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नई द‍िल्‍ली. आप ये खबर पढ़ कर हैरान हो सकते हैं. लाजमी भी है. क्‍योंक‍ि बात ही कुछ ऐसी है. र‍िपोर्ट है क‍ि वैज्ञान‍िक चांद पर मछली पालन की तैयारी कर रहे हैं और यही नहीं उनकी योजना ये भी है क‍ि चांद पर पाली गई मछल‍ियों को अंतर‍िक्ष यात्र‍ियों के डायट प्‍लान में रखा जाएगा. जी हां, ये सच है. इस योजना के तहत, वैज्ञानिक चांद पर मछली पालन के लिए जरूरी तकनीक और संसाधनों पर काम कर रहे हैं.

वैसे देखा जाए तो स्‍पेस में जानवरों को ले जाने या वहां उनको रखने का आइड‍िया कोई नया नहीं है. लेक‍िन मछली पालने का आइड‍िया ब‍िल्‍कुल नया है. साल 2016 में पहली बार Przybyla ने ESA यानी यूरोप‍ियन स्‍पेस एजेंसी को ये आइड‍िया द‍िया था, लेक‍िन क‍िसी वजह से इस पर मुहर नहीं लग सकी थी. लेक‍िन करीब 10 साल के बाद Lunar Hatch को इस काम के ल‍िए चुना गया है. चंद्रमा के ल‍िए शॉर्टल‍िस्‍ट हुए 100 प्रोजेक्‍ट में से एक प्रोजेक्‍ट Lunar Hatch के मतस्‍य पालन भी है.

वैज्ञान‍िक कर रहे तैयारी
साउदर्न फ्रांस के वैज्ञान‍िक चंद्रमा पर मछली पालन शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं. योजना ये है क‍ि धरती पर मछल‍ियों के अंडे तैयार क‍िए जाएंगे और फ‍िर उन्‍हें चंद्रमा पर ले जाया जाएगा. लेक‍िन उससे पहले वैज्ञान‍िकों को चंद्रमा पर बहुत सी मशीनरी और इक्‍यूपमेंट्स ले जाने होंगे. दरअसल, वैज्ञान‍िकों का कहना है क‍ि अगर वो ऐसा करने में सफल हो जाते हैं तो आने वाले समय में स्‍पेस यात्र‍ियों को लंबे समय तक वहां ठहराना आसान होगा, क्‍योंक‍ि उनके पास खाने के ल‍िए मछल‍ियां होंगी.

इस प्रोजेक्‍ट को डॉ्. स‍िर‍िल प्र‍िजब‍िला देख रहे हैं, जो Ifremer के हैं. डॉ. स‍िर‍िल का मानना है क‍ि मछल‍ियां, एस्‍ट्राेनॉट्स को हेल्‍दी और स्‍ट्रॉन्‍ग रखने में मदद कर सकती हैं. क्‍योंक‍ि ये प्रोटीन, ओमेगा-3 और कई व‍िटाम‍िन से भरपूर होती हैं.

चांद पर कहां से आएगा पानी?
वैज्ञान‍िकों की योजना के अनुसार मछली के अंडो को पहले धरती पर ही तैयार क‍िया जाएगा, उसके बाद उसे चंद्रमा पर लॉन्‍च क‍िया जाएगा. आपके मन में ये सवाल आ रहा होगा क‍ि चंंद्रमा पर पानी कहां से आएगा और जब पानी नहीं होगा तो मछलि‍यां कैसे रहेंगी. दरअसल, वैज्ञान‍िकों का ऐसा मानना है क‍ि चंद्रमा के पोलर साइड यानी चंद्रमा पर ज‍िस तरफ हमेशा अंधेरा रहता है, वहां पानी वाले बर्फ होने की संभावना है. इसी बर्फ से बने पानी को वैज्ञान‍िक टैंकों में भरेंगे. मछलियां एक बंद टैंक सिस्टम में रहेंगी. मछलियों का कचरा शैवाल और अन्य प्रजातियों को पोषण देगा. झींगे और कीड़े बाकी कचरे को खा लेंगे. ये सारी प्रजातियां भी मछलियों का भोजन बनेंगी.

धरती पर मछल‍ियों को पालने का भी कुछ ऐसी ही प्रक्र‍िया है. अगर वैज्ञान‍िकों का ये प्रयोग सफल हो जाता है तो उन्‍हें उम्‍मीद है क‍ि वो सप्‍ताल में दो बार सात क्रू मेम्‍बर्स को खाना ख‍िला सकते हैं. यानी अगर 16 सप्‍ताह का म‍िशन है तो उन्‍हें 200 मछल‍ियों की आवश्‍यकता होगी.

वैज्ञान‍िक क्‍यों कर रहे ये तैयारी? 
इस प्रोग्राम का मुख्य लक्ष्य ये है कि अंतरिक्ष यात्रियों को ताजगी भरा और पौष्टिक भोजन परोसा जा सके. चांद पर मछली पालन से न केवल भोजन की आपूर्ति में मदद मिलेगी, बल्कि यह चांद पर जीवन की संभावनाओं को भी बढ़ाएगा.

वैज्ञानिकों का मानना है कि चांद पर मछली पालन से वहां की मिट्टी और पानी की गुणवत्ता पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. इसके लिए वे विशेष प्रकार की मछलियों का चयन कर रहे हैं, जो चांद की परिस्थितियों में जीवित रह सकें.

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