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Moradabad Latest News: मुरादाबाद के शिल्पगुरु खूब सिंह यादव ने पीतल पर नक्काशी में महारत हासिल कर राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान पाया है. 15 साल से इस कला में सक्रिय यादव अब युवाओं को भी प्रशिक्षित कर रहे हैं.

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ना स्केच, ना फोटो! मुरादाबाद का ये कलाकार मेटल पर उकेर देता है हूबहू चेहरा….

नक्काशी के क्षेत्र में खूब सिंह यादव ने कमाया नाम।

हाइलाइट्स

  • खूब सिंह यादव ने पीतल पर नक्काशी में महारत हासिल की.
  • 15 साल से नक्काशी का काम कर रहे हैं यादव.
  • युवाओं को भी नक्काशी की कला में प्रशिक्षित कर रहे हैं.

पीयूष शर्मा/मुरादाबाद: मुरादाबाद को यूं ही ‘पीतल नगरी’ नहीं कहा जाता. यहां पीतल पर नक्काशी का काम सदियों से होता आ रहा है, और आज भी कई कारीगर अपनी मेहनत और हुनर से इस विरासत को जिंदा रखे हुए हैं। इन्हीं कारीगरों में एक नाम तेजी से उभरा है — शिल्पगुरु खूब सिंह यादव का. इन्होंने न केवल पीतल पर नक्काशी की बारीकियों में महारत हासिल की, बल्कि अपने हुनर से राष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मान भी हासिल किए हैं.

15 साल से कर रहे हैं नक्काशी का काम
खूब सिंह यादव पिछले 15 सालों से पीतल पर नक्काशी का काम कर रहे हैं. वह बताते हैं कि उन्होंने जिला उद्योग केंद्र, राज्य स्तरीय मंचों, और नेशनल अवॉर्ड तक कई जगहों पर अपनी कला का प्रदर्शन किया है. दिल्ली के प्रगति मैदान, सूरजकुंड मेला जैसे बड़े आयोजनों में भी वे हिस्सा ले चुके हैं. उनका हुनर सिर्फ पारंपरिक डिजाइनों तक सीमित नहीं है, बल्कि वह किसी का चेहरा हूबहू पीतल पर उकेरने की कला भी जानते हैं.

पूजा आर्टिकल्स की मांग बढ़ी, नक्काशी भी नई
आजकल बाजार में पूजा आर्टिकल्स की मांग तेजी से बढ़ रही है. खूब सिंह यादव इस मांग के अनुरूप धार्मिक मूर्तियों, दीयों, कलश और अन्य पूजा सामग्री पर खूबसूरत नक्काशी कर रहे हैं. उनका कहना है कि हर ग्राहक की पसंद अलग होती है, इसलिए वह डिज़ाइन भी उसी हिसाब से तैयार करते हैं.

पिता से मिली प्रेरणा, अब सिखा रहे हैं दूसरों को भी
खूब सिंह यादव बताते हैं कि उनके पिता भी नक्काशी का काम करते थे. उन्हें देखकर ही उनके मन में इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा जगी. आज वह खुद आत्मनिर्भर तो बने ही हैं, साथ ही अन्य युवाओं को भी ट्रेनिंग देकर इस कला से जोड़ रहे हैं. उनका उद्देश्य है कि यह परंपरागत कला खत्म न हो, और युवाओं के लिए रोजगार का जरिया बने.
मुरादाबाद की शान बने खूब सिंह यादव, जिन्होंने अपने हुनर से यह दिखा दिया कि अगर इरादा मजबूत हो तो कोई भी पारंपरिक कला आज के दौर में भी आत्मनिर्भरता का रास्ता बन सकती है.

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