[ad_1]
मुरादाबाद: उत्तर प्रदेश का संभल जिला ना सिर्फ ऐतिहासिक कहानियों के लिए जाना जाता है, बल्कि यहां की धार्मिक आस्था भी देशभर में प्रसिद्ध है. इसी आस्था का प्रतीक है संभल शहर में स्थित पातालेश्वर महादेव मंदिर, जो अपनी रहस्यमयी मान्यता और हजारों साल पुरानी आस्था के कारण श्रद्धालुओं को खास तौर पर आकर्षित करता है. इस मंदिर में स्थापित भगवान शिव का शिवलिंग इतना गहरा है कि इसके बारे में कहा जाता है कि इसका आधार पाताल लोक तक जाता है. इसी वजह से इसे पातालेश्वर मंदिर कहा जाता है.
स्थानीय लोगों का मानना है कि कई बार शिवलिंग की गहराई जानने और उसे बाहर निकालने की कोशिश की गई, लेकिन यह शिवलिंग आज तक अपनी जगह से हिला तक नहीं. यहां के लोगों के अनुसार, शिवलिंग को उखाड़ने के लिए जब भी प्रयास किया गया, तो खुदाई करते-करते सिर्फ पानी ही निकलता रहा, लेकिन शिवलिंग का अंत नहीं मिल सका.
मंदिर के पुजारी ने बताई पौराणिक कथा
पातालेश्वर मंदिर के पुजारी जुगलकिशोर बताते हैं कि यह मंदिर “पक्का बाघ” क्षेत्र में स्थित है और इसे प्राचीन सिद्धपीठ माना जाता है. उन्होंने बताया कि मुगलों के दौर में इस मंदिर को कई बार नुकसान पहुंचाया गया था. लेकिन वर्ष 1584 में यहां जब खेत की जुताई हो रही थी, तब हल चलाते समय एक बड़ा पत्थर मिला. उस समय लोगों को नहीं पता था कि यह कोई धार्मिक स्थल है. उन्होंने उसे सिर्फ पत्थर समझ कर फावड़े से खोदना शुरू कर दिया. खुदाई करते-करते जब शिवलिंग नजर आया, तब जाकर लोगों को इसकी महत्वता का एहसास हुआ.
पातालेश्वर मंदिर के पुजारी जुगलकिशोर बताते हैं कि यह मंदिर “पक्का बाघ” क्षेत्र में स्थित है और इसे प्राचीन सिद्धपीठ माना जाता है. उन्होंने बताया कि मुगलों के दौर में इस मंदिर को कई बार नुकसान पहुंचाया गया था. लेकिन वर्ष 1584 में यहां जब खेत की जुताई हो रही थी, तब हल चलाते समय एक बड़ा पत्थर मिला. उस समय लोगों को नहीं पता था कि यह कोई धार्मिक स्थल है. उन्होंने उसे सिर्फ पत्थर समझ कर फावड़े से खोदना शुरू कर दिया. खुदाई करते-करते जब शिवलिंग नजर आया, तब जाकर लोगों को इसकी महत्वता का एहसास हुआ.
राजस्थान के नवाब ने भी की थी जांच
पुजारी ने बताया कि उस समय राजस्थान के नवाब गयासुद्दीन यहां के जमींदार हुआ करते थे. जब उन्हें इस रहस्यमयी शिवलिंग की जानकारी दी गई, तो उन्होंने खुद भी इसकी गहराई की जांच करवाई. जब खुदाई में पानी तो निकला लेकिन शिवलिंग का अंत नहीं मिला, तब नवाब ने कहा कि अगर आपकी मान्यता है कि यह भोलेनाथ का प्रकट स्थान है, तो आप यहां मंदिर बना सकते हैं. तभी से यहां पातालेश्वर मंदिर की स्थापना हुई.
[ad_2]
Source link