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भारत में कॉरपोरेट सेक्टर तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन कर्मचारियों पर दबाव बढ़ रहा है. ‘प्लम’ की रिपोर्ट के अनुसार 40% कर्मचारी मानसिक तनाव के कारण छुट्टी लेते हैं. कर्मचारी कम उम्र में ही गंभीर बीमारियों का शिकार …और पढ़ें

भारत में कर्मचारी कम उम्र में बीमारियों का शिकार हो रहे हैं.
हाइलाइट्स
- 40% कर्मचारी मानसिक तनाव के कारण भी छुट्टी लेते हैं.
- कम उम्र में कर्मचारी गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं.
- कंपनियों को कर्मचारियों की सेहत का ख्याल रखना चाहिए.
New Report on Indian Employees: भारत में कॉरपोरेट सेक्टर तेजी से बढ़ रहा है. अधिकतर कंपनियां कोरपोरेट कल्चर को अपना रही हैं. ज्यादा से ज्यादा ग्रोथ के चक्कर में भारतीय कर्मचारियों पर दबावे बढ़ रहा है. इसका खुलासा एक नई रिपोर्ट में हुआ है. इसमें पता चला है कि भारत में बड़ी संख्या में कर्मचारी गंभीर बीमारियों, मानसिक तनाव और थकावट से जूझ रहे हैं. कर्मचारियों की सेहत पर इन समस्याओं का गंभीर असर पड़ रहा है.
भारत में कर्मचारियों को हेल्थ बेनिफिट्स देने का काम करने वाली कंपनी ‘प्लम’ ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 40 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते बहुत से कर्मचारियों को गंभीर बीमारियां होने लगती हैं. 40 प्रतिशत कर्मचारी हर महीने कम से कम एक दिन की छुट्टी मानसिक तनाव की वजह से लेते हैं. वहीं हर 5 में से 1 कर्मचारी थकावट के चलते नौकरी छोड़ने पर विचार कर रहा है. चिंताजनक बात यह है कि गंभीर बीमारियां अब कम उम्र में ही शुरू हो रही हैं. खतरनाक बीमारियां अब 30 की उम्र के बाद ही लोगों को होने लगी हैं.
इस रिपोर्ट के अनुसार कर्मचारियों को अब हार्ट की बीमारी औसतन 32 साल की उम्र में शुरू हो रही है. कैंसर की जानलेवा बीमारी लगभग 33 साल की उम्र में लोगों में पाई जा रही है. डायबिटीज करीब 34 साल की उम्र में लोगों में शुरू हो रही है. किडनी जैसी गंभीर बीमारी 35 साल की उम्र में सामने आ रही है. दिमाग से जुड़ी बीमारियां जैसे- स्ट्रोक, ब्रेन में ब्लड सप्लाई रुकना जैसी समस्याएं 36 साल की उम्र में हो रही हैं.
कम उम्र में गंभीर बीमारियां होने से लोगों की सेहत जल्दी खराब हो रही है, जिससे उनका निजी जीवन और काम करने की क्षमता दोनों पर असर पड़ता है. इससे हेल्थकेयर सिस्टम पर बोझ पड़ता है और कहीं न कहीं इसका असर देश की आर्थिक तरक्की पर भी पड़ता है. रिपोर्ट के मुताबिक लंबे समय तक चलने वाली बीमारियां कंपनियों को बहुत नुकसान पहुंचा रही हैं. हर साल एक कर्मचारी अगर किसी लंबी बीमारी से परेशान रहता है, तो कंपनी को उससे जुड़े काम में लगभग 30 दिन का नुकसान होता है.
इस रिपोर्ट में भारतीय कंपनियों को यह सलाह दी गई है कि वे न सिर्फ बीमार होने पर इलाज कराने की सुविधा पर ध्यान दें, बल्कि बीमारियों होने से पहले की रोकथाम पर भी ध्यान दें. कर्मचारियों के शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की सेहत का पूरा ख्याल रखें. एक्सपर्ट्स का कहना है कि कंपनियों को हेल्थकेयर के नाम पर सिर्फ बीमा तक सीमित नहीं रहना चाहिए. उन्हें कर्मचारियों को ऐसा हेल्थ सिस्टम मुहैया करना चाहिए, जो उनकी मानसिक, शारीरिक और सामाजिक सेहत तीनों का ख्याल रखे.
नई रिपोर्ट यह साफ दिखाती है कि अब समय आ गया है कि कंपनियां कर्मचारियों की सेहत को लेकर समझदारी भरा तरीका अपनाएं. खासकर मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लें. हर उम्र, जेंडर वाले कर्मचारियों की मानसिक जरूरतें अलग-अलग होती हैं. बीमारी के बढ़ते बोझ के बावजूद सिर्फ 20 प्रतिशत कंपनियां ही अपने कर्मचारियों को नियमित स्वास्थ्य जांच की सुविधा प्रदान करती हैं. अगर यह सुविधा उपलब्ध भी हो, तो भी सिर्फ 38 प्रतिशत कर्मचारी ही इसका इस्तेमाल करते हैं.
भारतीय कर्मचारियों में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं. सबसे बड़ी चिंता एंजायटी की समस्या है. रिपोर्ट के डेटा से पता चलता है कि 30 से 49 साल की उम्र वाले कर्मचारियों में 58 प्रतिशत हेल्थकेयर सुविधा का इस्तेमाल पुरुष करते हैं. जिससे साफ है कि महिलाओं को हेल्थकेयर तक पहुंच कम मिलती है. 50 से 59 साल की उम्र की 68 प्रतिशत महिला कर्मचारी स्वास्थ्य सेवा लाभ का इस्तेमाल करती हैं. मेनोपॉज की वजह से और ज्यादा बीमार होने पर वे इलाज लेने लगती हैं.

अमित उपाध्याय News18 Hindi की लाइफस्टाइल टीम में सीनियर सब-एडिटर के तौर पर काम कर रहे हैं. उन्हें प्रिंट और डिजिटल मीडिया में करीब 8 साल का अनुभव है. वे हेल्थ और लाइफस्टाइल से जुड़े टॉपिक पर स्टोरीज लिखते हैं. …और पढ़ें
अमित उपाध्याय News18 Hindi की लाइफस्टाइल टीम में सीनियर सब-एडिटर के तौर पर काम कर रहे हैं. उन्हें प्रिंट और डिजिटल मीडिया में करीब 8 साल का अनुभव है. वे हेल्थ और लाइफस्टाइल से जुड़े टॉपिक पर स्टोरीज लिखते हैं. … और पढ़ें
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