किसी भी प्रकार की मिट्टी में उगने की अदभुत क्षमता होती है. यही कारण है कि इसे समुद्र तटीय क्षेत्रों, मध्यम से कम वर्षा वाले क्षेत्रों, जल से भरे स्थान तथा चट्टानी क्षेत्रों में भी बड़ी आसानी से देखा जाता है. इसके पौधे खेतों के अलावे सड़क किनारे, रेलवे लाइनों तथा अनुपयोगी बंजर ज़मीनों पर भी उग आते हैं. वर्तमान में इनका प्रकोप खाद्यान्न, दलहन, तिलहन, सब्जियों और बागवानी वाली फसलों में मुख्य रूप से देखा जा रहा है.

इंसान तथा पशुओं में भयंकर बीमारी का खतरा

सबसे डरावनी बात यह है कि इस घास के लगातार संपर्क में रहने से मनुष्यों में अस्थमा, डरमेटाइटिस, एक्जिमा, एलर्जी, बुखार सहित अन्य कई गंभीर बीमारियों का खतरा मंडराने लगता है. इतना ही नहीं, पशुओं के लिए यह घास अत्यधिक विषाक्त होती है. इसे खाने से उनमें अनेक प्रकार के रोग पैदा हो सकते हैं. इनमें दुधारू पशुओं के दूध में कड़वाहट तथा उत्पादकता में भी कमी जैसी बीमारियां मुख्य होती है.

ऐसे करें गाजर घास का नियंत्रण

बता दें कि पार्थेनियम ग्रास( गाजर घास) को खत्म करने के कई प्रयास किए गए हैं, लेकिन अब तक इसके विनाश को लेकर कोई पुख्ता समाधान नहीं निकल सका है. हालांकि एट्राजीन, अलाक्लोर, ड्यूरान तथा मेट्रिबुजिन के लगातार प्रयोग से इसके विकास को कंट्रोल किया जा सकता है. साथ ही 10 से 15 मिलीलीटर ग्लाइफोसेट को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से इसे उगने से रोका जा सकता है.

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बीमारियों का घर है यह घास, सिर्फ छूने से बढ़ सकती है कोढ़ और अस्थमा की संभावना

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