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Strawberry Farming: देवरिया के टड़वा गांव में श्याम लाल और लाल जी कुशवाहा ने स्ट्रॉबेरी की खेती से किसानों को प्रेरित किया है. आधुनिक तकनीक और जल प्रबंधन से यह खेती लाभकारी साबित हो रही है.

स्ट्रॉबेरी की खुशबू से महक रहा है टड़वा, मात्र डेढ़ एकड़ में आधुनिक खेती से लाखों की कमाई.
हाइलाइट्स
- टड़वा गांव में स्ट्रॉबेरी की खेती से किसानों को प्रेरणा मिली.
- श्याम लाल और लाल जी कुशवाहा ने आधुनिक तकनीक से खेती की.
- स्ट्रॉबेरी की खेती से किसानों को लाखों का मुनाफा हो रहा है.
Strawberry Farming: देवरिया जिले के भाटपार रानी तहसील क्षेत्र स्थित टड़वा गांव में अब खेती का चेहरा बदल रहा है। यहां के किसान अब परंपरागत खेती की बजाय आधुनिक और नकदी फसलों की ओर बढ़ रहे हैं. इसी बदलाव का एक उदाहरण है टड़वा गांव में डेढ़ एकड़ भूमि पर की जा रही स्ट्रॉबेरी की खेती, जिसने आस-पास के किसानों का ध्यान आकर्षित किया है.
इस खेत की देखरेख कर रहे श्याम लाल ने बताया कि इस फसल से न केवल अच्छी आमदनी हो रही है, बल्कि यह आसपास के किसानों के लिए भी प्रेरणा बन गई है. श्याम लाल के मुताबिक, स्ट्रॉबेरी के बीज पुणे से मंगवाए जाते हैं और सिंचाई के लिए स्प्रिंकलर विधि का प्रयोग किया जाता है.
जल प्रबंधन और सुरक्षा के उपाय
श्याम लाल ने बताया कि स्ट्रॉबेरी की खेती में जल प्रबंधन बहुत जरूरी है- बहुत अधिक या कम पानी देने से फसल को नुकसान हो सकता है. इसके अलावा, फसल की सुरक्षा के लिए इलेक्ट्रिक फेंसिंग और जाली का उपयोग किया जाता है ताकि आवारा पशुओं से बचाव हो सके. इन सभी उपायों से यह खेती पूरी तरह से सुरक्षित और लाभकारी बन गई है.
किसानों को मिल रहा मुनाफा
श्याम लाल बताते हैं कि स्ट्रॉबेरी की बुवाई के करीब डेढ़ महीने बाद ही फल लगने शुरू हो जाते हैं. और हर दो दिन में लगभग 3 क्विंटल स्ट्रॉबेरी की तुड़ाई की जाती है. थोक बाजार में इसकी कीमत 150 से 200 रुपये प्रति किलोग्राम तक रहती है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा हो रहा है.
लाल जी कुशवाहा का दृष्टिकोण
कुशीनगर जनपद के लाल जी कुशवाहा ने देवरिया के टड़वा गांव में स्ट्रॉबेरी की खेती का नया तरीका अपनाया है. उन्होंने यह खेत लीज पर लिया है और यहां की देखरेख भी खुद करते हैं. उनका कहना है कि पारंपरिक खेती के मुकाबले स्ट्रॉबेरी जैसी नकदी फसलें कहीं ज्यादा लाभकारी साबित होती हैं. हालांकि शुरुआत में बीज, सिंचाई उपकरण और सुरक्षा के लिए फेंसिंग पर खर्च करना पड़ता है, लेकिन फसल के तैयार होते ही उसकी मांग और उच्च कीमत से सारी लागत आसानी से निकल जाती है, और मुनाफा लाखों में पहुंच जाता है.
मॉडल के रूप में स्ट्रॉबेरी खेती
लाल जी कुशवाहा की इस पहल को अब स्थानीय प्रशासन भी सराह रहा है. डीएम और कई प्रशासनिक अधिकारियों ने खेत का निरीक्षण किया है और इस आधुनिक खेती के मॉडल की प्रशंसा की है. इसके बाद, आसपास के किसान भी अब इस मॉडल को अपनाने पर विचार करने लगे हैं.
नई दिशा में बढ़ता टड़वा गांव
टड़वा गांव में अब स्ट्रॉबेरी की महक किसान समुदाय के भविष्य की दिशा तय कर रही है. श्याम लाल और लाल जी कुशवाहा जैसे दूरदर्शी किसान इस बात का प्रमाण हैं कि यदि नई सोच और तकनीकी का सही इस्तेमाल किया जाए, तो गांवों में भी समृद्धि लाई जा सकती है. यह प्रयोग न सिर्फ किसानों के लिए एक नई राह खोल रहा है, बल्कि युवाओं के लिए रोजगार और आत्मनिर्भरता का भी एक नया विकल्प बनता जा रहा है.
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