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Kada Dham Kaushambi: कौशांबी का कड़ा धाम, माता शीतला का प्रसिद्ध मंदिर, 51 शक्तिपीठों में से एक है. यहां हर साल चैत्र नवमी पर 9 दिनों तक विशेष आयोजन होते हैं. भक्त चमत्कारी कुंड की पूजा करते हैं.

51 शक्ति पीठों में शामिल शीतला माता मंदिर
हाइलाइट्स
- कड़ा धाम 51 शक्तिपीठों में से एक है.
- चैत्र नवमी पर 9 दिनों तक विशेष आयोजन होते हैं.
- भक्त चमत्कारी कुंड की पूजा करते हैं.
Kada Dham Kaushambi/ कौशांबी: उत्तर प्रदेश का कौशांबी जिला, माता शीतला के भक्तों के लिए एक बेहद खास स्थल है. कड़ा धाम, जहां माता शीतला का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है, 51 शक्तिपीठों में से एक है. यह स्थान न केवल पूर्वांचल बल्कि पूरे देश से भक्तों को आकर्षित करता है. हर साल चैत्र माह की नवमी को, यहां माता के दरबार में खास आयोजन होते हैं, जो 9 दिनों तक चलते हैं. भक्त यहां अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और उनका मानना है कि श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजा करने पर माता उनकी सभी इच्छाओं को पूरी करती हैं.
चमत्कारी कुंड और पूजा की विशेषता
कड़ा धाम में एक खास कुंड है, जिसे चमत्कारी माना जाता है. इस कुंड की भक्त बड़ी श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं. जिन भक्तों की इच्छाएं पूरी होती हैं, वे इस कुंड को दूध, जल और फल से भरते हैं. फिर यह प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित किया जाता है. भक्त इसे बड़े श्रद्धा भाव से ग्रहण करते हैं.
कड़ा धाम का ऐतिहासिक महत्व
कड़ा धाम का ऐतिहासिक संबंध माता सती से है. जब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के अंगों को 52 टुकड़ों में बांटा था, तब माता सती का दाहिना हाथ कड़ा धाम में गिरा था. तब से इस स्थान का नाम कड़ा धाम पड़ा. यह स्थान अब एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल बन चुका है, जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं.
माता शीतला और गधे की सवारी
माता शीतला को गधे की सवारी करते हुए चित्रित किया जाता है. गधा, जिसे सामान्यत: एक साधारण और मजबूत जानवर माना जाता है, रोग प्रतिरूपण क्षमता के लिए जाना जाता है. माता शीतला के साथ गधे का संबंध इसे दर्शाता है कि वह हर परिस्थिति का सामना करने की शक्ति रखती हैं.
कुंड की पूजा और उसकी विशेषता
मंदिर के पुजारी रामायणी बताते हैं कि माता शीतला का यह दरबार संसार के दुखों को हरने वाली शक्ति का प्रतीक है. इस दरबार में विशेष रूप से माता के दाहिने हाथ का पंजा रखा हुआ है, जिसे कुंड के भीतर पूजा जाता है. यही पंजा भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से विभक्त हुआ था.
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