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Khaki Baba Dham Deoria : खाकी बाबा को लेकर जनमानस में अनेक अद्भुत कथाएं प्रचलित हैं. श्रद्धालुओं की आस्था यहां की मिट्टी में रची-बसी है. मन्नतें मांगने वाले निराश नहीं लौटते, बाबा की महिमा ऐसी है.

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खड़ाऊ पहनकर उफनाती नदी पर चलने वाला संत, जो पूरी करते हैं संतान की चाहत, ऐसे हैं खाकी बाबा

खाकी बाबा की चमत्कारी गाथा आज भी करती है आस्था को जीवित

हाइलाइट्स

  • खाकी बाबा की कुटिया देवरिया में है.
  • खाकी बाबा की चमत्कारी कथाएं प्रचलित हैं.
  • हर अष्टमी को खाकी बाबा की कुटिया पर मेला लगता है.

Khaki Baba Dham. देवरिया जनपद के महुआपाटन चौराहा से कुछ ही दूरी पर, छोटी गंडक नदी के किनारे एक अत्यंत शांत और रहस्यमयी स्थान है— खाकी बाबा की कुटिया. करीब तीन सौ साल से अधिक पुरानी इस कुटिया को लेकर न सिर्फ ग्रामीणों में गहरी आस्था है, बल्कि दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालु भी इसे चमत्कारों की भूमि मानते हैं. हरे-भरे जंगलों के बीच स्थित ये कुटिया श्रद्धा और रहस्य का केंद्र बनी हुई है. खाकी बाबा को लेकर जनमानस में अनेक अद्भुत कथाएं प्रचलित हैं. बारिश के मौसम में जब छोटी गंडक नदी उफान पर होती, तब भी खाकी बाबा खड़ाऊ पहनकर पानी की सतह पर चलते हुए एक छोर से दूसरे छोर तक निकल जाते थे. ऐसी कथाएं आज भी लोगों के बीच श्रद्धा से सुनी जाती हैं.

व्याकुल मन को शांति

स्थानीय श्रद्धालु राजकुमार गुप्त बताते हैं कि बचपन से इस पवित्र स्थान से जुड़ा हूं. बाबा के चमत्कारों की कहानियां सुनकर बड़ा हुआ हूं. जब भी मन व्याकुल होता है, यहीं आकर शांति मिलती है. राजकुमार जैसे हजारों श्रद्धालुओं की आस्था यहां की मिट्टी में रची-बसी है. बीते कुछ वर्षों में इस पावन स्थली में बड़ा बदलाव आया है. मिश्रहवा बाबा के नेतृत्व में खाकी बाबा की कुटिया के पास भव्य शिव मंदिर, राम जानकी मंदिर और दुर्गा जी का मंदिर का निर्माण हुआ है. बाबा के निर्देशन में इस क्षेत्र का कायाकल्प हुआ है—स्वच्छता, सजावट और सुविधा तीनों में सुधार देखा गया है.

आत्मा को ठंडक

पास के गांव पकवाइनार की गौरी देवी बताती हैं कि मेरी बहू को कई सालों तक संतान नहीं हुई. एक अष्टमी को मन्नत मांगी. खाकी बाबा के दरबार में जल चढ़ाया और अगले वर्ष हमारे घर में किलकारी गूंज उठी. तब से हम हर साल अष्टमी पर यहां जरूर आते हैं. गोरखपुर से हर अष्टमी को यहां आने वाले रामअवतार मिश्रा कहते हैं कि मैंने देशभर में कई स्थान देखे हैं, लेकिन खाकी बाबा की कुटिया जैसी शांति और ऊर्जा कहीं नहीं मिली. यहां आकर ऐसा लगता है जैसे आत्मा को ठंडक मिल गई. मन्नतें मांगने वाले निराश नहीं लौटते, यही तो बाबा की महिमा है.

दूर-दूर तक महिमा

खाकी बाबा की कुटिया पर हर अष्टमी को मेला लगता है. दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं—कोई संतान की कामना लेकर, कोई स्वास्थ्य, तो कोई नौकरी और विवाह के लिए. बाबा की समाधि पर फूल, जल और प्रसाद चढ़ाया जाता है. घंटियों की गूंज, मंत्रों की ध्वनि और भक्तों की आस्था से वातावरण भक्तिमय हो जाता है. खाकी बाबा की कुटिया सिर्फ एक साधु की याद नहीं, बल्कि ऐसी परंपरा है, जिसे मिश्रहवा बाबा जैसे संतों के नेतृत्व में 300 साल बाद भी जीवित है.

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