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पीलीभीत: उत्तर प्रदेश में 960 किलोमीटर का सफर करने वाली पौराणिक नदी गोमती का उद्गम स्थल पीलीभीत जिले के माधोटांडा कस्बे में स्थित है. इसके प्राकृतिक जल स्रोत को लेकर तमाम तरह की पौराणिक कथाएं भी प्रचलित है. बीते कुछ वर्षों से गोमती संरक्षकों व प्रशासन की ओर से इसकी धारा को अविरल बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं. अब राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान रुड़की ( National Institute of Hydrology Roorkee) के विशेषज्ञों की टीम ने उद्गम स्थल के आसपास से पानी के नमूने लिए हैं.

उद्गम स्थल को गोमत ताल के नाम से जाना जाता है. यह पीलीभीत के धार्मिक पर्यटन स्थलों में सबसे प्रमुख है. प्रत्येक अमावस्या को हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस सरोवर में आस्था की डुबकी लगाते हैं. इस सरोवर के प्राकृतिक स्रोत को लेकर तमाम तरह की पौराणिक मान्यताएं भी प्रचलित हैं. लेकिन नदी को पुराने स्वरूप में वापस लाने के लिए इसके प्राकृतिक जल स्रोत की वैज्ञानिक बारीकियों की जानकारी होना काफी महत्वपूर्ण है. इसी के लिए स्थानीय प्रशासन लंबे समय से प्रयास कर रहा है.

बीते सालों में राज्य की एजेंसियों द्वारा किए गए सर्वे में माना गया कि गोमती नदी की धारा को अविरल बनाने के नदी को प्राकृतिक जलस्त्रोतों से जोड़ना आवश्यक है. ऐसी ही कुछ राय राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान रुड़की ( National Institute of Hydrology Roorkee) से आए विशेषज्ञों के पैनल की है. विशेषज्ञों ने गोमती उद्गम स्थल के आसपास से पानी के नमूने लिए हैं. वहीं टीम ने प्रमुख झील के जलस्तर को मापने के लिए आवश्यक उपकरणों का सहारा भी लिया है. नमूनों के आधार पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जाएगी, जिसके बाद ही गोमती की अविरल धारा का भविष्य तय किया जाएगा.

उद्गम स्थल को लेकर यह है मान्यता
गोमती नदी के पौराणिक महत्व और मान्यता पर लोकल 18 को अधिक जानकारी देते हुए वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ अग्निहोत्री ने बताया कि गोमती के उद्गम को लेकर जिले में एक जनश्रुति है कि सदियों पहले पीलीभीत महज घना जंगल था. ऐसे में आदि काल से ही पीलीभीत को ऋषि मुनियों की तपोभूमि माना जाता है. पीलीभीत में एक तपस्वी बाबा दुर्गानाथ हुआ करते थे. बाबा दुर्गानाथ पीलीभीत में तपस्या करने के साथ ही साथ नियमित रूप से गंगा स्नान के लिए गंगा घाट पर जाते थे. उम्र बीतने के साथ उनका स्वास्थ गिरने लगा, ऐसे में उन्होंने मां गंगा के आगे स्नान के लिए यात्रा करने में असमर्थता जताई. अपने भक्त की अपने प्रति अटूट श्रद्धा को देखते हुए मां गंगा ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि अब उन्हे स्नान के लिए नहीं आना पड़ेगा बल्कि मां गंगा स्वयं ही उनकी तपोभूमि पर प्रकट हो जाएंगी.

इसके बाद बाबा जैसे ही अपनी तपोभूमि वापस लौटे तो उन्हें उद्मित नदी मिल गई. इसके बाद से ही इस नदी को आदिगंगा कहा जाने लगा. समय बीतने के साथ उद्गम स्थल को गोमत ताल और आदिगंगा को गोमती नदी के नाम से पुकारा जाने लगा.

Tags: Local18, Pilibhit news

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