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Agency:News18 Uttar Pradesh
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चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में चल रहे हाइब्रिडाइजेशन शोध के तहत, सरसों की 18 प्रजातियों पर काम किया जा रहा है, जिससे किसानों को बेहतर बीज और अधिक उत्पादन मिल सकेगा. इस शोध का उद्देश्य सरसों की फसल में सुधार ल…और पढ़ें

फील्ड में शोध करते हुए छात्र
हाइलाइट्स
- चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में सरसों पर हाइब्रिडाइजेशन शोध चल रहा है.
- शोध में 18 प्रकार की सरसों की किस्मों पर काम किया जा रहा है.
- इससे किसानों को बेहतर बीज और अधिक उत्पादन मिलेगा.
मेरठ: पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ और आसपास के जिलों में गेहूं के साथ-साथ किसान सरसों की खेती भी करते हैं. हालांकि, किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या यह रहती है कि वे सरसों की फसल की देखभाल किस प्रकार करें, ताकि उन्हें नुकसान न हो और अच्छा बीज भी उपलब्ध हो सके. इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय परिसर में स्थित प्रजनन एवं पादप विभाग में हाइब्रिडाइजेशन तकनीक पर अनुसंधान चल रहा है. इसमें 18 प्रकार की सरसों की किस्मों को आपस में मेल-फीमेल करके बेहतर बीज तैयार करने की दिशा में काम किया जा रहा है.
किसानों के लिए महत्वपूर्ण है यह अनुसंधान
प्रोफेसर डॉ. शैलेंद्र सिंह गौरव ने बताया कि यह अनुसंधान किसानों के लिए काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें 18 प्रकार के मस्टर्ड के बीजों को मेल और फीमेल लाइन और टेस्टर्स में लगाकर हाइब्रिडाइजेशन की प्रक्रिया से बेहतर बीज तैयार किए जा रहे हैं. हाइब्रिडाइजेशन एक प्रजनन तकनीक है, जिसमें दो अलग-अलग पौधों के बीच क्रॉस-पॉलिनेशन किया जाता है, ताकि उनके वांछनीय गुण एक ही पौधे में मिल सकें.
यह विधि होती है काफी महत्वपूर्ण
शोधकर्ताओं विजय धामा और नेहा चौधरी ने बताया कि इस तकनीक के दो मुख्य चरण हैं एमैस्क्युलेशन (Emasculation) और परागण (Pollination). एमैस्क्युलेशन में मादा पौधे के पुंकेसर को हटा दिया जाता है, ताकि आत्म-परागण (self-pollination) न हो सके. परागण में, नर पौधे के परागकोष (anther) से मादा पौधे के परागकोष में परागकण (pollen) को स्थानांतरित किया जाता है, जिससे दोनों किस्मों के गुण एक ही पौधे में मिल जाते हैं. इससे एक बेहतर किस्म तैयार की जा सकती है. इस तकनीक के बाद, किसानों को एक बेहतर बीज मिलेगा, जिसमें प्रतिरोधक क्षमता अधिक होगी, उत्पादन बढ़ेगा और तेल की गुणवत्ता में भी सुधार होगा.
शोध के लिए विश्वविद्यालय परिसर में जमीन आरक्षित
बता दें कि विश्वविद्यालय परिसर में विभिन्न शोधों के लिए जमीन आरक्षित की गई है, जहां पर सरसों सहित अन्य पौधों पर भी शोध कार्य चल रहे हैं. इस शोध के द्वारा किसानों को बेहतर बीज मिलने की उम्मीद है, जो उनकी कृषि में मदद करेगा.
Meerut,Uttar Pradesh
February 16, 2025, 20:30 IST
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