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Short Swallow Test: अगर आपको कुछ निगलने में दिक्कत होती है तो अलर्ट हो जाएं क्योंकि इससे कई घातक बीमारी हो सकती है. लेकिन इसका टेस्ट आप 30 सेकेंड में कर सकते हैं.

निगलने में कठिनाई.
Short Swallow Test: अगर आपको खाने-पीने की कुछ भी चीजों में देरी लगती है या इसमें परेशानी होती है तो इसका मतलब है कि आप किसी भयंकर बीमारी की चपेट में हैं. एक नए अध्ययन में पाया गया है कि इसका पता लोग खुद लगा सकते हैं. इसके लिए 30 सेकेंड का एक टेस्ट करने की जरूरत होती है. 30 सेकेंड में निगलने की प्रक्रिया से यह पता चल जाएगा कि आप किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं या नहीं. अगर किसी चीज को निगलने में दिक्कत होती है तो इसे डिसफेजिया बीमारी कही जाती है. अध्ययन में पाया गया है कि अगर इस 30 सेकेंड के टेस्ट में पास नहीं किया तो यह फेफड़े की गंभीर बीमारी का संकेत हो सकता है. इतना ही नहीं यह कैंसर जैसी घातक बीमारी का भी संकेत हो सकता है.
कौन कितनी बार निगल सकता है
इस टेस्ट को रेपिटिटिव स्लाइवा टेस्ट कहा जाता है. इसमें आधे मिनट के अंदर बिना किसी भोजन या ड्रिंक के सहारे निगलने को कहा जाता है. इसका सीधा सा मतलब यह है कि आपको 30 सेकेंड के अंदर थूक को निगलने के लिए कहा जाएगा. इस अवधि के दौरान जितनी बार इसे निगलेंगे उतना हेल्दी होंगे. इसका नियम यह है कि औसतन 20 से 39 वर्ष की आयु वाले वयस्क अगर 30 सेकंड में लगभग 8.5 बार तक निगल लेता है तो यह सामान्य है. वहीं 40 की उम्र वाले लगभग 8 बार निगल सकते हैं. 50 की उम्र वाले वयस्क 30 सेकंड में लगभग 7 बार निगल सकते हैं और 60 की उम्र वाले लगभग 7 से थोड़ा कम बार. डॉक्टरों के मुताबिक 70 की उम्र वालों को आधे मिनट में 6 बार निगलना चाहिए और 80 की उम्र वालों को इस समय सीमा में लगभग 4 से थोड़ा ज्यादा बार निगलना चाहिए.
नहीं निगलने पर दिक्कत
विशेषज्ञों के मुताबिक जो लोग अपनी उम्र के अनुसार निर्धारित संख्या में निगल नहीं पाते वे किसी घातक बीमारी से पीड़ित हो सकते हैं. इससे लंग्स की बीमारी, कैंसर और डिमेंशिया के संकेत भी मिल सकते हैं. अगर ऐसा है तो डॉक्टर से दिखाना चाहिए. अध्ययन के लेखक ने बताया कि उम्र बढ़ने के साथ ही मुंह और गले की मांसपेशियों में बदलाव होने लगता है. इसलिए उम्र बढ़ने के साथ ही निगलने की क्षमता प्रभावित होती है लेकिन अगर औसत से कम बार निगलते हैं तो इससे अलर्ट होने की जरूरत होती है. अध्ययन में यह भी बताया गया है कि महिलाओं में यह परिणाम कुछ अलग हो सकता है. इसलिए इसमें अभी और अध्ययन की जरूरत है.
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