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सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट की स्टडी के अनुसार, एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस से 2050 तक इलाज की लागत 159 अरब डॉलर हो सकती है. निम्न और मध्यम आय वाले देशों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा.

हाइलाइट्स
- एंटीबायोटिक प्रतिरोध से इलाज की लागत 2050 तक 159 अरब डॉलर हो सकती है.
- निम्न और मध्यम आय वाले देशों पर एंटीबायोटिक प्रतिरोध का सबसे ज्यादा असर पड़ेगा.
- एंटीबायोटिक प्रतिरोध से 2050 तक मौतें 60% बढ़ सकती हैं.
इन प्रतिरोधी बैक्टीरिया को सुपरबग्स कहते हैं जो सामान्य दवाओं पर असर नहीं होने देते. इससे अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या और इलाज की अवधि बढ़ जाती है और उनका इलाज भी ज़्यादा मुश्किल और महंगा हो जाता है. अध्ययन के अनुसार, यह समस्या खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में ज्यादा गंभीर होगी, जहां संसाधन सीमित हैं.
अध्ययन में इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएचएमई) के डेटा का इस्तेमाल किया गया, जिसमें अनुमान है कि साल 2050 तक एंटीबायोटिक प्रतिरोध से होने वाली मौतें 60 फीसदी बढ़ सकती हैं. साल 2025 से 2050 के बीच 3.85 करोड़ लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं.
सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट के पॉलिसी फेलो एंथनी मैकडॉनेल के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने बताया, “एंटीबायोटिक प्रतिरोध का सबसे ज्यादा असर निम्न और मध्यम आय वाले देशों पर पड़ता है. यह स्वास्थ्य देखभाल की लागत को बढ़ाता है और वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है.”
शोध में सुझाव दिया गया है कि नई और प्रभावी दवाओं के शोध को बढ़ावा देना, एंटीबायोटिक्स का सही इस्तेमाल सुनिश्चित करना और उच्च गुणवत्ता वाले इलाज तक पहुंच बढ़ाना जरूरी है. अगर एंटीबायोटिक प्रतिरोध से होने वाली मौतें रोकी जाएं, तो साल 2050 तक दुनिया की आबादी 2.22 करोड़ ज्यादा होगी. यह अध्ययन सरकारों और स्वास्थ्य संगठनों के लिए तुरंत कदम उठाने की जरूरत को बताता है.
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