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दरअसल, शांति एक रिटायर्ड सरकारी शिक्षिका हैं, उनके 67 साल के रामलाल पति को 2020 में ब्रेन स्ट्रोक के बाद आंशिक लकवा हो गया था. एक दिन जब दोनों पति-पत्नी मुरथल के एक ढाबे पर सुबह का नाश्ता कर रहे थे, उनकी मुलाकात मोहम्मद कासिम से हुई, जिसने खुद का नाम नितिन अग्रवाल बताया. कासिम ने बड़े विश्वास के साथ बताया कि उसके पिता को भी लकवा था, लेकिन दिल्ली के द्वारका में रहने वाले ‘डॉ. आर. जेरीवाला’ ने उन्हें पूरी तरह ठीक कर दिया. उसने शांति को एक फोन नंबर और पता दिया, जिससे रामलाल और शांति को उम्मीद की किरण दिखी.
5000 रुपये में एक बूंद खून
डॉक्टर रामलाल के घर आया. समीर ने पहले ‘गर्म तौलिया थेरेपी’ दी, फिर डॉ. जेरीवाला आए, उन्होंने रामलाल के लकवाग्रस्त हिस्सों पर ब्लेड से छोटे-छोटे चीरे लगाए और एक पाइप से खून चूसकर बाहर निकाला. खून को एक खास केमिकल वाली जगह पर डाला गया जिससे खून पीला हो गया. डॉ. जेरीवाला ने दावा किया कि यह ‘जहरीला खून’ था, जिसे निकालने से रामलाल ठीक हो जाएंगे. उन्होंने यह कहकर कि इस प्रक्रिया में उनकी जान को भी खतरा था, क्योंकि जहरीला खून उनके मुंह में गया था और उन्हें खास दवाइयां लेनी पड़ती थीं हर बूंद खून के लिए 5,000 रुपये मांगे और कुल मिलाकर उन्होंने 25 लाख रुपये का बिल थमा दिया.
फिर पकड़ा गया गिरोह
पुलिस के लिए इस गिरोह को पकड़ना आसान नहीं था. महीनों की मेहनत के बाद एक मोबाइल नंबर राजस्थान के सनोद गांव में सक्रिय मिला. लेकिन वह फोन एक मजदूर महिला के पास था, जिसे इस धोखाधड़ी का कोई अंदाजा नहीं था. पूछताछ में पता चला कि एक मोबाइल दुकान नकली पहचान पत्रों से सिम कार्ड बेच रही थी. चार महीने की जांच के बाद 4 अप्रैल 2025 को कासिम को सनोद गांव से गिरफ्तार किया गया. उसने कबूल किया कि उसे इस धोखाधड़ी से 2.5 लाख रुपये मिले थे. इसके बाद समीर के भाई आमिर को भी पकड़ा गया जिसे 1.5 लाख रुपये मिले थे. डॉ. जेरीवाला जिनका असली नाम मोहम्मद जाहिर था और समीर ने 20 लाख रुपये जमा करके अग्रिम जमानत हासिल कर ली थी. यह राशि पीड़ितों को लौटा दी गई.
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