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पानी को साफ करने के लिए होगा सूरज की रोशनी का इस्तेमाल, वैज्ञानिकों की इस रिसर्च से बदल जाएगी लोगों की जिंदगी

बदलते परिवेश में औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले दूषित पानी के कारण देखने को मिलता है कि गंगा सहित अन्य प्रकार की नदियां प्रदूषित होती जा रही है. इसे लेकर विभिन्न सामाजिक संस्थाएं समय-समय पर जागरूक अभियान भी चलाती है, लेकिन जल्दी ही इस समस्या का भी समाधान हो सकेगा. जी हां, यह बात हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय परिसर में संचालित भौतिक विज्ञान विभाग में इसका समाधान खोज दिया गया है. दरअसल, भौतिक विज्ञान के शोधकर्ताओं ने प्राकृतिक अनुकूल नैनो उपकरणों से एक मैब्रेन झिल्ली विकसित की है, जो बिना बिजली के प्रदूषित जल से अतिरिक्त एवं प्रदूषित कणों को हटा देगी. ऐसे में लोकल-18 की टीम द्वारा भी फिजिक्स डिपार्टमेंट के प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा से खास बातचीत की गई, जिनके निर्देशन में यह शोध किया गया है.

सौर ऊर्जा आधारित है तकनीक

प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा ने बताया कि जल को स्वच्छ बनाने में सूरज की रोशनी का उपयोग किया गया है. उन्होंने बताया कि इस रिसर्च को जर्मनी के प्रतिष्ठित जनरल एडवांस्ड साइंस न्यूज़ ने नैनो माइक्रो स्मॉल जनरल में प्रकाशित किया है. इस जनरल का इंपैक्ट फैक्टर 13 है. वह बताते हैं कि उनके निर्देशन में यह काम शोधार्थी दीपक कुमार ने किया है. दीपक कुमार ने सीटीसी नैनोकंपोजिट तैयार किए हैं, जिसमें सीटीसी में सेरियम डाई-ऑक्साइड एवं टाइटेनियम डाइ-ऑक्साइड के घटक हैं. उन्होंने बताया कि सीईओटू जहां पर्यावरण के लिए काफी बेहतर माना जाता है, क्योंकि यह एंटी ऑक्सीडेंट है. जो हानिकारक प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन प्रजातियों को बेअसर करता है. वही टीईओटू सर्वश्रेष्ठ उत्प्रेरक माना जाता है. यह कार्बनिक प्रदूषण को पानी कार्बनिक प्रदूषकों को पानी डाइ ऑक्साइड एवं हानिकारक पदार्थों में तोड़ देता है. इसके बाद इन घटकों से झिल्ली नुमा कार्बन नैनोट्यूब विकसित की गई है. जो सूर्य की रोशनी में यह फोटोरिडाक्स प्रभाव पैदा करती है. इससे कार्बनिक प्रदूषक विभिन्न ऑक्साइड या ठोस में बदल जाते हैं.

वर्ष 2014 में शुरू हुआ शोध कार्य

प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा के अनुसार वर्ष 2014 से इस विषय पर शोध किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि यह तकनीक आने वाले समय में औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले जल को प्राकृतिक तरीके से बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के सहायक बनेगी. उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय ने इसका पेटेंट फाइल कर दिया है.  अब इसके आगे के पार्ट पर काम किया जा रहा है जिससे कि इसके बेहतर परिणाम के अनुसार इसे पब्लिक डोमेन में लाया जा सके.

बताते चलें कि चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में विभिन्न विषयों पर इसी तरीके से नए-नए शोध किए जाते हैं, जिससे कि आम जनमानस को हो रही परेशानी का समाधान करते हुए बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने में मदद की जा सके.

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