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Agency:News18 Uttar Pradesh

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Farming Tips : वरिष्ठ उद्यान निरीक्षक नरेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि फरवरी से मध्य मार्च तक केला और पपीता की फसलों में सिंचाई, रोग नियंत्रण और पोषक तत्व प्रबंधन का विशेष ध्यान रखें. इससे फसल की उत्पादकता और गु…और पढ़ें

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फरवरी-मार्च में ऐसे करें केला और पपीता की फसलों की देखभाल… बढ़ जाएगी पैदावार

केला व पपीता खेती का फसल प्रबंधन 

हाइलाइट्स

  • केला और पपीता की फसल में सिंचाई प्रबंधन का ध्यान रखें.
  • रोग ग्रस्त पत्तियों को समय-समय पर काटकर हटाएं.
  • पपीते के पौधों पर नीम के तेल का छिड़काव करें.

रायबरेली . फरवरी के महीने में यूपी में मौसम का मिजाज बदलता नजर आ रहा है. दिल्ली और यूपी के कई जिलों में बारिश हो रही है. जिसकी वजह से ठंड बढ़ गई है. उत्तर प्रदेश के कई जिलों में बारिश की आशंका जताई गई है. हालांकि कई जिलों में तापमान तेजी से बढ़ भी रहा है. मौसम में आए बदलाव का असर फसलों पर भी देखने को मिल रहा है. गौरतलब है कि केला और पपीता की फसल के लिए फरवरी का महीना अनुकूल माना जाता है. परंतु तापमान बढ़ने पर इन फसलों की वृद्धि भी प्रभावित होती है.जिसका सीधा असर इन फसलों की पैदावार पर पड़ता है. ऐसे में जरूरी है कि बढ़ते हुए तापमान से इन फसलों को बचाने के लिए किसान कुछ जरूरी उपाय करें .

उद्यानिक क्षेत्र में 25 वर्षों का अनुभव रखने वाले रायबरेली जिले के वरिष्ठ उद्यान निरीक्षक नरेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि केला व पपीता की खेती करने वाले किसान फरवरी से मध्य मार्च तक इन दोनों फसलों में सिंचाई प्रबंधन, रोग नियंत्रण एवं पोषक तत्व प्रबंधन का विशेष ध्यान रखें. जिससे फसल की उत्पादकता एवं गुणवत्ता पर किसी भी प्रकार का असर न पड़े.

केला की खेती में रखें इन 3 बातों का ध्यान
पोषक प्रबंधन : केला की फसल में पोषक प्रबंधन के लिए उचित खाद एवं उर्वरक का छिड़काव करें. इसके लिए 200 ग्राम प्रति पौधा यूरिया, 200 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश और 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट का उपयोग करें.

रोग ग्रस्त पत्तियों का प्रबंधन: केले के पौधे में सूखी एवं रोग ग्रस्त पत्तियों को समय-समय पर काट कर हटा देना चाहिए. जिससे पौधे में रोग लगने की आशंका कम हो जाती हैं. साथ ही हवा और प्रकाश का संचार भी बेहतर होता है. ऐसा करके आप रोग एवं कीट से अपनी फसल का बचाव कर सकते हैं.

सिंचाई प्रबंधन: खेत में बराबर नमी बनी रहे इसके लिए समय-समय पर हल्की हल्की सिंचाई करते रहें.

पपीता की फसल का प्रबंधन 
पोषक प्रबंधन : पपीते के पौधे को उचित पोषण देने के लिए खाद एवं उर्वरक का समय-समय पर छिड़काव करें इसके लिए 100 ग्राम यूरिया, 50 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश , 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट प्रति पौधे की दर से छिड़काव करें.

कीट एवं रोग प्रबंधन : पपीते के पौधे में लगने वाला सबसे घातक रोग पपाया रिंग स्पॉट वायरस है. इससे बचाव के लिए किसान 2 प्रतिशत नीम के तेल का छिड़काव करें. या फिर 5 मिली लीटर स्टीकर मिलाकर एक महीने के अंतराल पर छिड़काव करें. यह प्रक्रिया 8 महीने तक करते रहने से फसल पूरी तरह से सुरक्षित रहती है.

सिंचाई प्रबंधन : बढ़ते हुए तापमान में खेत जल्दी सूख जाते हैं इसलिए समय-समय पर सिंचाई करते रहें.

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फरवरी-मार्च में ऐसे करें केला और पपीता की फसलों की देखभाल… बढ़ जाएगी पैदावार

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