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रविकांत द्विवेदी, मिर्जापुर के प्रधानाध्यापक, क्रिकेटर बनने का सपना छोड़कर शिक्षक बने. उन्होंने अपने स्कूल का कायाकल्प किया और राज्य व राष्ट्र शिक्षक पुरस्कार जीते. अब वे स्पोर्ट्स मेंटर हैं.

रविकांत द्विवेदी
हाइलाइट्स
- रविकांत द्विवेदी ने क्रिकेटर बनने का सपना छोड़ शिक्षक बने.
- उन्हें राज्य और राष्ट्र शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
- अब वे राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद के स्पोर्ट्स मेंटर हैं.
मुकेश पांडेय/मिर्जापुर. कहते हैं कि जीवन में कुछ सपने अधूरे रह जाते हैं, लेकिन उनसे मिली सीख जीवन को बेहतर बनाती है. यूपी के मिर्जापुर जिले के सरकारी स्कूल के प्रधानाध्यापक रविकांत द्विवेदी की कहानी भी ऐसी ही है. पहले क्रिकेटर बनने के ख्वाब लेकर आगे बढ़े, लेकिन परिस्थितियों ने राह बदली. पढ़ाई को अपनाकर अध्यापक बने और अपने स्कूल का कायाकल्प किया. वे पहले राज्य शिक्षक और फिर राष्ट्र शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित हुए. अब राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद ने उन्हें स्पोर्ट्स विषय का मेंटर नियुक्त किया है, जहां वे देशभर के अध्यापकों को मार्गदर्शन देंगे.
मिर्जापुर जिले के भगेसर प्राथमिक विद्यालय में तैनात प्रधानाध्यापक रविकांत द्विवेदी धर्मदेवा गांव के रहने वाले हैं. उनके पिता जटाशंकर द्विवेदी किसान हैं और माता कांति देवी गृहिणी. रविकांत को क्रिकेटर बनने का शौक था, लेकिन सफलता नहीं मिलने पर उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कदम रखा और 2009 में अध्यापक बने. अध्यापक के रूप में उन्होंने जी-तोड़ मेहनत की और 2016 में प्रधानाध्यापक बनकर स्कूल का कायाकल्प किया. 2019 में उनका स्कूल राज्य स्तर पर उत्कृष्ट विद्यालय के रूप में चुना गया. 2021 में उन्हें बेहतर शिक्षा प्रदान करने के लिए राज्य शिक्षक पुरस्कार और 2024 में राष्ट्र शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
नहीं बन सके क्रिकेटर
राष्ट्र शिक्षक पुरस्कार मिलने के बाद, 2020 में गठित राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद ने रविकांत द्विवेदी को स्पोर्ट के विषय पर मेंटर नियुक्त किया है. रविकांत ने बताया कि बचपन में उनका सपना क्रिकेटर बनने का था और उन्होंने इसके लिए जी-तोड़ मेहनत भी की. हालांकि, रणजी ट्रॉफी में खेलना संभव नहीं हो पाया, तो उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कदम रखा. 2009 में शिक्षक के रूप में उनकी नियुक्ति हुई. शिक्षक बनने के बाद भी शुरूआत में पठन-पाठन में मन कम लगता था.
रविकांत द्विवेदी ने बताया कि एक दिन स्कूल में एक छात्र उनके पास आया और कहा, “सर, मुझे आपके जैसा बनना है.” इसी बात ने उन्हें बेहतर शिक्षा प्रदान करने का संकल्प दिलाया. उन्होंने कहा, “मुझे लगा अगर कोई मेरे जैसा बनना चाहता है, तो इसका मतलब है कि मैं कुछ अच्छा कर रहा हूँ.” उस क्षण के बाद वे पीछे नहीं हटे और प्राइमरी स्कूल में शिक्षा देने लगे. आज उन्हें उत्कृष्ट शिक्षक, उत्कृष्टता विद्यालय, राज्य शिक्षक और राष्ट्र शिक्षक पुरस्कार मिल चुका है.
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