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मथुरा: उत्तर प्रदेश का ब्रज क्षेत्र भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की लीलाओं के लिए प्रसिद्ध है. यहां की मिट्टी में भक्ति और प्रेम की खुशबू आज भी महसूस होती है. यही वजह है कि मथुरा, वृंदावन और गोवर्धन जैसे स्थान करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा के केंद्र हैं. इन्हीं पावन स्थलों में से एक गोवर्धन है, जो मथुरा से करीब 30-35 किलोमीटर दूर स्थित है. यहीं पर एक रहस्यमयी और आस्था से भरपूर नारद कुंड है. यहां आज भी लोग देवर्षि नारद की उपस्थिति का अनुभव करते हैं.

कहा जाता है कि चारों युगों (सत्ययुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग) की झलक ब्रज में देखने को मिलती है. राम और कृष्ण की लीलाएं, बलराम की कहानियां और ऋषि-मुनियों की तपस्थली पर अब भी जीवंत नजर आता है.

क्या है नारद कुंड की महिमा?
गोवर्धन परिक्रमा के मार्ग में स्थित नारद कुंड एक ऐसा स्थल है, जहां देवर्षि नारद जी ने स्नान करके भगवान की भक्ति में लीन होकर तपस्या की थी. मान्यता है कि नारद जी आज भी यहां स्नान करते हैं और एक विशेष पारस पीपल के नीचे बैठकर ध्यान में लीन हो जाते हैं. यह पीपल का पेड़ नारद जी के समय से यहां मौजूद है और इसे छूना भी पुण्यकारी माना जाता है.

मोक्ष की प्राप्ति का स्थान
यहां के महंत ने लोकल18 से बात करते हुए बताया कि नारद कुंड में स्नान करने वाले व्यक्तियों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. कहा जाता है कि यहां स्नान करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और जीवन की नई दिशा मिलती है. कई श्रद्धालु यहां आकर अपने मन की मन्नतें मांगते हैं और जब वह पूरी हो जाती हैं तो पारस पीपल पर धागा बांधकर भोग चढ़ाते हैं.

परंपरा और श्रद्धा का संगम
ब्रज का यह इलाका ऋषि-मुनियों के निवास स्थान के रूप में जाना जाता रहा है. यहां तपस्या करने की परंपरा आज भी बनी हुई है. दूर-दराज से लोग नारद कुंड के दर्शन करने आते हैं. विशेष मौकों पर यहां स्नान, हवन, कथा और भजन-कीर्तन जैसे धार्मिक आयोजन भी होते हैं.

स्थानीय लोगों की मान्यता
स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां की हर चीज़ में अलौकिक शक्ति है. वे कहते हैं कि नारद जी की कृपा जिन पर पड़ती है, उसका जीवन खुद-ब-खुद बदल जाता है. यही कारण है कि लोग दूर-दराज से भी इस पवित्र स्थल पर पहुंचते हैं.

नारद कुंड सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि यह भक्ति, तपस्या और विश्वास की मिसाल है. ब्रज भूमि के ऐसे रहस्यों और आस्था से जुड़े स्थलों की जानकारी पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों को आध्यात्मिक दिशा देती रही है.

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