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पीलीभीत. आपने मां की हिम्मत की अलग-अलग कहानियां सुनी होंगी, लेकिन तराई की एक मां की कहानी सबसे हटकर है. पूर्वी तराई वन प्रभाग की एक बाघिन की मार्मिक कहानी जो सुन रहा है वही हैरान रह जा रहा है. तराई की इस बाघिन ने पेट में शिकारियों का फंदा फंसे होने के बावजूद भी अपने 3 शावकों को न केवल जन्म दिया बल्कि उन्हें सफलतापूर्वक पाल भी रही है.

दरअसल, जंगल के वातावरण के लिहाज से देश को कुल 5 भागों में बांटा गया है. जिसमें शिवालिक गंगेटिक प्लेन्स, सेंट्रल इंडिया व पूर्वी घाट, पश्चिमी घाट, उत्तरपूर्वी पहाड़ियां व सुंदरवन शामिल हैं, इन सभी क्षेत्रों की अपनी अलग विशेषताएं व खासियत होती हैं. तराई के खूबसूरत जंगल शिवालिक गंगेटिक प्लेन्स क्षेत्र के अंतर्गत आता है, तराई के ये जंगल अपने विशेष भारी भरकम बाघों के लिए जाना जाता है.

कॉर्बेट हो या फिर पीलीभीत टाइगर रिजर्व, पर्यटन सत्र के दौरान यहां पर्यटकों का तांता लगा रहता है. अगर पीलीभीत टाइगर रिजर्व की बात करें तो यह अभ्यारण्य नेपाल की शुक्लाफांटा सेंचुरी व उत्तराखंड के पूर्वी तराई वन प्रभाग की सुरई रेंज से सीमा साझा करती है. अगर सुरई रेंज की बात करें तो यह रेंज विभाजन से पहले पीलीभीत वन प्रभाग का हिस्सा हुआ करती थी. लेकिन उत्तराखंड विभाजन के साथ ही साथ जंगल भी दो भागों में बंट गया. जंगल की सीमा का भले ही विभाजन हो गया हो, लेकिन सरकारों की बनाई इस सीमा के फेर में वन्यजीव नहीं आते. दोनों रेंजों के वन्यजीव समूचे जंगल में ही स्वछंद विचरण करते हैं.

रणदीप हुड्डा ने शेयर किया था वीडियो
दरअसल, बीते वर्ष जनवरी महीने में मशहूर अभिनेता रणदीप हुड्डा ने इंस्टाग्राम पर एक तस्वीर शेयर की थी. तस्वीर में एक बाघिन, जिसके पेट में शिकारियों का फंदा फंसा था. रणदीप हुड्डा ने उत्तराखंड सरकार से इस बाघिन की मदद करने की गुहार लगाई थी. इस का संज्ञान लेते हुए, तराई पूर्वी वन प्रभाग प्रशासन की ओर से इस बाघिन को फंदे से आजाद कराने के लिए रेस्क्यू करने की कवायद भी की गई थी. इसके साथ ही साथ पीलीभीत सीमा साझा करने के चलते पीलीभीत टाइगर रिज़र्व प्रशासन ने भी संबंधित क्षेत्र में ट्रैप कैमरा लगाए थे. लेकिन जैसे ही इस बाघिन को रेसक्यू करने का प्रयास किया गया, तभी एक्सपर्ट्स की नजर बाघिन के पास मौजूद उसके एक शावक पर पड़ी, तत्काल प्रभाव से रेस्क्यू ऑपरेशन को रद्द कर दिया गया.

शिकारियों के रडार पर तराई
पीलीभीत टाइगर रिज़र्व समेत तराई के सभी जंगल अपनी जैव विविधता के लिए जाने जाते हैं. वहीं नेपाल सीमा साझा करने के चलते यह इलाक़ा काफ़ी संवेदनशील भी है. अक्सर देखा जाता है कि शिकारी नेपाल की खुली सीमा का फ़ायदा उठाते हुए तराई इलाकों में घटनाओं को अंजाम देते हैं. बीते डेढ़ साल से भी अधिक समय से शिकारियों के फंदे के साथ जी रही बाघिन इस बात की पुष्टि भी करती है.

अगले 3 साल तक सहना होगा दर्द
शिकारियों के फंदे में फंसी इस बाघिन को शावक के साथ देखे जाने के बाद इसको रेस्क्यू करने का फैसला वापस ले लिया गया. वहीं इसकी निगरानी के लिए तमाम ज़िम्मेदारों को लगाया गया. निगरानी में सामने आया कि इस बाघिन ने 3 शावकों को जन्म दिया था. गौरतलब है कि मेटिंग के बाद बच्चों को जन्म देने से लेकर उन्हें जंगल में सर्वाइव करने के गुर सिखाने की ज़िम्मेदारी बाघिन की ही होती है. जब तक शावक खुद से शिकार करना न सीख जाएं तब तक बाघिन ही उनके लिए शिकार करती है. ऐसे में कहा जा सकता है शावकों को बड़ा करने में लगने वाले 2-2.5 वर्ष बाघिन के लिए काफी संघर्षपूर्ण होते हैं. इस मामले में भी शावकों के सर्वाइवल को ध्यान में रखते हुए ही बाघिन को फंदे के साथ ही छोड़ दिया गया था.

बाघिन को रेस्क्यू शावकों के लिए होगा खतरनाक
निगरानी के बाद से लंबे अरसे तक यह बाघिन गुमनामी में जी रही थी. इधर अप्रैल महीने में वन्यजीव संरक्षण से जुड़े अम्बिका मिश्रा अपने 3 साथियों के से सफारी के लिए सुरई आए थे. इसी दौरान उनकी नजर “तारवाली” बाघिन पर पड़ी, बाघिन के साथ ही उसका सब एडल्ट शावक (12-14 महीने की उम्र) भी मौजूद था. इससे स्पष्ट होता है कि बाघिन न केवल बच्चों को जन्म दिया बल्कि उन्हें अच्छे ढंग से पाल भी रही है. अम्बिका मिश्रा बताते हैं कि उन्होंने इस बाघिन के संबंध में उत्तराखंड वन विभाग के तमाम आला अधिकारियों से भी संपर्क किया. विभाग का मानना है कि जब तक शावक पूर्ण रूप से वयस्क होकर अपनी माँ से अलग नहीं हो जाते तब तक बाघिन को रेस्क्यू करना शावकों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.

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