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गाजियाबाद: गाजियाबाद का टाउन हॉल सिर्फ एक ईमारत नहीं, बल्कि शहर की आत्मा है. इसका इतिहास जितना गौरवशाली है, उतना ही दिलचस्प भी. कभी ब्रिटिश हुकूमत का प्रशासनिक केंद्र रहा यह भवन, आज आम जनता की समस्याओं के समाधान का जरिया बन चुका है. इस टाउन हॉल ने देखा है हुकूमत का रौब, आजादी की हलचल और लोकतंत्र की स्थापना. आइए जानते हैं, इस ऐतिहासिक इमारत के निर्माण से लेकर आज तक के सफर की पूरी कहानी.
इस भवन का उपयोग पहले डिस्ट्रिक्ट कलेक्टरेट के रूप में किया गया. अंग्रेज अफसर यहीं बैठकर नीतियां बनाते, आदेश जारी करते और स्थानीय मामलों की निगरानी करते थे. टाउन हॉल में ही उस समय की अदालतें, रजिस्ट्रेशन कार्यालय और गुप्त सभाएं होती थीं. यह सिर्फ ईंट और पत्थर की इमारत नहीं, बल्कि सत्ता का केंद्र था. इस भवन में पहले आम आदमी को बुलाया जाता था फरमान सुनाने के लिए, आज वहीं आम आदमी अपनी समस्या लेकर आता है. शिकायत रजिस्टर में दर्ज होती है, अधिकारी सुनवाई करते हैं और समाधान के प्रयास होते हैं. यह परिवर्तन सिर्फ भूमिका का नहीं, सोच का भी है – हुकूमत से सेवा तक का बदलाव.
1947 में भारत आजाद हुआ. अंग्रेज चले गए, लेकिन टाउन हॉल वहीं खड़ा रहा. इतिहास का मूक साक्षी बनकर. आज़ादी के बाद प्रशासनिक व्यवस्था बदली, पर इस भवन की उपयोगिता बनी रही. पहले इसे सरकारी दफ्तरों के रूप में इस्तेमाल किया गया, फिर धीरे-धीरे यह गाजियाबाद नगर निगम के जोनल ऑफिस में तब्दील हो गया. वर्ष 1971 में दिनेश चंद्र गर्ग नगर पालिका के चेयरमैन बने. उसे वक्त उन्होंने टाउन हॉल में लोगों के देखने के लिए टीवी लगाया था. शाम के 6:30 से 8 तक लोगों के लिए टीवी चलाया जाता था, जिसे देखने के लिए भीड़ उमड़ती थी.
व्यापारी जगत प्रकाश गर्ग बताते है कि अंग्रेजों के समय का बने हुए टाऊन हॉल में आज गाजियाबाद नगर निगम का जोनल ऑफिस बना हुआ है. 70 और 80 के दशक में जब टीवी हर घर में नहीं था, तब इसी टाउन हॉल के प्रांगण में तत्कालीन चेयरमैन दिनेश चंद्र गर्ग द्वारा ब्लैक एंड व्हाइट टीवी लगाया गया था. लोग दूर-दूर से आकर समाचार, क्रिकेट मैच और रामायण जैसे धारावाहिक देखने आते थे. यह जगह लोगों के मिलने-जुलने, चर्चा करने और सामुदायिक जुड़ाव का केंद्र बन गई थी.
आज की स्थिति
आज यह इमारत नगर निगम के अंतर्गत आने वाले सिटी जोन का प्रमुख कार्यालय है. यहां से क्षेत्रीय स्वच्छता, कर संग्रह, भवन निर्माण अनुमति, जल आपूर्ति और जन शिकायतों का निस्तारण होता है. आधुनिक तकनीक और कंप्यूटरों ने भले ही दस्तावेज़ों को बदल दिया हो, लेकिन टाउन हॉल की आत्मा अब भी जीवित है.
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