[ad_1]
Last Updated:
Trichotillomania Disorder: एक बच्चा जूते का फीता और बाल निगल गया, जिससे उसके पेट में गांठ बन गई. यह कोई साधारण घटना नहीं, बल्कि एक मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर ट्राइकोटिलोमेनिया का संकेत है. इस डिसऑर्डर के कारण लोग अपने बाल नोंचकर निगल जाते हैं. इससे पेट में ट्राइकोबेजोअर यानी बाल की गांठ बन जाती है.

Rare Mental Health Disorder: गुजरात के अहमदाबाद से एक बच्चे का हैरान करने वाला मामला सामने आया है. एक 7 साल का बच्चा 2 महीने से पेट दर्द, बार-बार उल्टी और वजन कम होने की समस्या से परेशान था. कई बार ट्रीटमेंट कराने के बाद भी कोई सुधार नहीं हो रा था. जब बच्चे के पैरेंट्स उसे अस्पताल लेकर पहुंचे, तो सीटी स्कैन और एंडोस्कोपी रिपोर्ट ने चौंका दिया. इसमें पता चला है कि बच्चे के पेट में बाल और जूते का फीत फंसा हुआ था. इसकी वजह से उसके पेट में एक कठोर गांठ बन गई. कड़ी मशक्कत के बाद डॉक्टर्स ने ये चीजें बच्चे के पेट से बाहर निकालीं. यह मामला सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्या की ओर इशारा करता है. कुछ लोग अनजाने में या आदतन बाल, नाखून, मिट्टी या अन्य अजीब चीजें निगल जाते हैं. यह कोई साधारण आदत नहीं, बल्कि एक डिसऑर्डर है.
अब सवाल है कि क्यों निगलते हैं लोग बाल और अजीब चीजें? हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो बाल या जूते का फीता निगलने की आदत अक्सर साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर से जुड़ी होती है. ट्राइकोटिलोमेनिया बाल नोचने की आदत है. ट्राइकोफेजिया में इंसान बाल खाने या निगलने की आदत का शिकार हो जाता है. जबकि पिका डिसऑर्डर में लोग मिट्टी, नाखून, कागज या अन्य अजीब चीजें खाने लगते हैं. इन समस्याओं का कारण मानसिक तनाव, बचपन का ट्रॉमा, एंजायटी या ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर हो सकता है. इसके अलावा भी इस परेशानी के कई कारण हो सकते हैं.
ऐसे लोगों में कुछ सामान्य लक्षण दिख सकते हैं, जैसे- बार-बार बाल नोचना या उन्हें खाना, नाखून, मिट्टी, कागज या कपड़े के टुकड़े खाना, पेट दर्द, सूजन या उल्टी होना, भूख कम लगना और वजन घटना, पेट में गांठ या रुकावट का एहसास होना. अगर ये लक्षण समय रहते न पहचाने जाएं तो पेट या आंत में गंभीर रुकावट हो सकती है. ट्रीटमेंट की बात करें, तो अगर पेट में गांठ बन चुकी है, तो डॉक्टर एंडोस्कोपी या सर्जरी के जरिए उसे निकालते हैं. बाल नोचने या खाने की आदत रोकने के लिए मनोचिकित्सक से काउंसलिंग और कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी करवाई जाती है. जरूरत पड़ने पर दवाइयां भी दी जाती हैं. अच्छी बात यह है कि ट्राइकोटिलोमेनिया और पिका जैसी बीमारियां पूरी तरह ठीक की जा सकती हैं.
अमित उपाध्याय News18 Hindi की लाइफस्टाइल टीम के अनुभवी पत्रकार हैं, जिनके पास प्रिंट और डिजिटल मीडिया में 9 वर्षों से अधिक का अनुभव है। वे हेल्थ, वेलनेस और लाइफस्टाइल से जुड़ी रिसर्च-बेस्ड और डॉक्टर्स के इंटरव्…और पढ़ें
अमित उपाध्याय News18 Hindi की लाइफस्टाइल टीम के अनुभवी पत्रकार हैं, जिनके पास प्रिंट और डिजिटल मीडिया में 9 वर्षों से अधिक का अनुभव है। वे हेल्थ, वेलनेस और लाइफस्टाइल से जुड़ी रिसर्च-बेस्ड और डॉक्टर्स के इंटरव्… और पढ़ें
[ad_2]
Source link