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Agency:News18 Uttar Pradesh

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Champions Trophy: चैंपियंस ट्रॉफी के बीच हर किसी की नजर खिलाड़ी और उनके बल्ले पर रहती है. कौन सा शॉट आने वाला है ,ऐसे में बल्ले की अगर बात की जाए तो बड़ी संख्या में भारतीय खिलाड़ियों के साथ-साथ विदेशी खिलाड़ी भ…और पढ़ें

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कराची-लाहौर से लेकर दुबई तक गूंजा भारत के इस शहर का नाम, यहां के बने बल्लों से खिलाड़ी मचा रहे धमाल

सांकेतिक फोटो

हाइलाइट्स

  • मेरठ के बने बल्ले खिलाड़ियों की पहली पसंद हैं.
  • भारतीय और विदेशी खिलाड़ी मेरठ के बल्लों से खेलते हैं.
  • मेरठ के बल्ले 60 से ज्यादा देशों में एक्सपोर्ट होते हैं.

मेरठ: अगर क्रांति धरा मेरठ की पहचान की जाए, तो यह सिर्फ इतिहास में ही नहीं, बल्कि स्पोर्ट्स सिटी के रूप में भी दुनियाभर में मशहूर है. यहां बने स्पोर्ट्स प्रोडक्ट्स की डिमांड न सिर्फ भारत में, बल्कि विदेशों में भी जबरदस्त है. खासतौर पर क्रिकेट बैट की बात करें, तो मेरठ के बने बल्ले कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में खिलाड़ियों की पहली पसंद बने हुए हैं. अब यही नजारा आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी 2025 में भी देखने को मिल रहा है, जहां भारतीय ही नहीं, विदेशी खिलाड़ी भी मेरठ के बने बैट से खेलते हुए नजर आ रहे हैं.

सूरजकुंड स्पोर्ट्स गुड्स मार्केट के अध्यक्ष अनुज कुमार सिंघल ने लोकल-18 से खास बातचीत में बताया कि मेरठ के क्रिकेट बैट की डिमांड दुनियाभर में है. भारतीय क्रिकेटरों में सिक्सर किंग रिंकू सिंह, सूर्यकुमार यादव, हार्दिक पांड्या, विराट कोहली जैसे दिग्गज खिलाड़ी मेरठ के बने बल्लों से ही खेलते हैं. इतना ही नहीं, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, साउथ अफ्रीका सहित कई अन्य देशों के खिलाड़ी भी मेरठ के बल्लों के दीवाने हैं. वे यहां की प्रसिद्ध स्पोर्ट्स कंपनियों से अपनी पसंद के बल्ले खरीदते हैं.

खुद चुनते हैं बल्ले की क्वालिटी
अनुज कुमार सिंघल ने बताया कि कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी मेरठ की एसजी और एसएस कंपनियों में आकर अपने पसंदीदा बल्ले तैयार करवाते हैं. कई बार खिलाड़ी अपने अनुसार बल्ले में फिनिशिंग और बैलेंस चाहते हैं, इसलिए वे खुद मौजूद रहकर बैट की शेप और वेट को फाइनल कराते हैं. बल्लों की कीमत ₹80,000 से लेकर लाखों रुपये तक होती है, जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर्स के लिए बनाए जाते हैं.

मेरठ में ऐसे हुई स्पोर्ट्स इंडस्ट्री की शुरुआत
मेरठ की क्रिकेट सामग्री के इतिहास पर नजर डालें, तो इसकी शुरुआत भारत-पाकिस्तान विभाजन (1947) के समय हुई थी. सियालकोट (अब पाकिस्तान) से आए रिफ्यूजी यहां बैट और अन्य स्पोर्ट्स गियर बनाने लगे और यहीं से मेरठ की स्पोर्ट्स इंडस्ट्री को नई पहचान मिली. आज मेरठ के हाथ से बने बल्ले दुनिया के 60 से ज्यादा देशों में एक्सपोर्ट किए जाते हैं, और बड़े-बड़े क्रिकेट टूर्नामेंट में इनका दबदबा कायम है.

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