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Patna Bihar Child Hospital News: पटना में एक ऐसा अस्पताल है, जहां मां अपने बच्चे को इलाज के लिए भर्ती कराती है, तो मां को भोजन और पैसे दिए जाते हैं. इतना ही नहीं यहां बच्चों के लिए खिलौने, वाल स्टडी मटेरियल, एल…और पढ़ें
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कुपोषित बच्चों का इलाज पटना में
हाइलाइट्स
- पटना के नालंदा मेडिकल कॉलेज में कुपोषित बच्चों के लिए विशेष वार्ड है.
- भर्ती कराने पर मां को भोजन और 100 रुपये मिलते हैं.
- बच्चों के लिए खिलौने, टीवी, और डिजिटल शिक्षा की व्यवस्था है.
पटना. राजधानी पटना में एक ऐसा अस्पताल है, जहां नवजात से लेकर पांच साल के बच्चों को इलाज के लिए भर्ती करवाने पर मां को भोजन के साथ प्रतिदिन एक सौ रुपए की सहायता राशि दी जाती है. साथ ही वार्ड में सारी व्यवस्था किसी महंगे प्राइवेट अस्पताल से भी बेहतर मिलती हैं, लेकिन इस वार्ड में उन्हीं बच्चों को भर्ती किया जाता है जो कुपोषित हों.
सुविधाएं प्राइवेट अस्पताल से हैं बेहतर
आपको बता दें, कि नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल के मदर एंड चाइल्ड हॉस्पिटल स्थित कुपोषण पुनर्वास केंद्र में नवजात से लेकर पांच साल तक के कुपोषित बच्चों के इलाज, देखभाल, पौष्टिक भोजन, मनोरंजन, डिजिटल शिक्षा के लिए बेहतर व्यवस्था की गई है. बच्चों का इलाज किए जाने वाले वार्ड में सारी सुविधाएं महंगे प्राइवेट अस्पतालों जैसी ही हैं.
मिलेंगी यह सारी सुविधाएं
आपको बता दें, कि नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल ( एनएमसीएच) का कुपोषित वार्ड साफ-सुथरा और वातानुकूलित है. यहां बच्चों के लिए खिलौने, वाल स्टडी मटेरियल, एलईडी टीवी, और इंटरनेट के माध्यम से डिजिटल शिक्षा और मनोरंजन की भी व्यवस्था की गई है. पौष्टिक भोजन तैयार करने के लिए रसोइया, ट्रेन्ड नर्स, सहित सभी अत्याधुनिक सुविधाएं मिलती हैं. नोडल पदाधिकारी सह शिशु रोग विशेषज्ञ प्रो. डा. अतहर अंसारी के अनुसार बच्चों के लिए इमरजेंसी की भी सुविधा चौबीस घंटे और हफ्ते में सभी दिन उपलब्ध है. आगे वे बताते हैं, कि सभी तरह की दवाइयां लाभार्थी को मुफ्त दी जाती हैं. आवश्यकता पड़ने पर दवाइयां खरीद कर उपलब्ध कराई जाती हैं. इस वार्ड में एक साथ दस बच्चों के लिए बेड उपलब्ध हैं.
ऐसे करें कुपोषण की पहचान
नोडल पदाधिकारी डा. अतहर अंसारी के अनुसार, कुपोषण के लक्षण पहचानने के कुछ तरीके हैं. यदि कोई बच्चा देखने में कुपोषित लगता है, तो उसकी उम्र के अनुपात में उसका वजन काफी कम होता है. इसके अलावा, उसके दोनों पैरों में सूजन भी हो सकती है, जिसमें यदि अंगुली दबाई जाए तो गड्ढा बन जाता है. साथ ही, कुपोषित बच्चों की हड्डियां बाहर से साफ तौर से दिखाई देती हैं. ऐसे बच्चों का इलाज करने के लिए उन्हें नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल के कुपोषण पुनर्वास केंद्र में चौदह दिनों तक भर्ती किया जाता है. इस दौरान, बच्चों को पूरी तरह से डॉक्टरों की निगरानी में रखा जाता है और एक्सपर्ट के द्वारा इलाज किया जाता है.
February 14, 2025, 09:39 IST
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