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Benefit of Behra Seed: रांची के आदिवासी कुसुम के पेड़ से “बहरा बीज” तोड़कर दर्द निवारक तेल बनाते हैं. यह बीज आयुर्वेदिक और फार्मा कंपनियों में भी मांग में है. एक किलो बीज 500-600 रुपए में बिकता है.

रांची के आसपास के गांवों और जंगलों में रहने वाले आदिवासी कई साल से दर्द की दवा बाजार से नहीं, पेड़ से खोजते हैं. यहां एक खास बीज है, जिसे वे “बहरा बीज” कहते हैं और यही बनता है उनके लिए प्राकृतिक दर्द निवारक तेल.

जब शरीर में कहीं भी तेज दर्द हो घुटनों में, पीठ में या चोट से तो वे न कोई दवा लेते हैं और न डॉक्टर के पास जाते हैं. वे सीधे जंगल जाते हैं, कुसुम के पेड़ से बहरा बीज तोड़ते हैं, और हाथ से मसल कर उस तेल को सीधे दर्द वाली जगह पर लगा देते हैं.

नामकुम इलाके में रहने वाले सुनील बताते हैं, “हम लोग जहां भी दर्द होता है, वहीं पर जंगल से बीज लाते हैं, छीलते हैं और बीज को हाथ से मसलते हैं. हाथ में जो तेल आता है, उसे दर्द वाली जगह पर घिस देते हैं. 2 मिनट में राहत मिलती है.”

मजेदार बात ये है कि इस बीज की मांग सिर्फ गांव में नहीं, बल्कि देशभर की आयुर्वेदिक और फार्मा कंपनियों में भी है. सुनील बताते हैं कि कई कंपनियां खुद गांवों में आकर इस बीज को खरीदती हैं. इसका उपयोग बड़े-बड़े ब्रांड दर्द निवारक तेलों में करते हैं.

बहरा बीज एक किलो 500 से 600 रुपए तक में बिकता है. आदिवासी इसे चुनकर स्टोर करते हैं और कंपनियों को बेचते हैं. सुनील बताते हैं, “अगर महीने में 6-7 किलो भी बेच दें तो 4000 रुपए तक की कमाई हो जाती है वो भी बिना किसी लागत के.”

कुसुम का पेड़ झारखंड के लगभग हर जंगल में पाया जाता है. ये न सिर्फ पर्यावरण के लिए उपयोगी है, बल्कि इसका बीज एक सच्चा देसी इलाज है. जब दर्द से कोई राहत नहीं मिलती, तो यहां के आदिवासी कहते हैं बाजार मत दौड़ो, बीज मसलो.
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