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धनकौल चौक, सीतामढ़ी और शिवहर के बीच स्थित, उत्तर बिहार की सबसे बड़ी अनाज मंडी है. यहां हर दिन 10-15 हजार क्विंटल अनाज की खरीद-बिक्री होती है. सरकारी सहयोग और सुविधाओं की जरूरत है.

मंडी रखी अनाज और जानकारी देते संचालक
सीतामढ़ी. सीतामढ़ी और शिवहर जिले के बीच धनकौल चौक अनाज की खरीद बिक्री को लेकर काफी फेमस है. यह चार जिलों का सबसे बड़ा अनाज मंडी है. यहां शिवहर, सीतामढ़ी, मोतिहारी, मुजफ्फरपुर और सीमा से सटे नेपाल के किसान अपना धान, गेहूं समेत अन्य अनाज बेचते हैं और यहां से बिहार के दर्जनों जिलों के व्यापारी खरीद कर ले जाते हैं. उत्तर बिहार के कृषि व्यापार का यह केंद्र पिछले 50 साल से चल रहा है, जिसके आधार पर इस चौक का नाम भी धनकौल चौक रखा गया है, जो सीतामढ़ी और शिवहर जिले की सीमा पर स्थित है. यह चौक अब उत्तर बिहार की सबसे बड़ी अनाज मंडी के रूप में प्रसिद्ध हो चुका है, जहां हर दिन 10 हजार से 15 हजार क्विंटल से अधिक अनाज की खरीद-बिक्री होती है.
वहीं, धान और गेहूं के सीजन में 50 हजार क्विंटल तक की खरीद बिक्री की जाती है. यह मंडी न केवल बिहार के जिलों के किसानों और व्यापारियों के लिए बल्कि नेपाल सीमा से सटे इलाकों के किसानों के लिए भी बड़ा बाजार है. सीतामढ़ी, शिवहर, मोतिहारी, मुजफ्फरपुर और नेपाल के सीमावर्ती गांवों से सैकड़ों किसान यहां अनाज बेचने आते हैं. वहीं, बिहार के विभिन्न जिलों से व्यापारी इस मंडी में आकर अनाज खरीदते हैं और देश के अन्य हिस्सों में भेजते हैं. यहां पर चावल, गेहूं, मक्का, चना, मसूर, सरसों और अन्य कई फसलों की व्यापक खरीद-बिक्री होती है. व्यापारियों का कहना है कि पिछले 50 सालों से मंडी की व्यवस्थित व्यवस्था और सड़क संपर्क इस पूरे क्षेत्र का प्रमुख कृषि हब बना हुआ है.
बुनियादी सुविधाओं की है जरूरत
मंडी के संचालक विमलेश सिंह ने बताया कि यहां पिछले 50 साल से अनाज का कारोबार हो रहा है. बिहार के कोने-कोने के साथ नेपाल के व्यापारी भी यहां से बड़ी मात्रा में अनाज खरीदते हैं. वहीं, शिवहर, सीतामढ़ी, मोतिहारी जैसे जिलों के किसान अपनी उपज बेचने के लिए यहीं आते हैं. स्थानीय लोगों और किसानो की मांग है कि इस मंडी को सरकार द्वारा आधिकारिक कृषि बाजार समिति (APMC) के रूप में मान्यता दी जाए. इसके साथ ही मंडी परिसर में शेड, पेयजल, शौचालय, बैंक, ई-नाम सुविधा और सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित की जाए. यह मंडी न केवल स्थानीय किसानों की आमदनी का जरिया बन रही है, बल्कि यह पूरे उत्तर बिहार और नेपाल सीमा क्षेत्र के कृषि व्यापार को एक नई दिशा दे रही है. यदि इसे सरकारी स्तर पर सहयोग और बुनियादी सुविधाएं मिलें, तो यह मंडी राष्ट्रीय पहचान भी हासिल कर सकती है.
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