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जयपुर- जयपुर, जिसे यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का दर्जा मिला है, केवल अपनी खूबसूरती और इतिहास के लिए नहीं, बल्कि यहां के पुराने और पारंपरिक स्वाद के लिए भी जाना जाता है. शहर की चारदीवारी के भीतर ऐसी कई जगहें हैं, जहां देश-दुनिया से लोग स्थानीय जायके का लुत्फ उठाने आते हैं. उन्हीं में से एक नाम है पूरण जी कचौरी वाले.
60 के दशक में हुई थी शुरुआत
पूरण जी कचौरी की शुरुआत 1963 में हुई, जब पूरण पोसवाल, जो पहले हलवाई थे, जयपुर आकर अपने दम पर कुछ नया करना चाहते थे. उन्होंने देखा कि जयपुर की कचौरियों में हींग का इस्तेमाल नहीं होता, वहीं से उन्हें हींग कचौरी का विचार आया और उन्होंने चौड़ा रास्ता में दुकान शुरू की. धीरे-धीरे कचौरी की खुशबू और स्वाद ने लोगों को इस कदर बांधा कि दुकान पर भीड़ लगने लगी.
चटनी नहीं, सिर्फ शुद्ध मसालों और खास तड़के का कमाल
गोविंद पोसवाल बताते हैं कि उनके दादा ने कचौरी के साथ कोई चटनी नहीं रखी, ताकि असली स्वाद बना रहे. बाद में, उन्होंने दही और काचरी की चटनी का प्रयोग किया, जो लोगों को खूब पसंद आई. कचौरी में मोगर दाल, हींग, काली मिर्च, लौंग और कुछ सीक्रेट मसालों का तड़का आज भी वैसा ही है. यही नहीं, सही सिकाई और मसालों की संतुलन से हर कचौरी का स्वाद एक जैसा बना रहता है.
आज भी हर सुबह लगती है भीड़
आज पूरण जी की कचौरी के दीवाने सुबह से ही दुकान पर पहुंचने लगते हैं. गोविंद बताते हैं कि वे हींग कचौरी के साथ-साथ प्याज कचौरी और ड्राई कचौरी भी बनाते हैं. खासतौर पर ड्राई कचौरी, जो 15-20 दिन खराब नहीं होती, उसकी विदेशों तक डिमांड है.
आज 20 रुपए में बिकती है स्पेशल कचौरी
जहां एक समय दादाजी की बनाई हींग कचौरी की कीमत 1 रुपए से भी कम थी, वहीं आज स्पेशल दही वाली कचौरी 20 रुपए में मिलती है. दिलचस्प बात यह है कि कई स्थानीय ग्राहक 20-25 सालों से रोजाना इस स्वाद को लेने आते हैं. साथ ही जयपुर आने वाले पर्यटक भी इस मसालेदार अनुभव को मिस नहीं करते.
जयपुर की यह स्वाद यात्रा, सिर्फ एक दुकान की कहानी नहीं, बल्कि परंपरा, मेहनत और शुद्धता से जुड़ी हुई विरासत है, जो आज भी लोगों के दिलों में बसती है.
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