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Jakhiya benefits in hindi : ये कुमाऊं और गढ़वाल इलाकों का पारंपरिक मसाला है, जिससे तड़का लगाया जाता है. इसका स्वाद तीखा और खट्टा होता है. ये पाचन में सहायक है. गैस, पेट दर्द, डायरिया से राहत दिलाता है.

जखिया के बीज
हाइलाइट्स
- जखिया उत्तराखंड का पारंपरिक मसाला है.
- जखिया का तड़का व्यंजनों का स्वाद बढ़ाता है.
- जखिया पाचन में सहायक और सेहतमंद है.
बागेश्वर. उत्तराखंड की संस्कृति और खानपान का ज़िक्र हो और जखिया की बात न हो ऐसा हो ही नहीं सकता. जखिया को पहाड़ी जंगली सरसों भी कहा जाता है. ये उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्रों में पारंपरिक भोजन का एक अहम हिस्सा है. ये एक छोटा काले रंग का बीज होता है, जो आकार में सरसों जैसा लगता है, लेकिन स्वाद और गुणों में बिल्कुल अलग है. बागेश्वर की रहने वाली संतोषी देवी लोकल 18 से कहती हैं कि बागेश्वर और उसके आसपास के पहाड़ी इलाकों में जखिया का यूज तड़के के लिए किया जाता है. जब इसे गर्म तेल में डाला जाता है तो इसकी खुशबू और करकरापन खाने को एक अलग ही स्वाद देता है. पहाड़ के घरों में आलू-गुटके, भट्ट की चुरकानी और झंगोरे की खिचड़ी जैसे व्यंजनों में जखिया का तड़का लगाया जाता है, जो न सिर्फ स्वाद को निखारता है, बल्कि उसे पाचन के लिहाज से भी बेहतर बनाता है.
तीखा, खट्टा, लाजवाब
जानकारों के अनुसार, जखिया सिर्फ स्वाद ही नहीं, बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद है. इसका सेवन गैस, पेट दर्द, डायरिया और पाचन संबंधी समस्याओं से राहत पाने में किया जाता है. पहाड़ के लोग जखिया का उपयोग नमक बनाने में भी करते हैं. जखिया-नमक एक पारंपरिक पहाड़ी रेसिपी है, जिसे चटनी की तरह खाया जाता है. इसका स्वाद तीखा, खट्टा और लाजवाब होता है. जखिया में प्राकृतिक एंटीऑक्सिडेंट्स और पाचन में सहायता करने वाले तत्व पाए जाते हैं. कुछ लोग इसे लीवर संबंधी बीमारियों में भी लाभकारी मानते हैं. हालांकि इसके लिए और वैज्ञानिक शोध की आवश्यकता है.
दोबारा हो रही लोकप्रिय
पहाड़ के स्थानीय लोगों का अनुभव इसे एक बेहतरीन घरेलू औषधि साबित करता है. आज जब आधुनिक खानपान में परंपरागत स्वाद खोते जा रहे हैं, जखिया जैसी पारंपरिक सामग्री फिर से लोकप्रिय हो रही है. न केवल उत्तराखंड में, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी लोग अब इसकी मांग करने लगे हैं. पहाड़ों की ये अनमोल देन अब बाजार में भी उपलब्ध है और जैविक उत्पादों की लिस्ट में शामिल हो चुकी है. इस तरह जखिया सिर्फ एक मसाला नहीं, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर और स्वास्थ्य का प्राकृतिक खजाना है.
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