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फर्रुखाबाद: भीषण गर्मी के मौसम में हर किसी को बस एक घूंट ठंडा पानी चाहिए. लेकिन जब बिजली आंखमिचौली खेल रही हो, तो लोग फिर से देसी उपायों की तरफ लौटते दिखते हैं. फर्रुखाबाद में भी कुछ ऐसा ही नजारा है. यहां के बाजारों में अचानक से मिट्टी से बने मटकों यानी ‘देसी फ्रिज’ की डिमांड बहुत बढ़ गई है. इसका सीधा फायदा हो कुम्हारकारों को रहा है, जिनकी चाक पर इन दिनों दिन- रात घड़े ही बन रहे हैं.

सुबह से रात तक चाक पर घूमती उम्मीदें
फर्रुखाबाद के याकूतगंज निवासी कुम्हार रामरूप बताते हैं कि जैसे ही गर्मी बढ़ती है, वैसे ही उनके घड़ों की बिक्री आसमान छूने लगती है. इन दिनों सुबह से लेकर देर रात तक चाक पर मिट्टी को तराशने का काम चल रहा है. मिट्टी को कूटना, गूंधना, चाक पर आकार देना और फिर उसे आग में पकाना ये सब किसी एक दिन में नहीं होता. एक मटका बनाने में लगभग 10 दिन लगते हैं.

घड़ों पर नक्काशी, देसी स्टाइल में नया ट्विस्ट
इस बार खास बात ये है कि कुम्हारों ने मटकों को एक नया रूप भी दिया है. अब ये मटके सिर्फ शीतल जल देने वाले घड़े नहीं, बल्कि सुंदर नक्काशी और लेटेस्ट लुक के साथ सजावटी सामान भी बन चुके हैं. यही वजह है कि आसपास के जिलों से भी लोग खरीदारी के लिए यहां पहुंच रहे हैं.

बाजारों में मिट्टी के मटके की भारी डिमांड
मटके के पानी का स्वाद कोई भूल नहीं सकता. फर्रुखाबाद के फतेहगढ़, भोलेपुर, कमालगंज, शमशाबाद और कायमगंज में इस समय मटकों की बंपर मांग है. एक मटका जहां 100 से 250 रुपए तक बिक रहा है, वहीं कई लोग एक साथ दो-तीन मटके खरीदकर ले जा रहे हैं.

बुजुर्गों और जानकारों की मानें तो मिट्टी के घड़े का पानी पीने से गर्मी में शरीर ठंडा रहता है, डाइजेशन सही रहता है और खांसी-जुकाम जैसी दिक्कतें भी कम होती हैं. यही वजह है कि आज भी शहर से लेकर गांव तक करीब 50% से ज्यादा लोग घड़ों का इस्तेमाल कर रहे हैं.

फ्रिज आया, लेकिन घड़े का स्वाद न गया
कुम्हार रामरूप कहते हैं कि उनके पूर्वजों के समय से ही लोग मिट्टी के घड़ों का इस्तेमाल करते आ रहे हैं. आज भले ही हर घर में फ्रिज है, लेकिन गर्मी की असली ठंडक तो देसी फ्रिज यानी मटके से ही मिलती है. यही कारण है कि पीढ़ियां बदल गईं, लेकिन मिट्टी के घड़े का क्रेज नहीं गया.

चिकनी मिट्टी से बनते हैं खास मटके
घड़ों को बनाने में सबसे अहम भूमिका चिकनी मिट्टी की होती है. कारीगर बताते हैं कि इस मिट्टी को तैयार करना, छानना, फिर उसे भिगोकर सही समय पर चाक पर रखना और फिर सांचे में ढालना ये सब बेहद मेहनत का काम है. हालांकि, मेहनत का फल तब उन्हें मिलता है, जब बाजार में मटके हाथों- हाथ बिक जाते हैं.

फर्रुखाबाद की गलियों में घूमते हुए लोकल18 को यह साफ नजर आया कि देसी फ्रिज यानी मटके, आज भी आम लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं. चाहे बिजली हो या ना हो, घड़े का पानी हमेशा ठंडा और ताजगी से भरपूर होता है.

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