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Colorectal Cancer Risk Factors: एक्सपर्ट्स ने चेतावनी दी है कि स्मोकिंग और अनहेल्दी लाइफस्टाइल कोलोरेक्टल कैंसर की वजह बन सकती है. लोगों को इन दोनों चीजों से बचना चाहिए, ताकि कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से बचा जा…और पढ़ें

ये 2 गलत आदतें बना सकती हैं कैंसर का शिकार ! वक्त रहते बदल लें, वरना जिंदगी हो जाएगी बर्बाद

कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा स्मोकिंग से बढ़ सकता है.

हाइलाइट्स

  • स्मोकिंग और अनहेल्दी लाइफस्टाइल से कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा बढ़ता है.
  • इससे बचने के लिए धूम्रपान छोड़ना और नियमित कोलोनोस्कोपी कराना जरूरी है.
  • संतुलित आहार और व्यायाम से कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा कम हो सकता है.

Colorectal Cancer Awareness: आजकल की खराब लाइफस्टाइल लोगों की सेहत को बर्बाद कर रही है. अनहेल्दी लाइफस्टाइल और गलत आदतों के कारण लोग गंभीर बीमारियों का शिकार हो रहे हैं. हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो स्मोकिंग और अनहेल्दी लाइफस्टाइल के कारण कोलोरेक्टल कैंसर का खतरा बढ़ सकता है. लोगों को इन आदतों को बदलने की जरूरत है, ताकि कैंसर समेत तमाम गंभीर बीमारियों से बचा जा सके.

फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉ. अमित जावेद और सी.के. बिरला अस्पताल के डॉ. नीरज गोयल के अनुसार धूम्रपान और अनियमित जीवनशैली कोलोरेक्टल कैंसर का बड़ा कारण बन रही है. सिगरेट के धुएं में 70 से ज्यादा ऐसे जहरीले तत्व होते हैं, जो डीएनए को नुकसान पहुंचाते हैं और कोशिकाओं को कैंसर की ओर ले जाते हैं. धूम्रपान से शरीर में सूजन और तनाव बढ़ता है, जिससे ट्यूमर बनने का खतरा 18-30 प्रतिशत तक बढ़ जाता है. जितना ज्यादा और लंबे समय तक धूम्रपान करें, खतरा उतना ही बढ़ता है. धूम्रपान छोड़ने के बाद भी यह जोखिम कई साल तक बना रहता है.

डॉ. जावेद ने कहा कि खराब खान-पान भी इस बीमारी को न्योता देता है. कम फाइबर, ज्यादा रेड मीट, प्रोसेस्ड फूड और शराब का सेवन इसके खतरे को कई गुना बढ़ा देता है. युवाओं में भी यह बीमारी बढ़ रही है, जिसके पीछे मोटापा, तनाव और कम व्यायाम जैसे कारण हैं. पेट दर्द, मल में खून, मल त्याग की आदतों में बदलाव, कमजोरी, थकान और अचानक वजन घटना इसके शुरुआती संकेत हो सकते हैं. अगर ये लक्षण दो सप्ताह से ज्यादा रहें, तो तुरंत डॉक्टर से मिलें.

डॉ. गोयल ने सलाह दी कि धूम्रपान छोड़ना और नियमित कोलोनोस्कोपी कराना इस बीमारी से बचने के सबसे जरूरी कदम हैं. संतुलित आहार और व्यायाम भी खतरे को कम करते हैं. 50 की उम्र के बाद स्क्रीनिंग जरूरी है, क्योंकि इस उम्र में जोखिम बढ़ता है. समय पर पहचान हो तो सर्जरी, कीमोथेरेपी और रोबोटिक तकनीकों से इलाज आसान और प्रभावी होता है. विशेषज्ञों का कहना है कि पेट की खराबी, जैसे कब्ज या बार-बार सूजन भी आंतों को नुकसान पहुंचा सकती है. सही खान-पान और पानी पीने की आदत से इसे ठीक रखा जा सकता है.

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