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हाइलाइट्स

महाकुंभ,अर्द्धकुंभ और माघ मेले की पहचान बन चुकी है ये आवाजअब तक 15 लाख बिछड़ों को मिलवाने का दावात्रिवेणी मार्ग पर शिविर तैयार

मेले का नाम आते ही मिलने बिछड़ने का भी खयाल आने लगता है. मेले में मिलने बिछड़ने पर बहुत सारी हिंदी फिल्में भी बनी है. महाकुंभ जब सबसे बड़ा मेला है तो मिलने बिछड़ने भी यहां बहुत ज्यादा होते हैं. यहां दूर दराज के गांवों से बड़े-बुजुर्ग श्रद्धालुओं की टोली भी आती है. इनमें बहुत से ऐसे लोग होते हैं जिनको रास्तों का अंदाज नहीं होता. भटक जाते हैं. भीड़ के रेले को समझने वाले अपने लोगों को भटकने से बचाने के लिए उनके पास नाम-पता लिखी पर्ची भी रखवा देते हैं. फिर भी नहान और जनसैलाब में बहुत सी महिला पुरुष टोली से बिछड़ ही जाते हैं. कई बार तो ऐसा भी होता है उनके पास नाम पता लिखी पर्ची भी होती है लेकिन लोगों को दिखाते दिखाते उसकी हालत इतनी तरबतर हो चुकी होती है कि नाम पता पढ़ पाना मुश्किल हो जाता है.लेकिन मेला है तो मिलाने वाले भी होंगे. इलाबाद महाकुंभ, अर्द्ध कुंभ या माघ मेले की बात करें तो यहां भारत सेवा दल नाम से एक पूरी संस्था भूले भटकों को मिलाने का काम करती रही है.

मिर्जापुर की ‘गुड़िया’ की अम्मा जहां कहीं भी हों, भूले भटके शिविर में आ जाएं

1946 से चला रहे हैं शिविर
इसे बनाया था राजा राम तिवारी ने. वो 1946 में. तब से लगातार उनका दल निःशुल्क मेले को ये सेवा देता रहा. साल 2016 में राजा राम तिवारी का निधन हो जाने के बाद ये काम उनके बेटे उमेश तिवारी ने संभाल लिया. पिछले साल तक इसी दल के कार्यकर्ताओं की आवाज आशा एंड कंपनी के भोपू पर लगातार गूंजती रहती- “मिर्जापुर मडि़हान से आई गुड़िया की अम्मा जहां कहीं भी हो भूले भटके शिविर में आ जाएं. गुड़िया यहां उनका इंतजार कर रही है. भूले भटकों का ये शिविर त्रिवेणी मार्ग पर स्थित है.” जिस माता की गुड़िया उससे बिछड़ी होती वो घंटे दो घंटे में पूछताछ करते भूले भटके शिविर में पहुंच ही जाती. खास दिनों पर तो दिन भर में इस तरह ये शिविर 6-7 लोगों को उनके परिवार वालों रिश्तेदारों से मिलाता रहा.

तमाम भोपुओं पर भारी पड़ता ये 
ये भी खास बात है कि मेले में आने वाले हर संत महात्मा के शिविर में भोंपू लगे रहते हैं. उन पर रास रंग या फिर प्रवचन चलता रहता है. फिर भी खोया पाया वाले भोंपू की आवाज लोगों को सुनाई दे देती है. इसकी वजह ये है कि शिविरों के भोंपू की आवाज की तेजी की सीमा तय है. जबकि खोया पाया शिविर वाले भोंपू की आवाज बुलंद रखी जाती है. कई बार मेले में जा चुके लोगों के कानों में एक जैसे अंदाज में पड़ने वाली इस आवाज की टोन किसी गाने की तरह कई बार मेले में जा चुके लोगों के दिमाग में अपनी एक खास जगह बना चुकी है. मेले का जिक्र आते ही उन्हे इस आवाज का लहजा याद आने लगता है.

भटकों को खोजने में  एआई की मदद
इस बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर डिजिटल खोया पाया विभाग का गठन किया गया है. इसके लिए एआई क्षमता वाले कैमरे भी पूरे मेले में लगाए जा रहे हैं. ये टोली से बिछड़े व्यक्ति के दर्ज ब्योरे से उन्हें खोजने में मदद करेगा. पहले वाले खोया पाया विभाग व्यक्तियों का ब्योरा एक पर्ची पर दर्ज कर उसे अनाउंस करने के लिए दे देता था. बाकी रजिस्टर में भी दर्ज किया जाता रहा, लेकिन इस बार बहुत कुछ कंप्यूटरों और एप के जरिए किया जाएगा. एप पर दर्ज ब्योरा एआई की मदद से सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भी जारी किए जाने की योजना है. इसके अलावा पुलिस नैविगेशन के लिए भी एप बनवाया है. लेकिन जाहिर है कि ये स्मार्ट फोनों पर ही चल सकेगा. एआई की तकनीकि भूले भटके लोगों को राह दिखाने का काम करेगी तो भारत सेवा दल के स्वयंसेवी मेले में अपने टोन और लहजे में प्रतापगढ़ की पट्टी तहसील से आए राम सुमेर के बेटे लाल चंद को मिलवाने के लिए भोंपू पर घोषणा करते रहेंगे.

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शिविर तैयार
भारत सेवा दल के अध्यक्ष उमेश तिवारी बताते हैं कि अब तक भारत सेवा दल 15 लाख से ज्यादा लोगों को अपने परिवारों से मिलवा चुका है. उनका कहना है ” पिछली बार भी एआई का इस्तेमाल किया गया था. तब भी हम लोगों ने अपने कंप्यूटरों पर अपना डेटाबेस बनाया था. हमारे लोग चौबीसों घंटे उद्धोषणाएं करने लोगों को मिलवाने में लगे रहे. इस बार भी हमने अपनी तैयारियां पूरी कर ली हैं.” सेवा दल का शिविर हर बार की तरह इस बार भी त्रिवेणी मार्ग पर लग चुका है.

Tags: Allahabad news, Maha Kumbh Mela

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