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Reaper Machine: रीपर मशीन ने कौशांबी के किसानों की खेती को आसान और फायदेमंद बना दिया है. अब किसान पराली को भूसे में बदलकर पर्यावरण सुरक्षित रखते हैं और पशुओं के लिए सस्ता चारा भी तैयार करते हैं.

रिपर मशीन
हाइलाइट्स
- रीपर मशीन से खेती आसान और फायदेमंद हुई.
- पराली को भूसे में बदलकर पर्यावरण सुरक्षित.
- पशुओं के लिए सस्ता चारा तैयार हो रहा है.
कौशांबी: भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां की बड़ी आबादी खेती पर निर्भर करती है. गांवों में किसान सालभर मेहनत कर अनाज उगाते हैं, जिससे उनका और उनके परिवार का जीवन चलता है. गेहूं और चावल जैसी फसलें प्रमुख रूप से उगाई जाती हैं, लेकिन इनमें सबसे ज्यादा मेहनत गेहूं की कटाई और मड़ाई में करनी पड़ती है. खासकर जब खेतों में मजदूरों की कमी हो जाती है, तब किसान काफी परेशान हो जाते हैं. लेकिन अब तकनीक ने इस परेशानी को काफी हद तक कम कर दिया है.
गेंचेंजर है रीपर मशीन
आज के दौर में खेती में तकनीकी मशीनों का खूब उपयोग हो रहा है. उन्हीं में से एक है रीपर मशीन, जो किसानों के लिए गेमचेंजर साबित हो रही है. पहले किसान हार्वेस्टर मशीन से गेहूं की मड़ाई तो करवा लेते थे, लेकिन खेत में बची पराली का कोई खास इस्तेमाल नहीं होता था. नतीजतन, किसान उसे जला देते थे, जिससे पर्यावरण प्रदूषण फैलता था. सरकार ने भी पराली जलाने पर सख्ती की थी. लेकिन अब रीपर मशीन की मदद से किसान खेत में पड़ी पराली को भूसे में बदल रहे हैं. यह भूसा पशुओं के चारे के तौर पर काम आता है, जिससे किसान को दोहरा फायदा हो रहा है- एक तरफ पर्यावरण सुरक्षित हो रहा है और दूसरी तरफ पशुओं के लिए सस्ता चारा भी तैयार हो रहा है.
मशीन से बन रहा है भूसा
कौशांबी जिले के किसान भी अब इस तकनीक को अपना रहे हैं. पहले जहां मजदूरों से गेहूं कटवाने में समय और पैसा ज्यादा लगता था, वहीं अब किसान पहले हार्वेस्टर से फसल की मड़ाई कराते हैं, फिर रीपर मशीन से भूसा बनवा लेते हैं. इससे खेत भी साफ हो जाते हैं और अतिरिक्त आमदनी का रास्ता भी खुलता है. ज्यादातर किसानों का कहना है कि यह तकनीक समय, पैसा और मेहनत- तीनों की बचत कर रही है. अब उन्हें न मजदूरों की चिंता है, न पराली जलाने का डर. कुल मिलाकर, रीपर और हार्वेस्टर जैसी तकनीक ने खेती को आसान और फायदेमंद बना दिया है.
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