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आजकल काफी लोग मानसिक तनाव, चिंता, अवसाद यानी डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं. काम के दबाव, घर का टेंशन आदि कई कारण होते हैं डिप्रेशन, स्ट्रेस के बढ़ने के, लेकिन आप जितना अधिक मेंटली अवसाद से ग्रस्त रहेंगे, उतना ही आपके लिए ठीक नहीं है. डिप्रेशन कई बार डिमेंशिया के होने का रिस्क भी बढ़ा देता है. हाल ही में हुए एक अध्ययन में ये बात सामने आई है कि यदि किसी को डिप्रेशन है तो उसे ब्रेन संबंधित रोग डिमेंशिया होने की जोखिम बढ़ जाता है. खासकर यह जोखिम मिडिल एज वालों के साथ ही 50 साल या उससे अधिक उम्र के लोगों में देखा गया.
क्या है डिमेंशिया?
डिमेंशिया एक गंभीर बीमारी है, जिसमें व्यक्ति की याददाश्त, सोचने और समझने की क्षमता कमजोर हो जाती है. दुनियाभर में 5.7 करोड़ से ज़्यादा लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं. फिलहाल इसका कोई इलाज मौजूद नहीं है, इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हम उन कारणों को समय रहते पहचानें और उन्हें दूर करने की कोशिश करें जो डिमेंशिया का खतरा बढ़ा सकते हैं.
इस अध्ययन में पाया गया है कि डिप्रेशन और डिमेंशिया के बीच संबंध बहुत जटिल है. इसमें देर तक सूजन होना, दिमाग के कुछ हिस्सों का सही से काम न करना, रक्त नलिकाओं में बदलाव, दिमाग में कुछ जरूरी प्रोटीन या फैक्टर का बदल जाना, न्यूरोट्रांसमीटर नाम के रसायनों का असंतुलन होना आदि शामिल हैं. इसके अलावा, जेनेटिक और हमारे रोजमर्रा के व्यवहार भी डिप्रेशन और डिमेंशिया के जोखिम को बढ़ा सकते हैं.
जर्नल ईक्लिनिकल मेडिसिन में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, जिंदगी के हर दौर में डिप्रेशन को पहचानना और उसका इलाज करना बहुत जरूरी है. हमें इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए.
ब्रिटेन के नॉटिंघम विश्वविद्यालय में मानसिक स्वास्थ्य संस्थान और स्कूल ऑफ मेडिसिन के जैकब ब्रेन ने कहा, ”सरकार और स्वास्थ्य विभाग को दिमाग की सेहत पर विशेष ध्यान देना चाहिए, खासकर बीमारियों को होने से रोकने पर. इसके लिए जरूरी है कि लोग अच्छा और सही मानसिक स्वास्थ्य इलाज आसानी से पा सकें.”
पहले के कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि जिन लोगों को डिप्रेशन होता है, उनमें बाद में डिमेंशिया होने की संभावना ज्यादा होती है. लेकिन अभी भी यह बात साफ नहीं है कि डिप्रेशन किस उम्र में सबसे ज्यादा खतरा बढ़ाता है. कुछ लोग कहते हैं कि अगर डिप्रेशन मिडिल एज यानी 40-50 साल की उम्र में शुरू होता है, तो ज्यादा असर होता है, जबकि कुछ का मानना है कि डिप्रेशन अगर बुढ़ापे में यानी 60 साल या उससे ऊपर में होता है, तो भी खतरा बढ़ता है.
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