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Why do Indians Suffer from Vitamin D Deficiency: ये बात हम सब जानते हैं कि भारत ट्रॉपिकल यानी एक उष्णकटिबंधीय देश है. ट्रॉपिकल धरती पर भूमध्य रेखा के आसपास के वो क्षेत्र हैं, जहां सूर्य सीधे सिर के ऊपर चमकता है. हालांकि, ऐसे देश में भी जहां साल के ज्यादातर समय पर्याप्त धूप मिलती है, काफी लोग ‘विटामिन डी’ की कमी से पीड़ित हैं. जबकि सामान्य तौर पर यह मान्यता है कि पर्याप्त धूप विटामिन डी की कमी को पूरा करने के लिए काफी होती है. लेकिन यह विरोधाभास शहरी जीवनशैली, आदतों और प्रदूषण के कारण है.

भारतीयों में विटामिन डी की कमी
साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित मई 2024 की एक स्टडी में पाया गया कि दक्षिण भारत की शहरी बालिग आबादी में विटामिन डी का स्तर आम तौर पर अपर्याप्त था. जबकि उत्तर भारत में पहले की गई एक स्टडी में भी इसी तरह के रिजल्ट पाए गए थे. जहां 50 साल से अधिक उम्र के लोगों में विटामिन डी की कमी का स्तर 91.2 फीसदी था.

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भारत में विटामिन डी पर की गई कई कम्युनिटी बेस्ड स्टडी से पता चला है कि इसकी कमी की समस्या 50 से 94 फीसदी लोगों में है. एक ऑनलाइन फार्मेसी द्वारा 2023 में किए गए सर्वे में पाया गया कि तीन में से दो भारतीय, या लगभग 76 फीसदी आबादी, विटामिन डी की कमी से ग्रस्त है. वहीं, 25 वर्ष से कम आयु के युवाओं में विटामिन डी की कमी की दर 84 फीसदी थी. जबकि 25-40 आयु वर्ग में यह दर 81 फीसदी थी.

किन वजहों से होती है इसकी कमी
विटामिन डी की कमी का एक मुख्य कारण घर के बाहर होने वाली गतिविधियों का अभाव है. शहरी क्षेत्रों में अधिकांश लोग अपना ज्यादातर समय घर के अंदर, काम पर, स्कूल में या यहां तक ​​कि छुट्टियों के दौरान इंडोर ही बिताते हैं. इसके अलावा सूर्य के संपर्क में आने से स्किन को बचाने के लिए पुराने तरीके अपनाए जाते हैं, जैसे शरीर के अधिकांश भाग को ढकने वाले कपड़े पहनना. सनस्क्रीन का बढ़ता इस्तेमाल भी एक और कारण है.

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शरीर में प्रवेश नहीं कर पातीं यूवीबी किरणें
एयर पॉल्यूशन भी इसका एक बड़ा कारण है. धुआं, धुंध और धूल का हाई कंस्ट्रेशन सीधे सूरज के संपर्क में आने से यूवीबी किरणों को रोकती है. जबकि ये किरणें स्किन के लिए विटामिन डी पैदा करने के लिए जरूरी हैं. डॉक्टरों का कहना है, “प्रदूषित शहरों में भले ही कोई व्यक्ति बाहर समय बिताता हो, लेकिन UVB किरणें पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी का उत्पादन करने के लिए पर्याप्त रूप से प्रवेश नहीं कर पाती हैं.” इसके अलावा, भारतीयों की स्किन का रंग आमतौर पर डार्क होता है क्योंकि उनमें मेलेनिन का स्तर अधिक होता है, जो स्किन को हानिकारक UV विकिरणों से बचाता है और UVB किरणों को अवशोषित करने की इसकी क्षमता को कम करता है. डार्क स्किन वाले लोगों को समान मात्रा में विटामिन डी प्राप्त करने के लिए हल्के रंग की स्किन वाले लोगों की तुलना में अधिक समय तक धूप में रहना पड़ता है.

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क्या खाने से होती है कमी पूरी
भारतीय आहार में ऐसे खाद्य पदार्थों का भी अभाव है जो प्राकृतिक रूप से विटामिन डी से भरपूर होते हैं, जैसे मछली, अंडे की जर्दी और दूध जैसे फोर्टिफाइड डेयरी उत्पाद और नाश्ते में मिलने वाले अनाज. सूरज की रोशनी में रहना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह स्किन को विटामिन डी का उत्पादन करने में सक्षम बनाता है. इसे सनशाइन विटामिन के नाम से भी जाना जाता है, यह पोषक तत्व कैल्शियम एब्जार्शन, मजबूत हड्डियों और दांतों, इम्युनिटी और कम्पलीट हेल्थ के लिए जरूरी है.

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गंभीर बीमारियों को न्योता देती है इसकी कमी
विटामिन डी की कमी के लक्षणों में लगातार थकान, शरीर में बहुत ज्यादा दर्द, जोड़ों में दर्द और मूड में बदलाव जैसे अवसाद या डिप्रेशन शामिल हैं. लंबे समय तक इसकी कमी की वजह से प्रोस्टेट कैंसर, मधुमेह, रुमेटाइड ऑर्थराइटिस और रिकेट्स जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं. धूप इस महत्वपूर्ण विटामिन का एक कुदरती स्रोत है. क्योंकि यह स्किन के साथ यूवीबी किरणों के संपर्क में आने पर विटामिन डी के सिंथेसिस को सक्रिय करता है. यह सेरोटोनिन नामक हार्मोन जारी करके मानसिक स्वास्थ्य को भी बढ़ावा देता है, जो मूड को बेहतर बनाता है और अवसाद से लड़ता है. सूरज की रोशनी शरीर की अंदरुनी घड़ी को ठीक करने और नींद की क्वालिटी में सुधार करने में भी मदद करता है. पूर्वी फिनलैंड विश्वविद्यालय द्वारा की गई एक स्टडी के अनुसार, विटामिन डी की खुराक के नियमित उपयोगकर्ताओं में मेलेनोमा जैसे स्किन कैंसर का खतरा कम होता है.

Tags: Health, Solar system, Vitamin d

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