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सुल्तानपुर: जहां एक तरफ मेडिकल उपकरणों की कीमतें आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं, वहीं उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के छात्रों ने एक ऐसा नवाचार कर दिखाया है, जो आने वाले समय में न जाने कितनी जिंदगियों को राहत दे सकता है. कमला नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (KNIT) के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के अंतिम वर्ष के छात्रों ने एक सस्ता, हल्का और बैटरी से चलने वाला पोर्टेबल वेंटिलेटर तैयार किया है, जिसे कहीं भी ले जाया जा सकता है और मरीज को तुरंत ऑक्सीजन दी जा सकती है.

इस वेंटिलेटर को खासतौर पर उन मरीजों के लिए डिजाइन किया गया है, जिन्हें सांस लेने में दिक्कत होती है. यह मशीन आपात स्थिति में बहुत काम आ सकती है.

कैसे बना ये वेंटिलेटर?
इस इनोवेटिव प्रोजेक्ट को यश मिश्रा, सिद्धांत मोहन ओझा, वैभव यादव और आदित्य रौनियार ने तैयार किया है. टीम के सदस्य वैभव यादव ने लोकल18 से बातचीत में बताया कि उन्होंने इस मशीन को तैयार करने में Arduino Uno, SpO₂ सेंसर और एयर प्रेशर मॉनिटरिंग जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया है. यह डिवाइस मरीज के शरीर के ऑक्सीजन स्तर और वायुदाब की स्थिति को भी रियल टाइम में ट्रैक कर सकता है.

टीम का कहना है कि महामारी के दौरान अस्पतालों में वेंटिलेटर की कमी ने उन्हें इस दिशा में सोचने को मजबूर किया. उस समय ऑक्सीजन और वेंटिलेटर की मारामारी देखा. इसके बाद उनके दिमाग में आया है कि एक ऐसा सिस्टम बनाया जाए, जो सस्ता, भरोसेमंद और हर जगह इस्तेमाल हो सके.

इन जगहों पर आएगा काम
इलेक्ट्रिकल डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉ. सौरभ मणि त्रिपाठी बताते हैं कि छात्रों द्वारा विकसित यह वेंटिलेटर एंबुलेंस, ग्रामीण अस्पतालों, मोबाइल मेडिकल यूनिट्स और घरेलू इस्तेमाल के लिए भी उपयुक्त है. इसकी पोर्टेबिलिटी और बैटरी ऑपरेशन इसे और ज्यादा खास बनाता है. मरीज को रास्ते में ले जाते वक्त भी ये जीवन रक्षक उपकरण बन सकता है.

इतनी आई लागत
यह वेंटिलेटर प्रोटोटाइप महज 15,000 रुपए की लागत में तैयार हुआ है. टीम का मानना है कि अगर इसे बड़े स्तर पर प्रोड्यूस किया जाए तो इसकी कीमत महज 8,000 रुपए तक लाई जा सकती है. इससे न सिर्फ छोटे अस्पतालों में इलाज आसान होगा बल्कि गरीब मरीजों को भी राहत मिलेगी.

इस प्रोजेक्ट को सफल बनाने में प्रोजेक्ट गाइड Er. दिलीप कुमार पटेल और विभागाध्यक्ष डॉ. सौरभ मणि त्रिपाठी का अहम योगदान रहा. उन्होंने छात्रों को तकनीकी मार्गदर्शन देने के साथ हर स्तर पर सहयोग दिया. छात्रों ने IEEE जैसे इंटरनेशनल जर्नल्स के रिसर्च पेपर भी खंगाले और फिर इस प्रोटोटाइप को तैयार किया.

क्या हैं भविष्य की उम्मीदें
छात्रों का कहना है कि अगर सरकार या कोई स्टार्टअप इस प्रोजेक्ट में रुचि दिखाए तो इसका कमर्शियल निर्माण शुरू हो सकता है. इससे भारत जैसे देश में जहां स्वास्थ्य सेवाओं की असमानता है, वहां एक बड़ी जरूरत पूरी हो सकती है.

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