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Food Compatibility in Dating: प्यार में आजकल सिर्फ दिल ही नहीं, थाली भी शामिल हो गई है. पहले रिश्तों में बातचीत, सोच और आदतें ज्यादा मायने रखती थीं, अब खाने की पसंद भी रिश्तों को बना या बिगाड़ सकती है. खासकर तब, जब एक इंसान वेजिटेरियन हो और दूसरा नॉनवेज खाने वाला. शुरुआत में यह फर्क छोटा लगता है, लेकिन वक्त के साथ यह छोटी सी बात बड़ी परेशानी बन सकती है. जब डेट पर जाने से पहले यह सोचना पड़े कि रेस्टोरेंट में क्या मिलेगा, क्या सामने वाले को मेरे खाने से दिक्कत तो नहीं होगी, तब मामला सिर्फ स्वाद का नहीं, सोच और समझ का हो जाता है. इंडिया में खाना सिर्फ खाने के लिए नहीं, पहचान, परंपरा और भावना का भी हिस्सा है. ऐसे में अगर दो लोगों की खाने की आदतें अलग हों, तो कई बार ये चीज़ें रोमांस में खटास भी घोल सकती हैं. तो क्या बिरयानी किसी के रिश्ते का ‘दी एंड’ कर सकती है? जवाब है- हां, अगर आप एक-दूसरे की पसंद की इज्जत न करें.

खाने की टकराहट, रिश्तों में खटास
जब कोई वेज हो और दूसरा नॉनवेज, तो बाहर खाना ऑर्डर करना, किचन शेयर करना या सफर पर जाना थोड़ा चुनौती भरा हो सकता है. कई बार तो सिर्फ खाने की वजह से लड़ाइयां हो जाती हैं. कोई कहता है, तेरे खाने से बदबू आती है, तो कोई बोलता है, तू बस घासफूस खाती है. यही बातें धीरे-धीरे मजाक से बहस, और बहस से दूरी में बदल जाती हैं. रिश्ता कमजोर तब होता है जब आप सामने वाले की आदतों को जज करना शुरू कर देते हैं. असल दिक्कत बिरयानी या अंडे की नहीं होती, असल बात होती है रिस्पेक्ट की.

प्यार में समझदारी की भी जरूरत होती है
अगर दो लोगों की खाने की पसंद अलग है, तो जरूरी नहीं कि रिश्ता चले ही नहीं. कई बार लोग एक-दूसरे की पसंद को अपनाते हैं, समझते हैं और एक-दूसरे के लिए थोड़ा एडजस्ट करते हैं. कोई नॉनवेज छोड़ देता है, कोई सामने वाले के लिए खाने में बदलाव कर लेता है. असल बात ये है कि खाना रिलेशनशिप में बहाना बनता है- असल में पीछे भावना, समझ और अपनापन होना चाहिए. अगर सामने वाला कहे कि “तुम जैसा खाओ मुझे फर्क नहीं पड़ता”, तो वहीं से प्यार की नींव मजबूत होती है.

खाना सिर्फ टेस्ट नहीं, पहचान भी है
भारत में खाना केवल स्वाद की बात नहीं है, ये धर्म, संस्कार, स्वास्थ्य और व्यक्तिगत मान्यता से भी जुड़ा होता है. कई लोग एथिकल कारणों से नॉनवेज नहीं खाते, कुछ धार्मिक वजहों से लहसुन-प्याज तक नहीं छूते. वहीं, कुछ के लिए नॉनवेज प्रोटीन और स्वाद का ज़रिया है. जब दो लोग इतने अलग बैकग्राउंड से आते हैं, तो टकराहट हो सकती है. लेकिन अगर सोच में लचीलापन हो, तो ये टकराहट रिश्ता तोड़ने की वजह नहीं बनती.

रिश्ते में खाना मुद्दा क्यों बनता है?
कई बार खाना असली वजह नहीं होता, पर लड़ाई उसी पर शुरू होती है. जब सामने वाला कहे कि तू ये मत खा, या बार-बार नाक-भौं सिकोड़कर खाने को देखकर रिएक्शन दे, तो बात खाने से ज्यादा जजमेंट की हो जाती है. रिश्तों में जब अपनापन की जगह ताने और सुधारने की कोशिश आने लगे, तो दूरी बढ़ती है. इसलिए खाना अगर इमोशनल टॉपिक बन जाए, तो सोचने की जरूरत है कि क्या रिश्ता खाने की वजह से नहीं, समझ की कमी से टूट रहा है?

रिश्तों में खाने की पसंद अलग होना बड़ी बात नहीं है, पर एक-दूसरे की पसंद की इज्जत न करना बहुत बड़ी बात बन जाती है. पनीर हो या चिकन, थाली का फर्क तब तक मायने नहीं रखता जब तक दिलों में अपनापन बना रहे. अगर प्यार सच्चा हो, तो दाल-चावल और तंदूरी रोटियां भी रोमांटिक हो सकती हैं.

(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)

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