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Autism In Children: ऑटिज्म बच्चों में एक गंभीर समस्या है जिसका इलाज जितना जल्दी शुरू हो जाए उतना अच्छा है. इन्हें समान्य बच्चों की तरह ट्रीट करना इनके लिए अच्छा होता है.

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कहीं आपका बच्चा भी तो नहीं करता अलग सी हरकतें, ऐसे पहचानें लक्षण, जल्द इलाज से होगा बचाव

ऑटिज़्म के शुरुआती लक्षणों को पहचान बच्चे को दे ऐसा माहौल

हाइलाइट्स

  • ऑटिज्म बच्चों में जल्दी पहचानना जरूरी है.
  • सामान्य बच्चों की तरह ट्रीट करना फायदेमंद है.
  • डीएवी पीजी कॉलेज में जागरूकता अभियान चल रहा है.

Autism In Children: अगर आपने आमिर खान की फिल्म तारे ज़मीन पर और प्रियंका चोपड़ा की बर्फी फिल्म देखी है, तो इनमें दो खास किरदारों पर गौर किया होगा. तारे ज़मीन पर फिल्म में ईशान का किरदार अगर आप देखते हैं, तो उसे सामान्य बच्चों के साथ घुलने-मिलने और पढ़ने में दिक्कत होती है. वहीं, बर्फी फिल्म में भी प्रियंका चोपड़ा बड़ी होकर भी बच्चों की तरह व्यवहार करती हैं.

इस साइकोलॉजिकल परिस्थिति को ऑटिज्म कहा जाता है. इसके शुरुआती लक्षणों को पहचानना बहुत जरूरी है और इसके साथ ही इस तरह के बच्चों को एक अच्छा माहौल देना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है. इसके लिए जागरूकता जरूरी है.

चल रहा है अभियान
देहरादून के डीएवी पीजी कॉलेज में ऑटिज्म जागरूकता अभियान शुरू किया गया है, ताकि इससे जूझ रहे बच्चों को कक्षा में अन्य छात्रों के साथ रहकर सही से पढ़ने का मौका मिल पाए और शिक्षक के अलावा अभिभावक अपने इस तरह के बच्चों को कैसा माहौल दें, इसके लिए जागरूकता कार्यशाला आयोजित की जा रही है.

सामान्य बच्चों की तरह रखें
डीएवी पीजी कॉलेज के प्रिंसिपल एस. के. सिंह ने बताया कि कॉलेज में वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे से ऑटिज्म जागरूकता अभियान की शुरुआत की गई. इसमें न्यूरोडायवर्सिटी पर चर्चा की गई. इसका उद्देश्य ऑटिज्म स्पेक्ट्रम पर मौजूद व्यक्तियों के लिए समझ, सहानुभूति और समावेशी दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है. उन्होंने कहा कि अगर इस बीमारी से पीड़ित बच्चों को सामान्य बच्चों के साथ रखा जाता है, तो वे उनसे बहुत कुछ सीखते हैं.

जल्दी मिलना चाहिए इलाज
एम.डी. साइकियाट्री डॉ. दिव्या घई चोपड़ा ने बताया कि ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर यानी ऑटिज्म की जल्दी पहचान कर उसका निदान और इलाज करने की जरूरत होती है. उन्होंने बताया कि ऑटिज्म में बच्चा एक ही तरह की हरकतें करता है और उसे सामाजिक मेल-जोल से बहुत परेशानी होती है. बच्चे के बड़े हो जाने पर भी यही स्थिति बनी रहती है. उन्होंने बताया कि 100 बच्चों में से एक बच्चा इस बीमारी से पीड़ित होता है. अगर बच्चे को शुरुआत में समझा जाए, तो उसे अच्छा माहौल दिया जा सकता है.

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