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New Study on Antibiotic Resistance: दुनियाभर में एंटीबायोटिक रजिस्टेंस से निपटने के तरीके खोजे जा रहे हैं. इसी बीच भारतीय वैज्ञानिकों ने इस समस्या का समाधान खोज निकाला है. इससे एंटीबायोटिक दवाएं ज्यादा असरदार ह…और पढ़ें

एंटीबायोटिक रजिस्टेंस के खिलाफ नई रणनीति वैज्ञानिकों ने खोज ली है.
हाइलाइट्स
- भारतीय वैज्ञानिकों ने एंटीबायोटिक रजिस्टेंस का समाधान खोज निकाला है.
- इस स्ट्रेटजी से पोरिन्स को टारगेट कर दवाएं बैक्टीरिया के अंदर पहुंच सकेंगी.
- IIT मद्रास और TIFR हैदराबाद ने भी इस रिसर्च में अहम योगदान दिया है.
Antibiotic Resistance Solution: दुनियाभर में एंटीबायोटिक रजिस्टेंस के मामले बढ़ रहे हैं और हेल्थ एक्सपर्ट्स इसे भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती मान रहे हैं. जब हमारे शरीर के अंदर मौजूद घातक बैक्टीरिया किसी एंटीबायोटिक दवा के प्रति रजिस्टेंस डेवलप कर लेते हैं, तो वह दवा बैक्टीरिया को मार नहीं पाती है और बेअसर साबित होने लगती है. इससे बैक्टीरियल इंफेक्शन को खत्म करना मुश्किल हो जाता है. इस रजिस्टेंस के कारण एंटीबायोटिक दवाएं सही तरीके से शरीर के अंदर नहीं पहुंच पाती हैं. ऐसे में बैक्टीरियल इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है और ट्रीटमेंट की इफेक्टिवनेस भी कम हो जाती है.
अब भारत के तिरुवनंतपुरम स्थित राजीव गांधी सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी (RGCB) के वैज्ञानिकों ने इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए एक अनोखी स्ट्रेटेजी डेवलप की है, जिसे अपनाकर एंटीबायोटिक रजिस्टेंस की दीवार को तोड़ा जा सकेगा. वैज्ञानिकों ने बताया है कि बैक्टीरिया की बाहरी झिल्ली में मौजूद पोरिन्स (Porins) को टारगेट किया जाए, तो एंटीबायोटिक दवा बैक्टीरिया के अंदर पहुंचकर उसे खत्म कर सकती है. पोरिन्स एक प्रकार के प्रोटीन चैनल होते हैं जो बैक्टीरिया की दीवार में मौजूद होते हैं और दवाओं को अंदर जाने में मदद करते हैं. इन पोरिन्स को टारगेट करने से रजिस्टेंस को भेदा जा सकता है.
वैज्ञानिकों के मुताबिक जब बैक्टीरिया इन पोरिन्स की संख्या या उनकी फंक्शनिंग में बदलाव कर देते हैं, तो दवाएं उनके अंदर नहीं जा पाती हैं. इससे एंटीबायोटिक रजिस्टेंस पैदा हो जाता है और दवाएं बेअसर हो जाती हैं. शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन के लिए क्लेबसिएला न्यूमोनिया (Klebsiella pneumoniae) नामक बैक्टीरिया को चुना. यह एक घातक बैक्टीरिया है, जिसे WHO ने हाई प्रायोरिटी वाले रोगजनकों की सूची में शामिल किया है. इस बैक्टीरिया में पाया गया एक विशेष पोरिन CymAKp शोध का प्रमुख विषय रहा. वैज्ञानिकों ने पाया कि यह पोरिन विशेष रूप से चक्रीय शर्करा (cyclic sugars) को अपने अंदर लेने में सक्षम होता है, जो इसे अन्य पोरिन्स से अलग बनाता है.
इस रिसर्च में बायोफिजिकल तकनीकों और कंप्यूटर सिमुलेशन्स की मदद ली गई है. वैज्ञानिकों ने CymAKp की संरचना और कार्यप्रणाली का बारीकी से विश्लेषण किया और यह जाना कि कैसे यह पोरिन दवाओं को बैक्टीरिया के अंदर जाने में मदद कर सकता है. इससे यह समझने में मदद मिली कि पोरिन्स को टारगेट करके दवा-प्रतिरोधी बैक्टीरिया से कैसे निपटा जा सकता है. यह रिसर्च वर्क केवल RGCB तक सीमित नहीं था. इसमें IIT मद्रास और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च हैदराबाद के एक्सपर्ट्स ने भी योगदान दिया. उन्होंने अपनी लैब्स के जरिए इस रिसर्च को कंप्लीट करने में मदद की.
RGCB के डायरेक्टर प्रोफेसर चंद्रभास नारायण ने कहा कि बैक्टीरिया की बढ़ती एंटीबायोटिक रजिस्टेंस क्षमता मेडिकल इंडस्ट्री के लिए बड़ी चुनौती है. खासकर फार्माकोलॉजिस्ट्स के लिए यह गंभीर चैलेंज है. उन्होंने इस रिसर्च को एक नया द्वार बताया, जो टारगेटेड एंटीबायोटिक्स को बेहतर तरीके से बैक्टीरिया के अंदर पहुंचाने की दिशा में मदद कर सकता है. यह खोज केवल एक शैक्षणिक सफलता नहीं है, बल्कि यह व्यावहारिक रूप से भी बेहद महत्वपूर्ण है. CymAKp जैसे पोरिन्स के माध्यम से दवाओं को फिर से प्रभावी बनाना संभव हो सकता है. इससे पहले से मौजूद एंटीबायोटिक्स को नए सिरे से उपयोग में लाया जा सकता है, जिससे नई दवाएं बनाने की जरूरत कम हो सकती है. आने वाले समय में यह शोध दवा कंपनियों और हेल्थकेयर इंडस्ट्री के लिए नई रणनीतियां विकसित करने की नींव रख सकता है.

अमित उपाध्याय News18 Hindi की लाइफस्टाइल टीम में सीनियर सब-एडिटर के तौर पर काम कर रहे हैं. उन्हें प्रिंट और डिजिटल मीडिया में करीब 8 साल का अनुभव है. वे हेल्थ और लाइफस्टाइल से जुड़े टॉपिक पर स्टोरीज लिखते हैं. …और पढ़ें
अमित उपाध्याय News18 Hindi की लाइफस्टाइल टीम में सीनियर सब-एडिटर के तौर पर काम कर रहे हैं. उन्हें प्रिंट और डिजिटल मीडिया में करीब 8 साल का अनुभव है. वे हेल्थ और लाइफस्टाइल से जुड़े टॉपिक पर स्टोरीज लिखते हैं. … और पढ़ें
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