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Ghazipur News: गाज़ीपुर के लंका मैदान में चल रहे प्रदेश स्तरीय स्वदेशी मेला में इस बार महोबा (झाँसी) के पत्थरों से आई एक अनोखी कारीगरी ने सबका ध्यान खींचा है. दिलदारनगर (गाज़ीपुर) के कुशल कारीगर सुचेंद्र बिंद ने यहाँ ‘पलेवा’ नामक विशेष पत्थर पर तराशी गई.
गाज़ीपुर के लंका मैदान में चल रहे प्रदेश स्तरीय ‘स्वदेशी मेला’ में इस बार महोबा (झाँसी) के पत्थरों से आई एक अनोखी कारीगरी ने सबका ध्यान खींचा है. दिलदारनगर (गाज़ीपुर) के कुशल कारीगर सुचेंद्र बिंद ने यहाँ ‘पलेवा’ नामक विशेष पत्थर पर तराशी गई. गौतम बुद्ध की प्रतिमा को प्रदर्शित किया है, जिसकी ख़ासियत किसी जादू से कम नहीं है.
सुचेंद्र बिंद की तराशी हुई बुद्ध प्रतिमा न सिर्फ बेहद आकर्षक है, बल्कि एक वैज्ञानिक विशेषता रखती है. पलेवा’ वास्तव में एक नरम बलुआ पत्थर है, जो अपनी छोटे छोटे छेद (Porous) बनावट के कारण खास होता है. श्री बिंद बताते हैं कि इस प्रतिमा पर जैसे ही तेल लगाया जाता है, इसकी सतह उस तेल को सोख लेती है. यह पत्थर तुरंत गहरे रंग (काला या गाढ़ा) में चमकने लगता है. कारीगर का दावा है कि यह चमक आजीवन बनी रहती है.यह वही पत्थर है जिससे खजुराहो, जबलपुर और सतना के कई प्रसिद्ध मंदिरों की मूर्तियाँ, जाली और स्तंभ बनाए गए हैं। श्री बिंद की यह कलाकृति दिखाती है कि कैसे पारंपरिक भारतीय पत्थर पर गाज़ीपुर के कारीगर आज भी जटिल नक्काशी को सरलता से अंजाम देते हैं.
गाज़ीपुर के कारीगर की पहचान
श्री बिंद की पूरी कारीगरी, यानी पत्थरों की नक्काशी और उसे अंतिम रूप देने का काम, गाज़ीपुर के दिलदारनगर में होता है। इस पत्थर की मूर्ति को गढ़ने में बहुत बारीकी और मेहनत लगती है. इतनी गहन कारीगरी वाली बुद्ध प्रतिमा मेले में केवल ₹1500 के आस-पास उपलब्ध है. श्री बिंद का कहना है कि इसी कारीगरी का महत्व विदेशी पर्यटकों में ज़्यादा है। पलेवा पत्थर पर तेल लगाने से इसका रंग जो गहरा/काला हो जाता है, वह इस कला को और भी अधिक कीमती बना देता है, और इसकी क़ीमत भी कई गुना बढ़ जाती है. यह स्वदेशी मेला इन अद्भुत कारीगरों को वह पहचान दिला रहा है, जिसके वे सही हकदार हैं.
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