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बहराइच: किसानों के सामने खेती में “कीटों का हमला” सबसे बड़ी मुश्किल होता है. फसल पर कीट लगते ही मेहनत पर पानी फिर जाता है. ऐसे में ज्यादातर किसान तुरंत रसायन की तरफ भागते हैं. लेकिन रसायनों का लगातार इस्तेमाल ना सिर्फ मिट्टी को खराब करता है, बल्कि फसल की गुणवत्ता भी गिरा देता है. इसके अलावा खर्चा भी काफी बढ़ जाता है. लेकिन अब किसानों को राहत देने वाली एक आसान और सस्ती “ट्रैप शीट” तकनीक सामने आई है.
ये ट्रैप शीट दो रंगों में आती है- नीली और पीली. इसकी कीमत भी बहुत ज्यादा नहीं है. किसान इसे 200 से 300 रुपए में आसानी से खरीद सकते हैं और अपने खेतों में कीट नियंत्रण कर सकते हैं. इस शीट में पहले से ही गोंद लगी होती है. जैसे ही कीट इसके पास आते हैं, उसमें चिपक जाते हैं. इससे कीटों की संख्या खुद-ब-खुद कम हो जाती है और फसल सुरक्षित रहती है.
कैसे लगाई जाती है ट्रैप शीट?
ट्रैप शीट का सबसे बड़ा फायदा ये है कि ये लगभग सभी तरह की फसलों में काम आती है. अगर फसल छोटी है तो एक लकड़ी या छड़ी के सहारे इसे फसल के पास लगाया जाता है. जैसे-जैसे फसल बढ़ती है, वैसे-वैसे ट्रैप शीट की ऊंचाई भी बढ़ाई जाती है. ट्रैप शीट को ऊपर और नीचे से छेद कर धागे की मदद से मजबूती से बांधा जाता है ताकि हवा से उड़ न जाए.
किन-किन कीटों से मिलेगी राहत?
ट्रैप शीट का इस्तेमाल सफेद मक्खी, लीफ माइनर, एफिड, थ्रिप्स, फल मक्खी, और पतंगे जैसे कीटों से निपटने में होता है. इतना ही नहीं, इसका इस्तेमाल खेत के अलावा घरों में भी कीट नियंत्रण के लिए किया जा सकता है. इसका मतलब, ये सिर्फ किसानों के लिए ही नहीं, बल्कि आम लोगों के लिए भी फायदेमंद है.
नीली और पीली शीट में क्या अंतर है?
पीली स्टिकी ट्रैप शीट मुख्य रूप से सफेद मक्खी, एफिड, लीफ माइनर और फल मक्खियों को आकर्षित करती है.
नीली स्टिकी ट्रैप शीट खासतौर पर थ्रिप्स नाम के कीटों को पकड़ने के लिए होती है.
इस तकनीक को बहराइच के कृषि विज्ञान केंद्र में ट्रायल के तौर पर इस्तेमाल किया गया, जहां इसका असर काफी अच्छा देखा गया. इस विषय पर जानकारी देते हुए कृषि वैज्ञानिक प्रियंका सिंह ने बताया कि ट्रैप शीट के इस्तेमाल से किसान अब रसायनों पर निर्भर नहीं रह गए हैं. कीटों से फसल की रक्षा भी हो रही है और लागत में भी कमी आ रही है.
किसानों के लिए वरदान बनी ट्रैप शीट
आज के समय में जहां किसान बढ़ते खर्च और घटते मुनाफे से परेशान हैं, ऐसे में ट्रैप शीट जैसी तकनीक कम लागत में ज्यादा फायदा देने का काम कर रही है. न रसायन का खर्च, न मिट्टी का नुकसान और न ही फसल की बर्बादी. किसानों को अब सिर्फ जागरूक होकर इस तकनीक को अपनाने की जरूरत है.
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