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Agency:News18 Uttar Pradesh

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Ghazipur: गाजीपुर में यूं तो कई मिठाइयां फेमस हैं पर चंद्रकला की बात ही कुछ और है. जैसा इसका नाम अनोखा है, वैसा ही स्वाद भी निराला है. दूर-दूर से लोग इसका स्वाद लेने आते हैं और हर दिन जमकर बिक्री होती है.

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नाम की तरह स्वाद में भी बेजोड़ है ‘चंद्रकला’, लाइन लगाकर होती है बिक्री! इस त्योहार आप भी करें ट्राय

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“बनारस से आया आइडिया, सैदपुर में छा गई चंद्रकला मिठाई!”

हाइलाइट्स

  • गाजीपुर की फेमस मिठाई है चंद्रकला.
  • राधे राधे स्वीट्स पर मिलती है चंद्रकला.
  • होली पर चंद्रकला की डिमांड बढ़ जाती है.

गाजीपुर. हर शहर के खानपान की अपनी खासियत होती है और कुछ आइटम ऐसे होते हैं जो वहां की पहचान बन जाते हैं. लोग मानते हैं कि यहां आएं तो ये जरूर खाएं, ऐसा स्वाद कहीं नहीं मिलेगा. ऐसे ही गाजीपुर आएं तो ये खास मिठाई जरूर खाएं. इसका स्वाद लोगों के सिर चढ़कर बोलता है. हम बात कर रहे हैं चंद्रकला मिठाई की जो सैदपुर गांव की राधे राधे स्वीट्स पर मिलती है. ये मिठाई सिर्फ स्वाद के लिए ही नहीं बल्कि अपने अनोखे नाम और लोगों के दिलों पर राज करने के लिए भी फेमस हो चुकी है.

आप भी बना सकते हैं ये मिठाई
दुकान के मालिक बृजेश यादव बताते हैं कि हर दिन 200 से 300 पीस बिक जाते हैं और एक पीस ₹15 का है. इस मिठाई की खासियत इसकी स्टफिंग में छिपी है. शुद्ध खोया, काजू, पिस्ता, किशमिश और देसी घी से भरपूर, यह मिठाई खाने वालों के दिल में बस जाती है. ये मोटी तौर पर गुजिया जैसी ही होती है पर शेप अलग होता है और जितना मेवा, घी डालेंगे स्वाद उतना ही बढ़िया आता है. आप चाहें तो इस होली गुजिया की जगह इसे बना सकते हैं. इसे चाशनी में डुबोया जाता है.

बनारस से आया आइडिया, सैदपुर में छा गया स्वाद
बृजेश यादव को यह मिठाई बनाने का आइडिया बनारस से आया. उन्होंने वहां की मिठाइयों की चमक दमक देखी और सोचा जब बनारस में इतना चलता है तो हम भी क्यों न ट्राय करें. बस फिर क्या था, उन्होंने इसे बनाना शुरू किया और धीरे-धीरे यह मिठाई सैदपुर की पहचान बन गई. देखने में यह गुजिया जैसी लगती है लेकिन इसकी खास बनावट और अंदर की स्टफिंग इसे सबसे अलग बनाती है. खासकर होली के मौके पर इसकी डिमांड आसमान छू जाती है.

‘बिना खाए त न जाएबा’
इस मिठाई का एक मजेदार किस्सा जुड़ा है धनुष मिश्रा से, जिनकी पत्नी का नाम भी चंद्रकला है. जब भी वे दुकान पर आते हैं, उनके दोस्त जबरदस्ती उन्हें चंद्रकला खिलाते हैं ताकि उन्हें उनकी पत्नी की याद आए. हंसी ठिठोली करते हुए दोस्त कहते हैं ‘बिना खाए त न जाएबा’, यानी बिना खाए तो नहीं जाओगे. अब भला ऐसा कनेक्शन हो तो मिठाई का स्वाद और भी मीठा लगने लगता है. बनारस से आने वाले ग्राहक भी इस मिठाई का आनंद लिए बना नहीं जाते.

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नाम की तरह स्वाद में भी बेजोड़ है ‘चंद्रकला’, लाइन लगाकर होती है बिक्री!

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