Latest Posts:
Search for:

[ad_1]

Last Updated:

Shahjahanpur News : शाहजहांपुर का यह दिलचस्प किस्सा आज भी लोगों की जुबान पर है, जब भारतीय लाल चींटियों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था. करोड़ों का मुनाफा देने वाली केरू एंड कंपनी की फैक्ट्री इन चींटियों …और पढ़ें

शाहजहांपुर : शाहजहांपुर को ‘क्रांतिकारियों की धरती’ कहा जाता है. यहां जन्म लेने वाले शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खान ने देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिया. इसके अलावा आजादी की लड़ाई में शाहजहांपुर के चींटियों ने भी खासा योगदान दिया. यहां चींटियों ने अंग्रेजों को भगाने के लिए लड़ाई लड़ी थी. इस लड़ाई में चींटियों को कामयाबी भी मिली और अंग्रेज यहां से अपना एक बड़ा व्यापार समेट कर भाग गए. पूरा वाक्या 1857 में क्रांतिकारी विद्रोह के दौरान का है. जब चींटियों की वजह से अंग्रेजों को शाहजहांपुर में स्थापित की गई केरू एंड कंपनी के कारोबार को समेटना पड़ा. यह कंपनी यहां क्रिस्टल चीनी, स्पिरिट और रम बनाने का बड़े स्तर पर कारोबार करती थी.

‘शाहजहांपुर का इतिहास 1857’ पुस्तक के लेखक इतिहासकार डॉ. विकास खुराना ने लोकल 18 को बताया कि अंग्रेजों ने 1805 में केरू एंड कंपनी को सबसे पहले कानपुर में स्थापित किया था. जिसमें क्रिस्टल चीनी, स्पिरिट और रम बनाई जाती थी. केरू एंड कंपनी से तैयार हुए उत्पादों को यूरोप तक निर्यात किया जाता था. कानपुर में सफलता मिली तो शाहजहांपुर में एक यूनिट लगाई गई. अंग्रेजों ने वर्ष 1811 में शाहजहांपुर में रामगंगा के पास एक यूनिट लगा दी. उसके बाद 1834 में उस यूनिट को शाहजहांपुर शहर से करीब 5 किलोमीटर दूर रौसर कोठी में स्थापित कर दिया.

1857 के बाद केरूगंज में फिर शुरू हुई कंपनी
दरअसल शाहजहांपुर के रौसर कोठी के बड़े इलाके में गन्ने की खेती होती थी. इसके साथ-साथ गर्रा और खन्नौत नदी से व्यापार के लिए नौगम्य सुविधा भी मिल रही थी. शाहजहांपुर में कंपनी की स्थापना के बाद जिले के उत्तर में फैले हुए जंगलों की लकड़ी पर भी कंपनी को अधिकार मिल गए थे. हालांकि1857 में क्रांतिकारी विद्रोह के दौरान क्रांतिकारियों ने फैक्ट्री को लूट लिया और आग लगा दी. इसके बाद कंपनी के मालिक जीबी केरू किसी तरह से यहां से भाग निकले और मितौली के राजा की मदद से लखनऊ जा पहुंचे यहां उनकी हत्या कर दी गई. विद्रोह शांत होने के बाद एक बार फिर से कंपनी को रौसर कोठी से शाहजहांपुर के केरूगंज में स्थापित किया गया. कंपनी द्वारा रम और क्रिस्टल चीनी का उत्पादन रौसर कोठी में ही जारी रखा लेकिन सेना के लिए तैयार की जाने वाली रम का उत्पादन यहीं से होता रहा.

चींटियों से नहीं लड़ सके अंग्रेज
विद्रोह के बाद जब कंपनी दोबारा से शुरू हुई तो एक बार फिर से कंपनी का व्यापार खूब फल फूल रहा था. इतिहासकार डॉ विकास खुराना ने साहित्यकार सुशील विचित्र के हवाले से जानकारी देते हुए बताया कि इस दौरान लाखों की संख्या में भारतीय चींटो ने कंपनी पर हमला बोल दिया. कंपनी प्रबंधन द्वारा चींटियों को रोकने के लिए तमाम उपाय किए लेकिन कोई भी उपाय कारगर साबित नहीं हुआ. आखिरकार अंग्रेजों ने मजबूर हो कर केरूगंज में कम्पनी के काम को बंद ही करना पड़ा.

homeajab-gajab

जब भारतीय चींटियों ने अंग्रेजों के छुड़ा दिए छक्के, करोड़ों का कारोबार छोड़…

[ad_2]

Source link

Author

Write A Comment